यह हमारे प्रदेश के लिए सौभाग्य की बात थी कि हमारे प्रदेश के आईपीएस कैडर के अधिकारी श्री के एफ रुस्तमजी (IPS cadre officer Khusro Faramurz Rustamji, better known as K F Rustamji) को छह वर्ष तक देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा (Security of India's first Prime Minister Jawaharlal Nehru) करने का अवसर मिला। उन्हें 1952 में नेहरू जी की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। वे नेहरू जी के साथ बिताए गए समय के अनुभवों को अपनी डायरी में नोट करते रहे। बाद में इन्हें एक किताब के रूप में प्रकाशित किया गया। इस किताब के प्रकाशन में भी हमारे प्रदेश के दो आईपीएस अधिकारियों की प्रमुख भूमिका थी। यह दो अधिकारी थे श्री राजगोपाल और श्री के एस ढिल्लों।
नेहरू जी की जयंती के अवसर पर मैं उस किताब में प्रकाशित कुछ संस्मरणों को एक लेख के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूं। किताब का शीर्षक है ‘आई वास नेहरूस शेडो’ (मैं नेहरू की परछाई था)। किताब पढ़ने से एहसास होता है कि
रुस्तमजी लिखते हैं उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने के कुछ समय बाद 1952 के अगस्त माह में मैं जवाहरलाल नेहरू के साथ कश्मीर गया। उस समय नेहरूजी की आयु 63 वर्ष थी, परंतु वे 33 वर्ष के युवक नजर आते थे। वे गोरे थे, अति सुंदर थे और सभी को अपनी ओर खींचने वाले अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। वे सेना के जवान के समान तेजी से चलते थे। चैंपियन के समान तैरते थे और लगातार 16 घंटे काम करते थे।
उनका स्वभाव घुमक्कड़ था। अवसर मिलने पर वे खुले मैदानों में टेंट में रहना पसंद करते थे। इसी तरह की यात्रा के दौरान एक दिलचस्प घटना हुई। 1952 में वे अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर थे। इंदिरा गांधी उनके साथ थी। यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात एक आदिवासी मुखिया से हुई।
मुखिया ने उनसे कहा, “मैं तुम्हारी बेटी से शादी करना चाहता हूं”। नेहरु जी ने कहा, “वह तो विवाहित और उसके दो बच्चे हैं”। इस पर आदिवासी ने कहा, “क्या हुआ हमारे हमारे यहां तो रिवाज है कि हम बीवी के साथ बच्चे भी रख सकते हैं”।
1955 के मार्च में नेहरू जी नागपुर की यात्रा पर थे। एकाएक एक व्यक्ति नेहरू जी की कार पर चढ़ गया। उस व्यक्ति के हाथ में एक बड़ा सा चाकू था। नेहरू जी ने उससे पूछा, “क्या चाहते हो भाई” बस यह पूछकर नेहरू गंभीर होकर बैठे रहे। चेहरे पर चिंता की लकीर तक नहीं आई।
एक दिन की बात है कि नेहरू जी बिना टोपी के तीन मूर्ति भवन (प्रधानमंत्री आवास) के एक गेट से बाहर निकले और बाद में दूसरे गेट से परिसर में प्रवेश करने लगे। गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मी ने उन्हें रोक दिया। नेहरु जी ने अपना परिचय दिया पर वह मानने को तैयार नहीं था कि उसके सामने नेहरुजी खड़े हैं। नेहरु जी की पहचान टोपी पहने हुए नेहरू की थी इसलिए सुरक्षाकर्मी उन्हें नहीं पहचान पाया। काफी देर तक नेहरू और सुरक्षाकर्मी के बीच विवाद होता रहा।
नेहरु जी ने एशिया और अफ्रीका के नवोदित देशों को एक मंच पर लाने में का महान प्रयास किया था। इसी महाप्रयास के तहत इंडोनेशिया के बांडुंग में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसी बीच नेहरू जी की श्रीलंका के प्रधानमंत्री सर जॉन कोटेलावाला से किसी मुद्दे पर गर्मागर्म बहस हो गई। बहस के दौरान नेहरू जी बहुत आक्रोशित हो गये। इसी बीच नेहरु जी ने अपना हाथ ऊंचा उठा लिया। ऐसा लग रहा था कहीं वे कोटा वाला को तमाचा न मार दें। इंदिराजी पास में ही खड़ी थी। उन्होंने हिंदी में नेहरू जी से कहा कि वे संयम रखें। इसके बाद भी दोनों के बीच बहस चलती रही। दोनों स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की तरह लड़ रहे थे। चीन के प्रधानमंत्री बीच में पड़े और अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में उन्होंने दोनों को समझाने की कोशिश की। इसके थोड़े समय बाद नेहरु जी ने सम्मेलन को संबोधित किया। नेहरू जी का भाषण अद्भुत था।
रुस्तमजी एक और दिलचस्प घटना का उल्लेख करते हैं। नेहरू जी अजंता की गुफाओं की यात्रा पर गए। उनके साथ लेडी माउंटबेटन भी थी। इस बीच लेडी माउंटबेटन ने कॉफी पीने की फरमाइश की और वे दोनों कॉफी पीने के लिए बैठ गये। मैंने वहां से खिसकना चाहा। जब भी मैं उठना चाहता तो नेहरू जी कहते बैठो हम लोगों के साथ पत्रकारों और फोटोग्राफरों का हुजूम था। नेहरू जी नहीं चाहते थे कि लेडी माउंटबेटन के साथ कॉफी पीने से कुछ गलतफहमी पैदा हो।
रुस्तमजी के बाद 1958 में श्री दत्त प्रधानमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी बने। दत्त ने इस पुस्तक के संपादक को बताया कि जब भी लेडी माउंटबेटन आती थीं विदा होती थी तो नेहरू और लेडी माउंटबेटन एक दूसरे के गालों को चूमते थे। ऐसा करना पश्चिमी परंपरा है। इसके अलावा मैंने उन दोनों के बीच कुछ नहीं देखा। अतः दोनों के संबंधों को लेकर नेहरू को बदनाम करने के लिए जो बातें फैलाई जाती हैं, वह बेबुनियाद हैं।
जनता के बीच रहने में नेहरूजी को भारी आनंद आता था। नियमों के चलते जनसभाओं में प्रधानमंत्री के मंच और जनता के बीच में काफी दूरी रखी जाती थी। एक स्थान पर मंच और जनता के बीच में कटीले तार लगा दिए गए। नेहरूजी ने यह देखा तो मंच से कूदकर कटीले तार हटाने लगे। ऐसा करते हुए उनके हाथों से खून आने लगा। जब उन्हें बताया गया कि उन्हें ऐसा नहीं करना था तो उन्होंने कहा, कि “जनता और मेरे बीच में फासला मुझे पसंद नहीं है। यदि ऐसा आगे हुआ तो प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने में मैं नहीं हिचकूंगा”।
नेहरूजी हास्यप्रिय व्यक्ति भी थे। एक दिन रुस्तम जी ने नेहरू जी से पूछा “क्या मैं आपका फोटो ले सकता हू” इसपर नेहरूजी ने कहा “क्या मैं अपना फोटो साथ लेकर चलता हू”? रूस्तमजी ने जवाब दिया “नहीं मैं आपकी फोटो लेना चाहता हूँ” यह सुनकर नेहरुजी ने कहा, “एक अच्छा फोटोग्राफर फोटो लेने के पहले इजाजत नहीं मांगता”।
एल. एस. हरदेनिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं