नयी दिल्ली 06 अप्रैल 2019. कोयला सेक्टर में सम्पत्तियों के फंस जाने के जोखिम को लेकर चिंताओं से घिरी सरकार, शायद बड़ी तस्वीर को नहीं देख पा रही है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट- International Institute for Sustainable Development (आईआईएसडी) और ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट - Overseas Development Institute (ओडीआई) के नवीनतम स्वतंत्र अध्ययन में यह बात कही गयी है।
इस वक्त, चर्चाओं में सारा जोर देश की कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता के उस 21 प्रतिशत हिस्से की समस्या का समाधान करने पर है जो दबाव के दौर से गुजर रहा है और दीवालिया होने की कगार पर खड़ा है। लेकिन यह केवल तभी समझ में आता है जब तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के चालक वास्तव में अल्पकालिक होते हैं।
दरअसल, कई वजहों से आगे आने वाले कुछ सालों में कोयले की बढ़ती लागत में और इजाफा होने की संभावना है। इनमें वायु प्रदूषण के बारे में चिंताएं, अक्षय ऊर्जा की गिरती कीमतें और वॉटर स्ट्रेस( भूजल के गिरते स्तर में बढ़ोतरी) शामिल हैं।
मंत्रिमण्डल ने हाल में कोल लिंकेज में सुधार के लिये नये कदमों की घोषणा की थी और पीपीए का भुगतान न होने की स्थिति में बिजली उत्पादकों के साथ अधिक रियायत बरतने का एलान भी किया है। इससे जहां केवल अल्पकाल में ही मदद मिल सकती है, वहीं इसमें उन सम्पत्तियों के मालिकों की अल्पकालिक जरूरतों के बारे में ही सोचा जा रहा है, न कि कामगारों के मध्यमकालिक हितों के बारे में। अगर
आईआईएसडी एसोसिएट और इस अध्ययन के सह—लेखक बालसुब्रमण्यम विश्वनाथन ने कहा कि
''कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों की वित्तीय देनदारी बढ़ने की आशंका है, क्योंकि वायु प्रदूषण सम्बन्धी नियमन, पानी की किल्लत से जुड़ी चिंताएं तथा अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र से मिलने वाली प्रतिस्पर्द्धा अब तेजी से बढ़ते मुद्दे बन गये हैं। यह सही वक्त है कि देश के नीति निर्धारक लोग कोयले को छोड़कर उसके विकल्पों की तरफ ध्यान दें।''
ओडीआई के आपरेशंस एवं पार्टनरशिप प्रबन्धक तथा इस अध्ययन के सह लेखक लियो रॉबट्र्स का कहना है कि
''अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास होने से बड़ी संख्या में रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे। लेकिन अगर भविष्य में कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों के अव्यावहारिक हो जाने का जोखिम है तो नीति निर्धारकों को उन प्रतिपूरक नीतियों और संवाद के बारे में अब सोचना शुरू करना होगा, जो प्रभावित कामगारों को बेहतर क्षतिपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिये जरूरी होगा।''
यह अध्ययन सितंबर 2018 में आईआईएसडी और ओडीआई द्वारा कराये गये एक संयुक्त प्रकाशन का अनुसरण करता है। इस प्रकाशन में सम्पूर्ण कोयला मूल्य श्रंखला में सरकार के हस्तक्षेपों की पहचान करने तथा दिसम्बर 2018 में आईआईएसडी तथा सीईईडब्ल्यू द्वारा भारत के ऊर्जा सम्बन्धी अनुदानों का आकलन किया गया है। सीईईडब्ल्यू ने कोयला आधारित बिजली उत्पादन के लिए सब्सिडी का पूर्ण आकार 2017 में 15,992 करोड़ रुपये (2.38 बिलियन अमरीकी डालर) पाया था। मोटे तौर पर इसमें वर्ष 2014 के मुकाबले कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
रिपोर्ट : India's Energy Transition: Stranded coal power assets, workers and energy subsidies
क्या है आईआईएसडी
द इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) एक स्वतंत्र थिंक टैंक है जो आज हमारी धरती के सामने मौजूद कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों पर कार्य करने के लिए ज्ञान प्रदान करता है। इनमें पारिस्थितिकी के विनाश, सामाजिक बहिष्कार, अनुचित कानून और आर्थिक एक और सामाजिक नियम तथा बदलती जलवायु शामिल हैं।
आईआईएसडी की ग्लोबल सब्सिडिज़ इनिशिएटिव (जीएसआई) सरकार की समर्थन नीतियों और सतत विकास के बीच सकारात्मक संबंध को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
क्या है ओडीआई
ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (ओडीआई) अंतर्राष्ट्रीय विकास और मानवीय मुद्दों पर काम करने वाला ब्रिटेन का प्रमुख स्वतंत्र थिंक टैंक है। जिसका मिशन नीति और अभ्यास को प्रेरित और सूचित करना है जो गरीबी को कम करने, पीड़ा को कम करने और विकासशील देशों में स्थायी आजीविका की उपलब्धि हासिल करने के लिए प्रेरित करता है।