संघ को पता है कि सर्वोच्च न्यायालय से आने वाला न्यायिक फैसला बाबरी मस्जिद के पक्ष में जाएगा इसीलिए ये पूरा ड्रामा आम हिंदुओं को न्यायालय के खिलाफ भड़काने का है। यानी पूरी कवायद बहुसंख्यक हिन्दू समाज को मुसलमानों से नफ़रत के नाम पर संविधान के खिलाफ खड़ा करते हुए ये समझाने का है कि अगर संविधान ठीक होता यानी वो आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष होने के बजाए मनुस्मृति के निर्देशों के आधार पर बना होता तो कब का मंदिर बन गया होता यानी जब तक ये संविधान है तब तक मंदिर नहीं बन सकता।
इस तरह इस मुद्दे के बहाने संघ और उसका सवर्ण सामंती समर्थक गिरोह हमारे संविधान पर हमला करना चाहता है। क्योंकि यह संविधान उसके सवर्णवादी अहंकार को हमेशा सिर्फ चुनौती ही नहीं देता बल्कि ज़्यादा उछलने कूदने पर जेल की हवा भी खिलवा देता है।
यह महज संयोग नहीं है कि दलित उत्पीड़न रोकथाम क़ानून की घोर विरोधी जातियां और लोग ही बाबरी मस्जिद की ज़मीन पर राम मंदिर बनाने के सबसे कट्टर पैरोकार हैं। यानी इस एक मुद्दे के सहारे वो आधुनिक भारतीय राष्ट्र राज्य की 70 साल की मानवीय और सामाजिक उपलब्धियों को नष्ट कर देना चाहते हैं। उन्हें यह बात खटकती है संविधान ने कैसे सभी आदमियों को एक दूसरे के बराबर की हैसियत में लाकर उन्हें शूद्रों और अछूतों के बराबर ला दिया और इस तरह से हज़ारों साल से चले आ रहे 'रामराज' के सामाजिक संबंधों को तहस नहस कर दिया। इस अपराध के कारण ही वो कभी भी
This matter is not Hindu versus Muslim
यह महज संयोग नहीं है कि जिस सियासी प्लेटफॉर्म से पहली बार सबको समानता का अधिकार देने वाले संविधान पर हमला किया गया उसका नाम भी 'अखिल भारतीय रामराज्य परिषद' था। जिसका काम दलितों को मिले बराबरी के अधिकार का विरोध करना था।
राम मंदिर संघ- भाजपा के लिए ऐसा ही अवसर है। इसलिए ये पूरा मामला हिन्दू बनाम मुस्लिम का नहीं है जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है। अगर ऐसा होता तो मुस्लिम भी सड़क पर उतर कर मस्जिद की बात करते। लेकिन वो तो संविधान के भरोसे घर बैठा है। उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। ये पूरा मामला मनुवाद बनाम संविधानवाद का है।
क्या यह ख़बर/ लेख आपको पसंद आया ? कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट भी करें और शेयर भी करें ताकि ज्यादा लोगों तक बात पहुंचे