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Special comment on Gurmeet Ram Rahim

राजीव रंजन श्रीवास्तव

अभी 15 अगस्त बीता है, जब हमने आज़ादी की 70वीं वर्षगांठ (70th anniversary of independence) मनाई है। प्रधानमंत्री ने लालकिले से बड़ी भारी तकरीर दी कि देश किस तरह विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है। लेकिन महज 10 दिन बाद हरियाणा-पंजाब में जिस तरह का मंजर दिखाई दे रहा है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह देश अब भी कितनी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। आस्था के नाम पर अंधविश्वास और धर्म के नाम पर अनाचार (Incest in the name of religion) का ऐसा बोलबाला है कि उसके आगे कानून, सरकार, प्रशासन सब लाचार लगने लगे हैं।

जी हाँ! हम बात कर रहे हैं डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख तथाकथित संत गुरमीत राम रहीम की, जिसके ऊपर बलात्कार का आरोप था।

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15 साल पहले मई 2002 में डेरा सच्चा सौदा (Dera Sacha Sauda) की एक कथित साध्वी ने डेरा प्रमुख पर यौन शोषण के आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री को गुमनाम चिट्ठी भेजी और इसकी एक कॉपी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी।

इस चिट्ठी के आधार पर सीबीआई को हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि गुरमीत राम रहीम के खिलाफ मामला दर्ज कर, जांच शुरू की जाए।

25 अगस्त, शुक्रवार को पंचकूला में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने आरोपी राम रहीम को दोषी करार दिया।

देश में आरोपी, दोषी, अनाचारी बाबाओं की सूची में एक नाम और जुड़ गया है। लेकिन क्या इससे इन ढोंगी, अधर्मी बाबाओं का कारोबार ठंडा पड़ेगा? क्या उनके राजनीतिक रसूख

में कोई कमी आएगी? क्या मासूम जनता को उसके दुखों-तकलीफों का हवाला देकर लूटने, ढगने का सिलसिला थमेगा?

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हरियाणा-पंजाब में पिछले कुछ दिनों से युद्ध जैसा माहौल बना हुआ था। डेरा सच्चा सौदा के लाखों समर्थक सड़कों पर उतर आए थे, कि हम अपने गुरु को कुछ नहीं होने देंगे। साफ-साफ धमकी दी जा रही थी कि अगर उन्हें कुछ हुआ तो भारत का नाम दुनिया के नक्शे से मिटा देंगे। राष्ट्रप्रेम का पाठ पढ़ाने वाले और भारत माता की जबरन जय करवाने वालों को इस तरह की धमकियों से शायद कोई तकलीफ नहीं हुई

अल्पसंख्यकों से देशप्रेम का सबूत मांगने वाले लोग, राम रहीम के समर्थकों के आगे आश्चर्यजनक तरीके से मौन दिखे।

हरियाणा-पंजाब में मोबाइल, इंटरनेट सेवा बाधित की गई, कई ट्रेनें रोकी गईं, रिहायशी इलाकों की बिजली काटी गई, स्कूल-कालेज, रोजमर्रा का कारोबार सब ठप्प हो गया, लाखों-करोड़ों का नुकसान हुआ, केवल इसलिए कि एक बलात्कारी बाबा, जो खुद को भगवान कहता है, उसके लिए लाखों समर्थक सिरसा में इकट्ठा हो गए।

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हरियाणा सरकार और प्रशासन अगर चाहता तो इस तरह की उन्मादी भीड़ नहीं जुटती, जिसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल और सेना का सहारा लेना पड़ा। लेकिन जब डेरा सच्चा सौदा का सत्ता पर काबिज लोगों से राजनीतिक सौदा है, तो फिर उसके समर्थकों को जुटने से रोकने की गलती कैसे हो सकती थी।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस साल मई में ट्वीट किया था कि संत गुरमीत राम रहीम जी गरीब मरीज़ों की सेवा, स्वच्छता अभियान, शिक्षा के प्रचार-प्रसार, नशामुक्ति सहित कई समाज हितैषी कार्यों में लगे हुए हैं।

खेल मंत्री अनिल विज ने पिछले साल अगस्त में डेरा सच्चा सौदा के एक कार्यक्रम में डेरा को 50 लाख रुपये का फंड दिया था। और भी कई बड़े नेताओं से राम रहीम की करीबी रही है।

आश्चर्य होता है यह देखकर कि जो खुद को भगवान कहता है, उसे बचाने के लिए साधारण लोगों को सारी तकलीफें सहकर सड़क पर उतरना पड़ा। जब प्रशासन की ओर से भीड़ को हटाने और कानून-व्यवस्था में बाधा न डालने का दबाव बना तो राम रहीम ने खुद टीवी स्क्रीन पर प्रकट होकर अपने भक्तों से अपील की कि वे हट जाएं। लेकिन वाह रे बाबा के भक्त, उन्होंने अपने भगवान की भी नहीं सुनी और सड़क पर डटे रहे।

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जब आठ सौ गाड़ियों के काफिले के साथ राम रहीम पंचकुला कोर्ट जाने निकले तो भक्त सड़कों पर लेट गए।

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क्या देश के संविधान को मुंह चिढ़ाने वालों के खिलाफ कोई सख्ती इसलिए नहीं बरती गई, कि यह सब धर्म और आस्था के नाम पर किया जा रहा था?

यह भी आश्चर्य की बात है कि जिस इलाके में धारा 144 लगी हो, जहां 4 नागरिक एक साथ नहीं घूम सकते, वहां आठ सौ गाड़ियों के काफिले को लेकर बलात्कार का आरोपी बाबा पूरी दबंगई से निकलता है और देश की जनता चैनलों के माध्यम से इस तमाशे को देखती है। इससे पहले आसाराम, रामपाल जैसे बाबाओं की गिरफ्तारी के वक्त भी ऐसा तमाशा देखा गया था।

धर्म की आड़ में गैरकानूनी काम और घृणित अपराध करने वाले ऐसे बाबाओं से जब तक देश मुक्त नहीं होगा, हम आजाद नहीं हो सकते, न विज्ञान और विकास की बात कर सकते हैं।



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