न्यायप्रणाली में एक प्रक्रिया है जिसे आंग्ल भाषा में Recusal कहते हैं - कई जज खुद अपने आपको Recuse कर लेते हैं यानी स्वयं को सुनवाई से हटा लेते हैं। किसी एक पक्ष के आग्रह पर "कि मुझे नहीं लगता कि आपसे मुझे निष्पक्ष न्याय मिल पायेगा" भी सामान्यतः न्यायाधीश मान लेता है और हट जाता है। उनकी जगह कोई और आ जाता है।
जज इसलिए मान लेते थे ताकि न्यायप्रक्रिया और न्याय दोनों पर भरोसा बना रहे।
हमारे एक (बाद में याद आया कि दो बार) प्रकरण में भी हम इस सुविधा का लाभ ले चुके हैं। कालेज के जमाने में एक प्रकरण में बिना वकील की मदद लिए खुद खड़े होकर डी जे साहब से कहा था कि "सर किसी और के सामने सुनवाई होगी तो हमें आश्वस्ति मिलेगी।"
बिना कुछ कहे उन्होंने सुनवाई रोककर अगली तारीख से पहले दूसरी अदालत में मामला भेज दिया था।
मगर जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच अड़ी है, खुद जस्टिस मिश्रा ने कहा है कि कुछ दिन बाद वे रिटायर हो जाएंगे, इसलिए फैसला तो वे ही देंगे।
प्रशान्त भूषण ने तो कुछ कारण भी गिनाये हैं मगर क्या जस्टिस मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट के बाकी जजों पर भी भरोसा नहीं है कि वे सही सुनवाई कर सही फैसला दे पायेंगे ??
#सुगम_जी की कविता #कछू तो गड़बड़ है "सुबह से गुनगुनाये जा रहे हैं।
(कॉमरेड बादल सरोज की फेसबुकिया टिप्पणी का संपादित रूप साभार)
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