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फव्वारे के टूटे हुए पत्थर को शिवलिंग बता कर अफवाह फैलायी जा रही है- शाहनवाज़ आलम

दीन मोहम्मद बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट केस 1937 और 1942 में ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तय कर दिया था मंदिर और मस्जिद का दायरा

लखनऊ, 16 मई 2022। अल्पसंख्यक कांग्रेस अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने बनारस की निचली अदालत द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वे में कथित शिवलिंग मिलने के बाद उस स्थान को सील करने के आदेश को अदालत के सांप्रदायिक हिस्से और सांप्रदायिक मीडिया के गठजोड़ से देश का माहौल बिगाड़ने का षड़यंत्र बताया है।

शाहनवाज़ आलम ने आरोप लगाया कि ज़िला अदालत का सर्वे का आदेश ही पूजा स्थल अधिनियम 1991 के खिलाफ़ था। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को नज़र अंदाज़ किया।

उन्होंने कहा कि दो दिनों तक कथित सर्वे के बाद कुछ भी नहीं मिलने पर तीसरे दिन सांप्रदायिक मीडिया और इस मामले में शुरू से ही गैर विधिक रवैया अपनाये जज के सहयोग से मस्जिद में वज़ू करने के लिए बने पुराने फव्वारे के बीच में लगे पत्थर, जो कालांतर में टूट गया था, को ही टूटा हुआ शिवलिंग बताकर अफवाह फैलायी जा रही है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि देश के क़रीब सभी पुरानी और बड़ी मस्जिदों में इस तरह के फव्वारे और उसके बीच में ऐसे ही पत्थर लगे हुए हैं।

shivling india tv
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कांग्रेस नेता ने कहा कि शिवलिंग मिलने की अफवाह फैलाने के उत्साह में सतर्कता नहीं बरतने के कारण ही हर चैनल में सर्वे के आधार पर उसकी लंबाई अलग-अलग बताई जा रही है।

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शाहनवाज़ आलम ने कहा कि

  • वर्ष 1937 में बनारस ज़िला न्यायालय में दीन मोहम्मद द्वारा दाखिल वाद में ये तय हो गया था कि कितनी जगह मस्जिद की संपत्ति है और कितनी जगह मंदिर की संपत्ति है।
  • इस फैसले के ख़िलाफ़ दीन मोहम्मद ने हाई कोर्ट इलाहाबाद में अपील दाखिल की जो 1942 में  ख़ारिज हो गयी थी। इसके बाद प्रशासन ने बेरिकेटिंग करके मस्जिद और मंदिर के क्षेत्रों को अलग-अलग विभाजित कर दिया. वर्तमान वजूखाना उसी समय से मस्जिद का हिस्सा है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सवाल उठता है कि क्या 1937 और 1942 में ये कथित शिवलिंग जिसे आज सर्वे टीम खोज निकालने का दावा कर रही है, वहां मौजूद नहीं था। और अगर तब नहीं था तो आज कैसे मिल गया?

shivling aaj tak
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शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 स्पष्ट करता है कि 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थलों की जो स्थिति, कस्टडी और चरित्र था उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता। इस मामले में भी 1937 और 1942 के मुकदमों में किसी शिवलिंग की मौजूदगी अदालत को नहीं दिखी थी। ऐसे में आज सर्वे के नाम पर शिवलिंग मिलने की अफवाह फैलाकर 15 अगस्त 1947 की स्थिति को बदलने की गैर विधिक कोशिश की जा रही है। जिसमें बनारस की निचली अदालत के जज खुद शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि इतने महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार करते हुए जज ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चर्चित दीन मोहम्मद बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट मुकदमे और उसके फैसले का अध्ययन नहीं किया हो ऐसा नहीं हो सकता। इसलिए उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

Web title : Survey inside Gyanvapi Masjid: An attempt is being made to spoil the atmosphere of the country due to the nexus of the communal section of the media and the judiciary.

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