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नई दिल्ली, 09 जून 2011. स्वामी बालेन्दु जी ने बीती 22 मार्च को बाबा रामदेव को एक पत्र लिखकर पूछा था कि बाबा ये अकूत धन आपके पास कहाँ से आया? हस्तक्षेप.कॉम पर हमने स्वामी बालेन्दु जी के हालिया दो पत्र अभी प्रकाशित किये, यह पत्र प्रकाशित करना इसलिए जरूरी है ताकि वर्तमान दोनों पत्रों का तारतम्य समझा जा सके - सम्पादक हस्तक्षेप.कॉम

प्रिय बाबा रामदेव, आप योग के बहुत अच्छे प्रशिक्षक हैं, योग का भारत में प्रचार एवं प्रसार करने के लिए मैं आपको धन्यवाद एवं साधुवाद का पात्र समझता हूँ।

बहुत ही कम समय में अरबों रुपये का योग एवं आयुर्वेद का व्यापारिक साम्राज्य खड़ा करने के लिए मैं आपकी प्रशंसा करता हूँ।

आप एक अच्छे व्यापारी हैं, व्यापार चातुर्य की परिपूर्णता के साथ ही आपकी व्यापारिक सूझबूझ बेमिसाल है।

यदि आप राजनीति करने के इच्छुक हैं तो निश्चित रूप से आप एक अच्छे राजनेता भी बन सकते हैं। परन्तु अक्सर ऐसा लगता है कि इन सब के अलावा भी आपके कुछ अन्य गोपनीय उद्देश्य भी हैं, जिसकी जानकारी सर्व साधारण को नहीं है।

कई बार ऐसा लगता है कि आपका बहुमुखी व्यक्तित्व बहुत कुछ छुपा रहा है। इसका आभास केवल मुझे ही नहीं वरन सबको है। भारत की जनता एवं आपके प्रशंसक दिग्भ्रमित हो रहे हैं जो कि ये चाहते हैं कि कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाये, वह सभी यह जानना चाहते हैं कि आप वास्तव में क्या चाहते हैं ? उनके भ्रमित होने के कारणों की तरफ मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।

जब आप काले धन एवं उसको विदेशों से भारत वापिस लाने की बात करते हैं तो यह सबको अच्छा लगता है, आखिर कौन देशवासी अपने देश को समृद्ध नहीं बनाना चाहता? परन्तु शक तब उत्पन्न होता है जब हम ये सुनते हैं कि आपकी विदेशों में बहुत जायदाद है, यह

आपकी करनी एवं कथनी में विरोधाभास दर्शाता है।

काले धन को वापिस लाकर आप भारत देश की गरीबी मिटाना चाहते हैं, तो क्यूँ न इसकी शुरुआत आपकी विदेशों एवं भारत स्थित अकूत संपत्ति से हो?

क्यूँ न आप आपने अति विशाल व्यापारिक साम्राज्य के लाभ का एक बड़ा हिस्सा बच्चों को शिक्षित करने, स्कूल बनवाने, गरीब रोगियों के लिए मुफ्त अस्पताल बनवाने, चिकित्सीय सुविधाएँ उपलब्ध कराने एवं भूखे को भोजन देने में खर्च करते?  बल्कि सुनने में आता है कि आपके द्वारा बनवाया गया अस्पताल बहुत ही महंगा है जिसकी वजह से भारत का आम आदमी आपके यहाँ इलाज करवाने में सक्षम नहीं है।

संभवतः अब आप मुझे यह बताना चाहेंगे कि आप भी पारमार्थिक रूप से निशुल्क योग शिविरों का आयोजन जन साधारण के सहायतार्थ करते हैं। परन्तु मैं इसको सही मायने में परमार्थ नहीं समझता, कुछ समय पूर्व तक जब कि आप केवल एक योग प्रशिक्षक एवं व्यापारी के रूप में योग शिविरों का आयोजन करते थे तो उसमें प्रवेश के लिए लोगों को हमेशा हर जगह शुल्क देना पड़ता था।

आपके शिविर कभी भी निशुल्क नहीं थे, मेरे दृष्टिकोण से यह भी ठीक है कि लोग आपको शुल्क देकर योग की शिक्षा प्राप्त करते थे। परन्तु जब से आपने अपने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए "भारत स्वाभिमान यात्रा" की शुरुआत की तभी से आपके योग शिविर जन साधारण के लिए निःशुल्क हो गए। फलतः लोग आपके शिविरों में आकर आपका राजनीतिक भाषण सुनते हैं तथा आपकी पार्टी के स्थाई सदस्य बनते हैं और साथ ही उनको आपके द्वारा निशुल्क योग सीखने का सुअवसर प्राप्त होता है। आप इसको जन साधारण की सहायता उद्घोषित करते हैं। यह परमार्थ न होकर आपके निजी उद्देश्यों की पूर्ति हुई।

रतन टाटा भी गाड़ियां बना और बेचकर जन साधारण को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने एवं अपने गंतव्य तक पहुँचने में मदद करते हैं। परन्तु इसके द्वारा वो अपनी एवं अपनी कंपनी की भी मदद करते हैं, जिससे कि उनका धन एवं व्यवसाय बढ़ता है। बाबा रामदेव आप भी तो वही कर रहे हैं ! यह कोई जनता की निशुल्क सेवा तो है नहीं आपकी ये प्रचार यात्रायें भी आपके उद्देश्यों की पूर्ति का माध्यम हैं।

असल में आपकी राजनीतिक महात्वाकांक्षायें एवं क्रियाकलाप लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। आपकी प्रारंभिक भ्रष्टाचार विरोधी बातों ने लोगों में उत्सुकुता जगाई, फिर आपने कांग्रेस के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये।

आखिर कौन देशवासी भारत की राजनीति से भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं करना चाहता? वर्तमान कांग्रेस की सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं रोज प्रकाश में आने वाले घोटालों ने पूरे देश को बहुत ही निराश किया है, परन्तु जिस पार्टी को आप चंदा देते हो, वह भी कोई दूध की धुली नहीं है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा ही नहीं साथ ही मध्य प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के दस मंत्री भी भ्रष्टाचार के आरोपों को झेल रहे हैं। आपके अपने राज्य उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है, आपके द्वारा लगाये गए भ्रष्टाचार के आरोपों की प्रतिक्रिया स्वरूप आपके ही राज्य एवं क्षेत्र के सांसद और विधायक ने आपके खिलाफ आपके धन एवं आपके गुरु शंकरदेव के गायब होने की सीबीआई जाँच करने की मांग करी।

मैंने टीवी में सुना एवं समाचार पत्रों में पढ़ा कि आपके गुरुदेव वहीँ आश्रम में रहते थे और एक दिन अचानक ही गायब हो गए, जबकि आप उसी आश्रम में रह रहे हैं एवं काम कर रहे हैं।

अगले दिन मैंने समाचारों में सुना कि बीजेपी के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का कहना है की बाबा रामदेव के खिलाफ कोई जाँच नहीं की जाएगी। बात समझ में आने वाली है, क्यूँ कि आप बीजेपी को बड़ा चंदा देते हैं तो आखिर कोई क्यूँ आपके जैसे धनवान जो कि पार्टी को बड़ा चंदा देते हों को खोना चाहेगा।

समाचारों के द्वारा मालूम पड़ा कि किसी व्यक्ति ने RTI के माध्यम से जाना कि आप बीजेपी को बड़ी रकम चंदे मे देते हैं। यह बात भी समझी जा सकती थी कि यदि खुले रूप से आप BJP को अपना समर्थन दें, परन्तु यह बात समझ में नहीं आती कि आप बहुत ही खुले रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करते हैं और खुद ही भ्रष्ट पार्टी को दिए गए चंदे के रूप में अपने समर्थन को छिपा लेते हैं।

आप स्वयं ही बताइए कि इस देश का कोई भी नागरिक किस तरह से आपकी बात पर विश्वास करे, और कैसे जाने कि आप क्या हैं और क्या चाहते हैं ?

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आपसे पूछा कि जो धन आप दान के रूप में स्वीकार करते हैं, क्या वह सफ़ेद धन है?

क्या आप पूर्ण विश्वास से कह सकते हैं कि आपने जो अपना व्यापारिक साम्राज्य खड़ा किया है वह पूरा सफ़ेद धन से ही बना है ?

आपके पास क्या जवाब है इन सवालों का ? कुछ महीने पहले मैंने समाचार पत्रों में पढ़ा कि रतन टाटा ने खुलासा किया कि जब वह एक एयर लाइन कंपनी बनाना चाहते थे उनसे रिश्वत मांगी गयी थी।

अगले ही दिन मैंने आपका बयान पढ़ा कि आपसे भी आपके आश्रम के लिए करोड़ों की रिश्वत मांगी गयी थी, हमको पता है कि आपको प्रचार अच्छा लगता है और TV और समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों मे बने रहना अच्छा लगता है, तो भला आप इस मौके से कहाँ चूकने वाले थे, अगले ही दिन आपने भी उन्हीं के बयान का अनुसरण करते हुए उसे ही दुहरा दिया। और उन्हीं की तरह आपने भी उस व्यक्ति का नाम नहीं बताया।

मिस्टर रतन टाटा की बात तो समझ में आती है कि वो देश ही नहीं वरन दुनिया के इतने बड़े प्रतिष्ठान के मालिक हैं और बहुत सी व्यावसायिक मजबूरियों की वजह से नाम नहीं बताया। आपकी भला ऐसी क्या व्यावसायिक मजबूरियां थीं? आप तो सन्यासी हैं, बाबा हैं ! जो कि सत्य और ईमानदारी पर चलते हुए सांसारिक वस्तुओं से वैराग्य रखे। आपका क्या विचार है इस बारे में आपने भला सत्य क्यूँ नहीं बताया ? क्यूँ उस मंत्री के नाम को छिपा लिया ?

बाबा सन्यासी होते हुए भी आपके अन्दर सांसारिक, व्यापारिक मोह माया के प्रति इतनी आसक्ति क्यूँ ? और यदि आप व्यापारी हो तो अपने आपको सन्यासी क्यूँ कहते हो ?

मैंने आपको टीवी मे बड़े ही गर्व के साथ बोलते सुना कि आपका साम्राज्य हजारों करोड़ का है, अब आप बताइए कि जन साधारण क्या सोचे ? सच में यह साधारण प्रश्न सभी के दिमाग में है कि क्या आप अभी भी सन्यासी हैं ? यदि आप अपने आपको सन्यासी कहते हैं तो क्या सच में आप सन्यास धर्म का पालन करते हैं ? वह सब कुछ करते हैं जो कि एक सन्यासी को करना चाहिए ? क्या आपको अपनी व्यावसायिक व्यस्तताओं, टीवी साक्षात्कारों, अपनी पार्टी की प्रचार यात्राओं से अपने सन्यास धर्म के लिए समय मिलता है ?

हम आपके सत्य को जानना चाहते हैं, कृपया लोगों को समझने में मदद करें कि आप सन्यासी हैं या कि व्यवसायी ?

जब आप मीडिया में कहते हैं कि आप किसी संपत्ति या जायदाद के मालिक नहीं हैं, आप के पास एक इंच भूमि भी नहीं है लोग आपके शब्दों के खेल को समझ जाते हैं। यह संस्था और कंपनी आपकी ही तो है।

क्या आप यह समझते हैं कि आपके पूरे भारत में फैले हुए प्रतिष्ठानों से आपका उत्पाद खरीदने वाले भारत वासी मूर्ख है? क्या वह यह नहीं समझते कि वो आपके उत्पादों को खरीद कर केवल अपना धन ही नहीं अपना समर्थन भी आपको देते हैं। साथ ही वह यह भी देखते हैं कि आपके परिवार के सदस्य जन अचानक ही कितने धनवान हो गए और कितनी महंगी गाड़ियों में घूमते हैं।

आपका यह कथन मजाक सा प्रतीत होता है कि आपके पास कुछ भी नहीं है, जब कि कुछ ही दिन पहले मैंने टीवी समाचारों में ये आंकड़े देखे, वो कहते हैं कि आपका साम्राज्य लगभग 1152 करोड़ का है, उनके द्वारा दिया गया विवरण इस प्रकार है। 1000 एकड़ जमीन हरिद्वार में 300 करोड़ 100 एकड़ का आश्रम हरिद्वार में 100 करोड़ हरिद्वार में फ़ूड पार्क 500 करोड़ हरिद्वार में इमारत 25 करोड़ सोलन, हिमाचल प्रदेश में 96 एकड़ जमीन 20 करोड़ स्कॉट्लैंड में 750 एकड़ का संपूर्ण द्वीप 14 करोड़ हयूस्टन, अमेरिका में 99 एकड़ जमीन 98 करोड़ दवाओं की सालाना बिक्री 300 करोड़ योग की किताबें और CD की बिक्री 10 करोड़ स्पेशल योग कैंप जो कि 5000 रुपये साप्ताहिक है 50000 लोग सालाना प्रतिभागी होते है तो 25 करोड़ उससे प्राप्त होता है।

और आप लोगों को बताते हैं कि भविष्य की योजनाओं के लिए आपको अरबों रुपये की दरकार है। ये सब देख और सुन कर ऐसा लगता है कि आपकी महत्वाकांक्षाये कभी भी समाप्त नहीं होंगी।

क्या यही त्याग और वैराग्य को परिभाषित करने वाले सन्यासी का सन्यास धर्म है ?

आपकी कंपनी द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक दवाओं में मनुष्य की हड्डियाँ मिलाने का संगीन इल्जाम आपके ऊपर लग चुका है, परन्तु आप अपने प्रभाव से अपने आप एवं अपनी कंपनी को बचा कर ले गये, जैसा कि पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ने भी कुछ दिन पूर्व टीवी में कहा था कि उस समय आपका पक्ष लेते हुए आपको बचा लिया था, पर अब आगे नहीं बचायेंगे जिससे किसी हद तक ये प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं आपने एवं आपकी कंपनी ने गलत किया, क्यूँ कि यदि आप सही थे तो आपको बचाने का मतलब ही क्या ?

आप स्वयं विभिन्न अध्यात्मिक टीवी चैनलों पर आते रहे, इसी से लोंगों ने आपके नाम और चेहरे को पहचानना शुरू कर दिया। सभी को पता है इन आध्यात्मिक टीवी चैनलों का व्यवसाय, कोई भी इन चैनलों का समय स्लोट खरीद सकता है।

मैंने तो यहाँ तक सुना है कि एक आध्यात्मिक टीवी चैनल के अधिकांश शेयर आपके पास हैं, फलतः आप जो चाहें प्रसारित कर सकते हैं।

एक और बात सुनने में आई है कि आप अपना ही न्यूज़ चैनल शुरू करना चाहते हैं क्यूँ कि अन्य टीवी चैनल आपकी मनचाही कवरेज आपको नहीं देते।

अब आपही बताइए कि लोग क्या सोचें आपके बारे में ? मुझे याद है कि कुछ वर्ष पूर्व मैंने आपको टीवी पर कहते हुए सुना कि आपको विदेश जाने में कोई रूचि नहीं और यहाँ तक की आपके पास पासपोर्ट भी नहीं है।

उस समय आप पूरी तरह से भारत पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे थे और सच में ही भारत के इतर देशों से कोई लेना देना नहीं था। बहुत से लोगों को ये अच्छा लगा क्यूँ कि आप अपने ही देश के लिए अपना समय दे रहे थे।

आपके इस कथन के कुछ समय बाद आप पश्चिमी देशों की यात्राओं पर गए और आपने वहां कुछ बहुत बड़े बड़े योग के कार्यक्रम किये परन्तु आप निराश हुए होंगे कि पश्चिम के लोगों ने आपको और आपकी बातों को स्वीकार नहीं किया। सच में कहूँ तो यह आपकी स्वयं की गलती थी।

आप बहुत अजीब सा बयान देते हैं, जैसे योग कैंसर को ठीक कर सकता है। यदि आपने यह कहा होता कि योग कैंसर को ठीक करने में सहायक हो सकता है तो बात समझी जा सकती थी। परन्तु विकसित देशों के शिक्षित लोंगों को ये पता है कि आपका कथन सच नहीं है, इसके साथ ही सेक्स एवं समलैंगिकता जैसे विषयों पर आप बहुत ही संकीर्ण मानसिकता के साथ उसे गलत ठहराते हैं।

पश्चिमी देशों के योग प्रेमियों ने आपके इस विचार को गलत बताते हुए आपकी तुलना पोप से कर डाली कि पोप भी तो यही कहते हैं।

आपके लिए ये ही अच्छा था कि आप अपने देश लौट आयें जहाँ आपको आपकी विचारधारा के अनुयायी मिल ही जायेंगे। निश्चित ही आपके बहुत से विचार मेरे से नहीं मिलते और मैं उन्हें अपना समर्थन नहीं देता, आपने जो योग के क्षेत्र में कार्य किया उससे मेरे मन में आपके लिए बहुत सम्मान था। अच्छा होता अगर आप वही बने रहते परन्तु आपकी महत्त्वाकांक्षाओं ने जन साधारण को आपका एक व्यावसायिक एवं एक राजनीतिक चेहरा भी दिखा दिया।

क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि दिन पर दिन आपकी लोकप्रियता का स्तर गिरता जा रहा है, लोगों के मन में शक उत्पन्न हो रहे हैं एवं आप के ऊपर उँगलियाँ उठ रहीं हैं ? क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आपने उसी शाखा को काटा जिस पर कि आप बैठे थे, और लोगों के मन में शक का बीज डाल दिया।

मुझे बहुत दुख होता है आपके लिए, क्या आपको नहीं होता ? मैंने भी आपको योग के क्षेत्र में अच्छे कार्य करने के लिए अपना समर्थन दिया होता परन्तु इन सभी शंकाओं के चलते मैं आपका समर्थन नहीं कर सकता !

मैं बहुत खुश होता यदि आपने अपने धन से भी परमार्थ का कुछ कार्य किया होता परन्तु ऐसा लगता है कि आप बहुत बड़े व्यवसायी हैं और अपने धन को परमार्थ के बजाय अपने व्यवसाय में निवेश करना ज्यादा उचित समझते हैं।

यदि आप इन सब बातों पर ध्यान दें तो आपको समझ में आयेगा कि लोगों का आपमें अविश्वास क्यूँ बढ़ रहा है? और उन्हें ऐसा लगता है कि आपकी सोच स्वयं की शक्ति और धन बढाने पर केन्द्रित होती है न कि देशहित में।

मैं आशा करता हूँ कि लोग यह न सोचें कि मैं कांग्रेस पार्टी का समर्थक हूँ, मेरी राजनीति या किसी पार्टी विशेष में कोई रूचि नहीं है और न ही मैं किसी पार्टी को किसी भी प्रकार का चन्दा या समर्थन देता हूँ।

मैं जो भी कहा रहा हूँ ये केवल मेरे ही दिल की नहीं वरन् करोड़ों भारतीयों के दिल की आवाज है, जो कि आपसे इन सवालों को पूछ रही है ?

मैं आपको कोई दुश्मन नहीं समझता और ना ही आपका विरोध कर रहा हूँ, मैं तो बस ये जानना चाहता हूँ कि आप चाहते क्या हैं ?

आप जो गुरु जीवन व्यतीत कर रहे हैं, मैं बहुत सालों तक वही कर के अब पिछले कई सालों से उस गुरु जीवन, शिष्यों तथा अनुयायियों के साथ-साथ अपने धर्म को भी छोड़ चुका हूँ।

मैं अब एक बहुत ही खुशहाल विवाहित व्यवसायी हूँ, भारत सरकार को टैक्स अदा करता हूँ और राजनीति से कोई वास्ता नहीं रखता।

मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ जिसके अकाउंट में न तो कोई करोड़ों हैं और न ही कोई आपकी तरह व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा करने की इच्छा है।

मैं यह भी कर सकता था यदि भारत जैसे धार्मिक देश में गुरु बन कर रहता। परन्तु मैंने यह न कर के अपने दिल की आवाज को सुना जिसने की वही कहा जो कि कबीर ने कहा है। "साहिब इतना दीजिये जा में कुटुंब समाये। मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाये।"

तो यदि कल को आप मेरे घर आयें तो आपको भी भूखा न लौटना पड़े।

मेरे कहने का मतलब ये है कि मैं प्रेम और ईमानदारी से रहना चाहता हूँ और शांति से मरना चाहता हूँ।

आप ये भी समझ सकते हैं कि मैं एक साधारण आदमी हूँ और इन प्रश्नों के रूप में भारत की जनता के प्रश्नों को आपके समक्ष रख रहा हूँ।

मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि आप क्या बनना चाहते हैं ? एक योग प्रशिक्षक, एक व्यवसायी अथवा एक राजनीतिज्ञ और या फिर एक ही समय में ये तीनों ?

आप जो कुछ भी करना चाहते हों उसे ईमानदारी से करें, ये मेरा आपसे अनुरोध है। लोंगों के शक, झूठ का पता लगा लेते हैं, कोई भी जमीन, जायदाद और अपराध को छुपा नहीं सकता, वो सामने आकर झूठ के किले को ध्वस्त कर देता है।

मैं आशा करता हूँ कि आप और आपके अनुयायी मेरी बातों का सही और वही अर्थ समझेंगे जिस मतलब से ये बातें कही गयीं हैं। और मुझसे नाराज नहीं होंगे, मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें जिस भी रास्ते पर आप जाना चाहें।

आपको बहुत बहुत प्रेम

स्वामी बालेन्दु