बहुजन डाइवर्सिटी मिशन (Bahujan Diversity Mission -बीडीएम) द्वारा शुरू होने वाला हस्ताक्षर अभियान भारतीय इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा। क्योंकि इससे पूर्व भारत ही नहीं, संभवतः पूरे विश्व में इतने वृहद मकसद को लेकर शायद ही कोई हस्ताक्षर अभियान चला होगा. टेक्नॉलोजी पर निर्भर यह ऐसा शान्ति अभियान है जो अतीत के शान्तिपूर्ण आंदोलनों को पीछे छोड़ देगा.
यह अभियान शक्ति के स्रोतों के न्यायपूर्ण बंटवारे की बात करता है, ऐसा इसलिए कि बीडीएम के मुताबिक भारत की सभी समस्याओं की जड़ शक्ति के स्रोतों का असमान एवं और अन्यायपूर्ण बंटवारा है.
यह पहला अभियान है जिसमें न सिर्फ मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या,’आर्थिक और सामाजिक गैर –बराबरी’ को लेकर इतनी गहरी चिंता जाहिर की गयी है, बल्कि उससे निजात पाने का अभूतपूर्व 10 सूत्रीय सुझाव पेश किया है.
बीडीएम के संस्थापक एचएल दुसाध ने शक्ति के स्रोतों के अन्यायपूर्ण बंटवारे तथा आर्थिक और सामाजिक विषमता के दुष्परिणामों से देश के हुक्मरानों और जनता को रूबरू कराने के लिए तकरीबन 100 किताबें और हजारों लेख लिखे हैं. किन्तु गैर-बराबरी की यह समस्या अब इतना विकराल रूप धारण कर चुकी है कि उनके सामने शक्ति के स्रोतों के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू करने से बेहतर कोई उपाय नहीं दिखा।
दुसाध जी का मानना है कि आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी जिस विस्फोटक बिंदु पर पहुँच गयी है, उसमें इसके खात्मे का ठोस अभियान चलायें बिना न तो भारतीय लोकतंत्र बच पायेगा न ही विषमता का शिकार समुदाय अपना वजूद बचा पाएंगे.
बगैर समानता लाए देश का भला नहीं हो सकता और समानता कागजी न हो
शक्ति के सभी स्रोतों चाहे वो शिक्षा हो या धन -दौलत या राजनीति, सभी में विविध समाजों की वाजिब हिस्सेदारी हो। शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनितिक-शैक्षिक –धार्मिक) का देश के मुट्ठी भर लोगों तक सीमित हो जाना न महज चिंताजनक है बल्कि देश के लिए खतरे की एक घंटी है। असमानता के शिकार अभावग्रस्त लोगों में जिस दिन असंतोष शिखर को छू लेगा, उस दिन वे खुद ही खूनी क्रांति पर उतर आएंगे। इस खूनी क्रांति के बिना भी समानता लागू करवाने, लोगों में संतोष भरने, लोगों के योगदान को देश की उन्नति में सुनिश्चित कराने के लिए डायवर्सिटी मिशन का 10 सूत्रीय सुझाव ही सबसे बेहतर विकल्प हैं।
डायवर्सिटी मिशन के सुझावों को देश में व्यापक तौर पर प्रसारित किया जाए और जन-जन तक उसे पहुंचाया जाए ताकि शक्ति के सभी स्रोतों और संसाधनों का न्यायोचित बंटवारे के लिए उनमें चाहत पनप सके, देश की 85%वंचित आबादी मुखर होकर डायवर्सिटी के सुझावों को सरकारों की नीतियों में शामिल कराने की मांग उठा सके और जरूरत पड़ने पर आंदोलन के द्वारा उदासीन सरकार को बाध्य कर सके।
शक्ति के स्रोतों के न्याययोचित बंटवारे के लिए बीडीएम की ओर से जो 10 सुझाव दिया गया है, उसे लागू करवाने के लिए भारतीय राज्य पर दबाव बनाने हेतु इस हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से जनता की ओर से राष्ट्रपति तक लिखित अपील पहुंचाने का तानाबाना इस अभियान में बुना गया है.राष्ट्रपति के समक्ष की गयी अपील की वह कॉपी प्रधानमंत्री, विभिन्न प्रान्तों के मुख्यमंत्रियों, नीति आयोग इत्यादि तक पहुंचाई जाएगी.
इस अभियान के जरिये कई करोड़ इंटरनेट यूज करने वाले पढ़े-लिखे जागरूक लोगों की अपील राष्ट्रपति तक पहुचाने का डिजायन बनाया गया है. अगर प्रत्याशित मात्रा में लोगों की अपील राष्ट्रपति तक पहुँच सकी तो उम्मीद की जा सकती है केंद्र से लेकर राज्य सरकारें बीडीएम के 10 सूत्रीय एजेंडे की अनदेखी नहीं कर पाएंगी.
वर्तमान समय में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महंगाई ,बिकता हुआ देश, अवसरों की कमी, आम लोगों की मुश्किलें और अशांति, जातीय एवं वर्गीय संघर्ष के मुहाने पर देश को खड़े देखकर यह प्रतीत होता है कि यही वह सही वक्त है जब 90% वंचित आबादी, जो बहुजन आबादी है, शक्ति के स्रोतों के न्यायोचित बंटवारे हेतु आवाज बुलंद करने के लिए सामने आये. दुनिया की विशालतम वंचित आबादी को सरकारों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए बीडीएम के हस्ताक्षर अभियान ने एक स्वर्णिम मंच सुलभ करा दिया है. इस अवसर का लाभ उठाने के लिए लोग आगे आयें, इस दिशा में कुछ खास करने की जिम्मेवारी बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्टों पर आन पड़ी है.
अगर बुद्धिजीवी वर्ग अपनी भूमिका ठीक से निभा सका तो इस हस्ताक्षर अभियान के जरिये सरकारी और निजीक्षेत्र की नौकरयों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, फिल्म, मीडिया, उद्योग-धंधे ,सरकारी और गैर सरकारी संस्थावों में हिस्सेदारी, ठेके और कल कारखानों में देश के प्रमुख सामाजिक समूहों के लिए वाजिब भागीदारी सुनिश्चित होना तय है।
इस अवसर पर पेश है मेरी यह कविता-:
एक मात्र विकल्प।
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बी.डी.एम. के हस्ताक्षर अभियान की जो बात चली है
दूर तलक तो जानी है।
आज भले ही गर्दिशों में बहुजन
हल तो निकल ही आनी है।
सदियों पुरानी रिवाज रही है
वंचितों की दबी हमेशा से
अभी तक आवाज रही है।
शक्ति के स्रोतों पर कब्ज़ा
सवर्णों की मनमानी रही
शक्तिविहीन होकर बहुजनों की
अश्कों में डूबी कहानी रही।
न शिक्षा, न रोजगार
न साहित्य, न हथियार
बस जिंदगी कटती गई
चारो तरफ रहा अंधकार।
मुट्ठी भर लोगों ने मिलकर
बुद्धि बल और छल से
सबको गुलाम बना लिया
शरीर, मन और चित को भी
अपनी सोंच में मिला लिया।
सन सैतालिश में आज़ादी मिली
सन पचास में संविधान
तिहत्तर साल गुजरने पर भी
न अधिकार मिला न ही मान-सम्मान।
वर्ण व्यवस्था जारी है
सवर्णों की चतुराई आज भी
बहुजनों भर भारी है।
लूट खसोट के दौर में
खतरे में कौम हमारी है।
संविधान से राहत मिली
अरमान मिले, चाहत मिली
मिले मुलायम, कांशी राम
माया मिली ,लालू मिले
आठवले मिले, शरद, श्याम
मिले रामविलास पासवान।
उदित भी आये नए दौर में
तेजस्वी और चिराग मिले
चंद्रशेखर की बातें
अमर आज़ाद चिराग साथ मिले।
लाखों बहुजन बुद्धिजीवी
रतन, दिलीप, संतोष संग
कलम लिए जोश में
साहेब एच. एल. दुसाध मिले।
सब के मिल जाने पर भी
मिला नहीं सम्मान समुचित
अब भला क्या उचित और क्या अनुचित???
अब तो बहुजन डायवर्सिटी मिशन
एक मात्र विकल्प हमारा है।
जिसकी जितनी संख्या भारी
उसकी उतनी हिस्सेदारी
यही सदी का सबसे प्रबल
सबसे ब्यापक नारा है।
जल जंगल, जमीन से बेदखल
कब तक भारत की रखवाली
जब ये देश हमारा
हम देश के मूलनिवासी तो
कबतक अपनी कंगाली??
छोटे छोटे विवादों में
निज स्वार्थ के गिरफ्त में
कब तक संतोष गुलामी का
यही वक्त है बहुजनों
डायवर्सिटी के रास्ते चलकर
लगा ले अंकुश
सवर्णवाद के मनमानी का।
बिकता देश, लुटती संस्थाएँ
बहुजनों की बर्बादी आई
हाहाकार चहुं ओर
ये हालात किसने बनाई??
मरते लोग, तैरती लाशें
अवसरों की दुहाई पर
कौन है काबिज बहुजनों की
मिहनत पसीने की कमाई पर???
क्या न्यायालय, क्या उद्योग
क्या संस्थाएं, क्या विज्ञान और प्रयोग
क्या सारी काबलियत बस मनुवाद में?
क्या कुछ भी नहीं रखा है
फुले, पेरियार और अम्बेडकरवाद में??
ये सवाल तो वाजिब है
इसका जवाब भी डायवर्सिटी मिशन
अब साथ चलो,कुछ बात करो।
हर बिंदु पर मंथन जरूरी
जब बी.डी.एम. की ताकत विकराल
फिर घुटन की क्या मजबूरी??
बस एक स्वर
अब चाहिए एक राग
एक दिशा, एक लक्ष्य
एक ताल पर सबके क़दम
कोई वजह नहीं कि
सफल नहीं हो सकेंगे हम।
जीत को जुनून चाहिए
विजय गीत को धुन चाहिए
बस आवाज क्रांति की उठने दो
समता, बंधुता और न्याय भी बात
अंधविश्वास पाखंड को घुटने दो।
ललकार उठो
हुँकार उठो
बहुजनों !शक्ति के स्रोतों पर काबिज
नई सुबह के लिए पुकार उठो।