सितम्बर-अक्टूबर माह में जीका वायरस का कहर (zika virus in india), उसके बाद डेंगू (Dengue- हड्डीतोड़ बुखार) के चलते हुई दर्जनों मौतें और अब राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचलप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, तेलंगाना सहित देश के कई राज्यों में स्वाइन फ्लू (Swine flu) के लगातार बढ़ते मामले और सैंकड़ों मौतें हो जाने से देशभर में हड़कम्प मचा है। विभिन्न राज्यों में इस बीमारी के अब तक दस हजार से भी अधिक मामले सामने आ चुके हैं और स्वाइन फ्लू सैंकड़ों लोगों को लील चुका है, अनेक लोग विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। तमाम अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से लैस (Equipped with state of the art medical facilities) देश की राजधानी दिल्ली में ही प्राणघातक बनती जा रही इस बीमारी के 2000 से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इसका सर्वाधिक कहर राजस्थान में देखा गया है, जहां इसके चलते बहुत सारे लोग काल का ग्रास बन चुके हैं।
मामला सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं है बल्कि दूसरे कई राज्यों में भी कमोबेश यही हालात हैं। यहां तक कि दिल्ली जैसे महानगर में भी एम्स (Aims), सफदरजंग (Safdarjung), राममनोहर लोहिया (Ram Mannohar Lohia), लोकनायक (Loknayak), जीटीबी (GTB) इत्यादि सभी अस्पतालों में स्वाइन फ्लू के सैंकड़ों मरीज लगातार पहुंच रहे हैं। प्रतिवर्ष देश के अनेक इलाकों में खासकर सर्दी के मौसम में स्वाइन फ्लू का कहर (Swine flu havoc during winter) देखने को मिलता है क्योंकि इस बीमारी का वायरस ठंड में ज्यादा फैलता है।
स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता पैदा किया जाना सबसे जरूरी है किन्तु प्रतिवर्ष सैंकड़ों
दरअसल हमारे यहां जब भी स्वाइन फ्लू या अन्य किसी ऐसी ही बीमारी का प्रकोप सामने आता है तो सरकारें एकाएक नींद से जागती हैं और सख्त कदम उठाने की बातें शुरू हो जाती हैं लेकिन ऐसे सख्त कदम प्राय: तभी उठाए जाते हैं, जब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका होता है और जैसे ही मामला थोड़ा नियंत्रण में आता है, बीमारी का अगला प्रकोप सामने आने तक वही सुस्त रवैया शुरू हो जाता है।
देश में सरकारों और स्वास्थ्य तंत्र के काम करने की सुस्त प्रवृत्ति अक्सर बहुत घातक सिद्ध होती रही है। 2015 में राजस्थान में स्वाइन फ्लू का व्यापक कहर बरपने के बाद वहां स्वाइन फ्लू की मॉनिटरिंग, प्रीवेंशन एवं नियंत्रण के लिए प्रदेश स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया गया था किन्तु कितनी हैरानी की बात है कि उस टास्क फोर्स की कभी एक बैठक तक नहीं हुई।
मौसम परिवर्तन के साथ विभिन्न मौसमी बीमारियां कई बार महामारी का रूप लेकर सामने आती हैं और ऐसे में न केवल अनेक बेशकीमती जानें चली जाती हैं बल्कि विभिन्न राज्यों का मूलभूत स्वास्थ्य और उपचार तंत्र भी चरमरा जाता है। ऐसे अवसरों पर हर बार सरकारों द्वारा सिर्फ अलर्ट जारी करने से ही बात नहीं बनने वाली, बल्कि होना तो यह चाहिए कि आम लोगों में स्वाइन फ्लू सहित अन्य बीमारियों को लेकर जो खौफ विद्यमान रहता है, उसे सरकारों द्वारा जागरूकता में बदलकर लोगों को समय पर किसी भी बीमारी का सही इलाज करने को प्रेरित किया जाए ताकि ऐसी बीमारियों को आसानी से परास्त किया जा सके।
बात अगर स्वाइन फ्लू की करें तो इस वायरस के जींस उत्तरी अमेरिका के सूअरों से पाए जाने वाले जींस जैसे ही होते हैं, इसीलिए इसे 'स्वाइन फ्लू' कहा जाने लगा। हालांकि पहले माना जाता था कि इस बीमारी के संक्रमण में सूअरों की ही भूमिका होती है किन्तु बाद में स्पष्ट हो गया कि यह व्यक्ति से व्यक्ति में भी आसानी से फैलती है। हालांकि विश्व में स्वाइन फ्लू का पहला मरीज मैक्सिको में 1918 में मिला था, जिसके बाद कुछ यूरोपीय देशों में भी इसके मरीज मिलते रहे।
'स्पैनिश फ्लू' नामक ऐसी ही महामारी 1918 से 1919 के दौरान 50 करोड़ लोगों में फैली थी, जब इस वायरस के संक्रमण के चलते करीब पांच करोड़ लोगों के मारे जाने का अनुमान है, जिनमें साढ़े छह लाख से अधिक अमेरिकी थे। वर्ष 2009 में दुनिया के अनेक देशों में स्वाइन फ्लू एक महामारी की भांति फैला, जब पहली बार दुनियाभर में लाखों लोग इससे संक्रमित हुए थे। भारत में ही 2009 में शुरू हुए इसके संक्रमण के बाद मई 2010 तक 10913 लोग इसके शिकार हुए, जिनमें से 1035 मौत के मुंह में समा गए थे। हालांकि 10 अगस्त 2010 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस महामारी के खत्म होने की घोषणा कर दी गई थी किन्तु इस बीमारी का जड़ से खात्मा करने में सफलता नहीं मिली और हर साल यह बीमारी भारत सहित अन्य देशों में भी हजारों लोगों के लिए काल बन रही है।
संक्रमण प्राय: रोगी द्वारा छींकने या खांसने से निकली द्रव बूंदों या फिर ऐसे व्यक्ति द्वारा मुंह अथवा नाक पर हाथ रखकर उन्हीं हाथों से किसी भी वस्तु को छूने पर संक्रमित हुई वस्तु के जरिये दूसरे व्यक्तियों को हो सकता है तथा संक्रमित होने के पश्चात एक से सात दिन में इसके लक्षण सामने आते हैं। यह वायरस दरवाजे के हैंडल, टेबल तथा अन्य सतहों पर भी जीवित रहने में सक्षम है, इसलिए ऐसी सतहों के सम्पर्क के माध्यम से यह आसानी से अन्य लोगों में फैल सकता है।
जैसे-जैसे स्वाइन फ्लू शरीर में फैलता है, रोगी की भूख कम होने लगती है। पिछले कुछ वर्षों में इस बीमारी ने ऐसी दहशत फैलाई है कि यदि किसी परिजन या परिचित को भी यह बीमारी हो जाती है तो हमारे मन में भी इस बीमारी को लेकर खौफ पैदा हो जाता है कि कहीं यह बीमारी हमें भी अपने शिकंजे में न जकड़ ले। हालांकि स्वाइन फ्लू का वायरस प्राय: इतना खतरनाक नहीं होता, जितना हम इसके नाम से डरते हैं। बहुत से मामलों में तो स्वाइन फ्लू खांसी तथा बुखार के इलाज से ही ठीक हो जाता है लेकिन कुछ मामलों में समय पर उचित इलाज न मिलने से मौत भी हो सकती है।
स्वाइन फ्लू के लक्षण बच्चों, वयस्कों, गर्भवती महिलाओं या अन्य रोग से पीड़ित व्यक्तियों में अलग-अलग देखने को मिलते हैं किन्तु प्रारंभिक लक्षण प्राय: एक जैसे ही होते हैं।
स्वाइन फ्लू के लक्षण एकाएक उभरते हैं। इसके लक्षणों में खांसी, जुकाम, गले की खराश व जलन, बुखार, शरीर में कंपकंपी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, पेट दर्द, थकावट, छाती में भारीपन, जी मिचलाना, उल्टी, दस्त, डायरिया, सांस लेने में तकलीफ इत्यादि शामिल हैं।
चिकित्सकों द्वारा रोगी की स्थिति तथा लक्षणों के आधार पर स्वाइन फ्लू को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में जुकाम, खांसी तथा गले में खराश के लक्षण सामने आते हैं और ऐसी स्थिति में रोगी को चिकित्सकीय परामर्श के साथ पर्याप्त आराम की सलाह दी जाती है। दूसरी श्रेणी में इन लक्षणों के साथ सौ डिग्री या उससे अधिक बुखार भी आता है और ऐसे में रोगी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है। तीसरी श्रेणी में रोगी को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगती है। यह स्थिति गंभीर होती है क्योंकि इस स्थिति में स्वाइन फ्लू का वायरस फेफड़ों पर वार करने के बाद रोगी के लीवर, किडनी, हृदय तथा मस्तिष्क पर भी हमला करता है।
स्वाइन फ्लू होने पर क्या करें What to do if swine flu
यदि किसी व्यक्ति को अपने शरीर में स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखाई दें तो घबराने के बजाय उसके लिए यह जान लेना जरूरी है कि इसका इलाज संभव है। चिकित्सकों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को सर्दी, खांसी, बुखार के साथ डायरिया भी हो जाए तो यथाशीघ्र स्वाइन फ्लू की जांच करा लेनी चाहिए। यदि रोगग्रस्त हो भी जाएं तो कुछ ऐसी सावधानियां अवश्य बरतें ताकि दूसरे लोग इसके संक्रमण से बच सकें। खांसते या छींकते समय मुंह व नाक पर डिस्पोजेबल नैपकिन रखें और उन्हें सावधानी से डस्टबिन में डाल दें। आंख, नाक, मुंह छूने के पश्चात् किसी भी वस्तु को छूने से पहले हैंड सैनिटाइजर या साबुन से अच्छी तरह साफ कर लें। रोगग्रस्त हो जाने पर खूब उबला हुआ पानी पीयें और पोषक भोजन व फलों का सेवन करें लेकिन आलू, चावल इत्यादि स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थों व शर्करायुक्त पदार्थों का सेवन कम करें।
ऑफिस या भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाने के बजाय घर पर ही आराम करें और पर्याप्त नींद लें। कुछ ऐसी सावधानियां भी बेहद जरूरी हैं, जो इस बीमारी से बचाए रखने में मददगार साबित हो सकती हैं। स्वाइन फ्लू प्रभावित क्षेत्रों में खांसी, जुकाम व बुखार के रोगी से यथासंभव दूरी बनाकर रहें। जब कोई छींक रहा हो या खांस रहा हो तो मुंह व नाक ढंककर रखें। संभव हो तो घर से बाहर निकलते समय फेसमास्क पहनकर ही निकलें। स्वाइन फ्लू से बचाव ही इसे रोकने का सबसे आसान और कारगर तरीका है और इसके लिए सबसे जरूरी है मीडिया सहित विभिन्न प्रचार माध्यमों के जरिये आमजन को इसके प्रति जागरूक करना।