नई दिल्ली, 10 फरवरी 2021. ‘दीर्घकालिक उर्वरक प्रयोग’ पर अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के तहत नियत स्थान पर 50 वर्षों की अवधि में किए गए अध्ययन में चौंकाने वाली जानकारियां सामने आयी हैं। अध्ययन में पाया गया है कि एक ही खेत में नाइट्रोजन (NITROGEN ) उर्वरकों के निरंतर उपयोग से मृदा-स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता ह्रास के साथ मिट्टी के पोषक तत्वों का भी क्षरण हो रहा है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी पौधे की वृद्धि को प्रभावित करने के साथ पौधों में विकारों का कारण बन सकती है। नाइट्रोजन उर्वरकों का तय सीमा से अधिक उपयोग भू-जल में नाइट्रेट संदूषण की संभावना बढ़ा देता है। इसका पेयजल के रूप में उपयोग मनुष्य और पशुओं के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डाल सकता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर ICAR) संतुलित मृदा परीक्षण और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के लिए रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने के लिए कहता है। इससे मृदा-स्वास्थ्य के बिगड़ने, पर्यावरण और भू-जल के दूषित होने के खतरों को कम करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही, नाइट्रोजन उर्वरकों के लगातार इस्तेमाल के स्थान पर मृदा परीक्षण आधारित संतुलित और मिश्रित (जैविक एवं अजैविक) उर्वरक अनुप्रयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया जाता है।
नवीनतम जानकारी के अनुसार,
इसी तरह, देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना और उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट के तहत जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये जानकारियां केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने संसद में एक प्रश्न के जवाब में साझा की हैं ।
इन सभी पहलुओं पर किसानों को शिक्षित करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों सहित आईसीएआर संस्थानों के माध्यम से प्रशिक्षण और प्रदर्शनी आयोजित किए जाते हैं।
(इंडिया साइंस वायर)