43 दिन की पूर्णबन्दी के बाद रेड जोन से लेकर आरेंज और ग्रीन जोन पूरे भारत में शराब के ठेके का खोले गए। ठेके खुलते ही दिल्ली समेत सभी राज्यों में लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग - Social distancing in lockdown (सामाजिक दूरी) की धज्जियां उड़ाती भारतीय जनता की उमड़ती भीड़ को संभालना मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे दुकानों की भीड़ को कम करने के लिए दुकानों को बन्द करना पड़ा, लेकिन अगले ही दिन एक खबर पढ़ने को मिली कि छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले में शराब के नशे में एक बेटे ने अपनी मां को पीट-पीट कर हत्या कर दी, दूसरे दिन छत्तीसगढ़ से ही खबर आई की नशे में बेटा ने बाप की हत्या कर दी।
भारतीय समाज में महिलाओं के ऊपर पहले से ही घरेलू हिंसा (मानसिक और शारीरिक) होती रही है जिसका एक बड़ा कारण शराब है।
लॉकडाउन में महिला अपने ऊपर होने वाली हिंसा की शिकायत कहीं नहीं कर पाई, यही वजह है कि घर में रहने वाले पुरुष उसके ऊपर हिंसा करते रहे। और अब जब शराब पीने की सरकारी छूट मिल गई तो ये मामले इतने घातक हो गए कि महिला को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। कहना नहीं होगा कि ये तो अभी शुरुआत है महिला और पुरुष जब दोनों की एक घर मे चौबीस घंटे रहते हैं तो उनके बीच छोटी-मोटी नोंकझोक होना स्वाभाविक है, लेकिन अब ऐसी नोकझोंक में पुरुष शराब पीकर महिला पर अपनी कुंठा निकाल सकता है। लेकिन महिला का क्या होगा, वो इसकी हिंसा का शिकार होकर अपनी जान तक गंवा सकती है। इसका कुप्रभाव बच्चों पर भी प्रत्यक्ष रुप से पड़ेगा। इस हिंसा का
सरकार ने तीसरे लॉकडाउन में जरूरी सामानों की दुकान खोलने व सामान बेचने की बात की ज्ञात हो कि जरूरी सामान वो होते हैं जो हमारे रोजमर्रा की जिन्दगी में काम आते हैं और सभी के लिए समान रूप से उसकी आवश्यकता होती है। जैसे सबसे पहले रोटी, दवा, उसके बाद कपड़े शिक्षा आदि हो सकते हैं। सरकार को शराब जरूरी सामान नजर आई। महिला संगठनों ने इसका विरोध किया है। सरकार का तर्क है कि शराब के उत्पादन से राजस्व की आमदनी बढ़ती है और कोरोना के कारण भारत में आर्थिक मन्दी की मार झेल रहे भारत को शराब बिक्री से थोड़ी राहत जरूर मिल सकती है।
आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 के दौरान 29 राज्यों और यूपी, दिल्ली पुदुचेरी ने शराब पर 1,75,501.42 करोड़ रुपये का उत्पादन शुल्क बजट रखा था जो कि 2018-19 के दौरान एकत्र किए गए शुल्क 1,50,657.95 करोड़ रुपये से 16 प्रतिशत अधिक था लेकिन कोविड-19 के कारण अब इस तरह से आने वाला उत्पादन शुल्क एकदम घट गया है।
नशे के कुप्रभाव से सबसे ज्यादा जूझ रहे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी खराब होती वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए शराब के ठेके खोलने की मांग की है। उनका कहना है कि राज्य सरकार को साल भर में 62 करोड़ रुपये की आमदनी शराब के ठेके नीलाम करने से होती है, जो प्रति महीना 521 करोड़ रुपये बनता है, लेकिन इन 43 दिनों से शराब के ठेके बन्द होने के कारण राज्य सरकार को इस आमदनी से हाथ धोना पड़ रहा है, जबकि पंजाब में नशा एक सामाजिक बीमारी बन चुकी है बहुत से युवा नशे की लत के कारण अपनी जान गवां रहे है, जिस पर फिल्म (उड़ता पंजाब) भी बन चुकी है।
राज्य सरकारों के तर्क पर गौर करे तो ऐसा लगता है कि जैसे शराब पर ही भारतीय अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। क्या भारत के पास शराब द्वारा राजस्व प्राप्त करने के अलावा अन्य उद्योगो में कोई विकल्प नहीं बचा है जबकि छोटे मंझोले उद्योगों के मालिक बार-बार अपनी फैक्टरी खोलने के लिए कह रहे हैx।
शराब के ठेके खोलने की मांग जनता की मांग नहीं है। ये सरकारें अपने लाभ के लिए खोल रही हैं, जबकि समय-समय पर महिलाओं ने शराब का विरोध किया है, शराब के ठेके जलाये हैं, क्योकि ठेके खुलने व शराब का सबसे ज्यादा कुप्रभाव महिलाओं पर ही देखा जा सकता है।
हमारे अपने मोहल्ले (प्रेम नगर किरारी) में ठेके खुलने पर गली के दो परिवार के आदमी सारा दिन ठेके पर शराब की लाइन में लग कर जब शाम को घर पहुंचे, तब औरतों ने उनका मौखिक विरोध किया और सरकार के इस कदम की आलोचना की, और ऐसी स्थिति कई इलाकों की है जहां पर महिलाएं इस बात से डरी हुई थीं कि लॉकडाउन में शराब (Liquor in lockdown) न मिलने के कारण उनके पति उन पर हाथ नहीं उठाते थे लेकिन शराब पीकर छोटी-छोटी बात पर हाथ उठाना शुरु कर देते हैं।
आज ऐसे समय जब भारतीय जनता दो वक्त की रोटी पाने के लिए सारा दिन लाइन में रही है, मजदूरों की नौकरी छूट जाने के कारण घर में राशन का इंतजाम कर पाने में असमर्थ है, ऐसे में मजदूर या गरीब परिवार के पुरुष शराब पीने के लिए पैसे कहां से खर्च करेगा? जाहिर है वो महिलाओं पर अपना गुस्सा निकालेगा या फिर घर से सामान को बेच पैसे का जुगाड़ करेगा, इससे सीधे महिलाएं प्रभावित होंगी, ऐसे वक्त में शराब के ठेकों का खुलना गरीब के घर में आग लगाकर अपनी प्यास बुझाने जैसा है। छोटे-छोटे बच्चे नशे के शिकार हो रहे हैं उस पर लगाम लगाने के बजाये सरकार इस तरह के फैसले करके नशे को प्रोत्साहन दे रही है। पूरी दुनिया कोरोना के कारण आर्थिक मन्दी का शिकार हो रही है। कोरोना से लड़ने के लिए टेस्टिंग के साथ इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करने की बात डॉक्टर बार-बार बोल रहे हैं, साथ ही कोरोना संक्रमण के मामले में शराब गुटका तंबाकू आदि नशीले पदार्थ से दूर रहने की बात की गई थी और यह भी कहा गया था कि इन पदार्थों का सेवन करने वालो को कोरोना का खतरा अधिक है, ऐसे में शराब की दुकान खोलना जानबूझ कर लोगों को मौत के करीब ले जाने के लिए उकसाने जैसा है, जहां शराब मिलने की खुशी में लोग सामाजिक दूरी का पालन नहीं पा रहे हैं और शराब के नशे में सामाजिक दूरी का पालन कर पाने की चेतना खो बैठेंगे।
लॉकडाउन की कड़ी परीक्षा के बाद कोरोना के खिलाफ जंग में जो ताकत मिली थी, वह सरकार ने शराब की दुकानें खोल कर दो दिन में गवां दी। शराब की दुकान खुलने से संक्रमण का खतरा बढ़ जायेगा। दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तीसरे चरण के लॉकडाउन में ढील देते हुए कहा कि ‘‘दिल्ली के लोगों को अब कोरोना के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए’’। मुख्यमंत्री ने कोरोना की समानता भारत में हर साल आती महामारी मलेरियां से कर दी, लेकिन क्या यह सच नहीं कि मलेरिया का टीका आ चुका है और उस पर काबू पाया जा चुका है जबकि कोरोना ऐसा वायरस है जिसने दुनिया को पूर्णबन्दी करने पर मजबूर कर दिया।
भारत में लॉकडाउन रहते आज की तारीख में 56,342 मामले हो गए हैं 1886 मौत हो चुकी है जो कि चिंता का विषय है कल तक और भी बढ़ जायेंगे, अकेले दिल्ली में कोरोना के मामले 5000 मामले हो चुके हैं और इसके साथ ही कोरोना के मरीज दिल्ली में तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में देश की सरकार ने लॉकडाउन में जरूरी सामान, उत्पादों पर ढील देते हुए शराब के ठेके खोल दिए। इसका मतलब स्पष्ट है कि लॉकडाउन तक जो कोरोना एक अदृश्य दुश्मन था और हमारे देश का हर नागरिक एक सिपाही था, उसे अब कोरोना के आगे हथियार डाल कर उसके साथ जीने की आदत डाल ले, यह इस बात को साबित करता है कि सरकार अपनी जनता के प्रति कितनी संवेदनहीन है या फिर यह कहे कि भारत सरकार इतनी भी काबिल नहीं भारतीय जनता के एक वर्ग को दो वक्त की रोटी मुहैया करवा सके।
डॉ. अशोक कुमारी