रायपुर, 06 नवंबर 2019. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन व इससे जुड़े घटक संगठनों तथा वामपंथी किसान संगठनों ने कल राज्य सरकार द्वारा आहूत किसान संगठनों की बैठक में न बुलाये जाने की तीखी निंदा की है और कहा है कि सरकार के इस रवैये से धान खरीदी के मामले में केंद्र सरकार से लड़ने की उसकी ईमानदारी और प्रतिबद्धता पर ही सवाल खड़े हो जाते हैं।
सीबीए के संयोजक आलोक शुक्ला, नंद कुमार कश्यप, छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते, आदिवासी महासभा के मनीष कुंजाम, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष व किसान संघ के संरक्षक जनक लाल ठाकुर, क्रांतिकारी किसान सभा के तेजराम विद्रोही, छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के आई के वर्मा, आदिवासी एकता महासभा के बालसिंह, छग किसान महासभा के नरोत्तम शर्मा, राजनांदगांव जिला किसान संघ के सुदेश टीकम, बालोद जिला किसान अध्यक्ष गेंद सिंह ठाकुर, दलित आदिवासी संगठन की राजिम तांडी, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (MKS) के कलादास डहरिया, रमाकांत बंजारे , हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह अर्मो, उर्जा धानी भू विस्थापित किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेन्द्र राठोर, जन अधिकार संगठन के केशव सोरी, भारत जन आंदोलन के विजय भाई ने आज जारी बयान में कहा कि यदि अन्याय के खिलाफ जंग लड़ने का दिखावा करने के बजाए वे उन तमाम ताकतों को, जो खेती-किसानी के मुद्दे जमीनी स्तर पर संघर्ष छेड़े हुए हैं, को साथ में लेते, तो बेहतर होता।
केंद्र सरकार से धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (Paddy minimum support price) 2500 रुपये प्रति क्विंटल करने की मुख्यमंत्री बघेल की मांग से असहमति जताते हुए इन संगठनों ने कहा है कि देश का किसान आंदोलन स्वामीनाथन आयोग की सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की मांग के लिए लड़ रहा है, जो धान के
किसान नेताओं ने यह भी मांग की है कि राज्य सरकार पूर्व घोषणा के अनुसार 15 नवम्बर से ही धान खरीदी की घोषणा करें और प्रतिकूल मौसम, बारिश, नमी आदि का बहाना न बनाये। उन्होंने कहा कि नवम्बर माह में धान खरीदी न होने से किसान कम-से-कम 10 लाख टन धान का उचित मूल्य प्राप्त करने से वंचित हो जाएंगे, क्योंकि कटाई के बाद किसान घर में धान जमा करके रखने की स्थिति में ही नहीं होता।
इन संगठनों ने मंडियों में समर्थन मूल्य से नीचे धान बिकने पर भी कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि मंडी प्रशासन की नाक के नीचे किसानों की लूट हो रही है और राज्य सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। मंडियों में धान का समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। जहां समर्थन मूल्य से नीचे धान बिक रहा है, उन मंडी प्रशासन के विरूद्ध सरकार कार्यवाही करें।
किसान नेताओं ने कहा है कि छत्तीसगढ़ की जनता के साथ केंद्र सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ लड़ाई हवा में तलवार भांजकर नहीं लड़ी जा सकती। हमारे संगठन ही हैं, जो जमीनी स्तर पर किसानों, आदिवासियों और दलितों के मुद्दों पर संयुक्त रूप से संघर्ष कर रहे हैं। अतः राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के किसान संगठनों को भी इस बैठक में न बुलाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण था। शायद सरकार संगठनविहीन किसान नेताओं की मदद से इस लड़ाई को लड़ना चाहती है, तो ऐसी लड़ाई उसे ही मुबारक! यहीं कारण हैं कि प्रदेश की खेती-किसानी से जुड़े सवालों की अनदेखी यह सरकार कर रही है।
किसानों नेताओ ने जल, जंगल, जमीन, खनिज और फसल की लूट के खिलाफ केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की भूपेश सरकार की जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखने का फैसला किया है।