नई दिल्ली। इतनी बड़ी हार के लिए भाजपा का अपना डर और स्वार्थ की राजनीति मुख्य रूप से ज़िम्मेदार रही। पूरा देश फतह कर लेने वाली भाजपा... दिल्ली की सात की सात लोकसभा सीटें जीत लेने वाली भाजपा... लोकसभा चुनाव में 70 में से 60 विधानसभा सीटों पर आगे रहने वाली भाजपा ने लोकसभा चुनाव के फौरन बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव क्यों नहीं कराया?
ख़ासकर तब, जबकि केजरीवाल उस वक्त बुरी तरह से डरे हुए थे, उनका मनोबल ध्वस्त हो चुका था, वे राज्यपाल से विधानसभा भंग न किए जाने की गुहार लगा रहे थे, सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को दोबारा रिझाने की कोशिश कर रहे थे। युद्ध और राजनीति में विरोधी पर वार करने का सबसे सही समय वही होता है, जब वह पस्त हो, लेकिन भाजपा ने आम आदमी पार्टी को दोबारा खड़ा होने का मौका दे दिया।
उस समय भाजपा ख़ुद जोड़-तोड़ से सरकार बनाने की घटिया राजनीति में उलझ गई। इसी कोशिश में उसने काफी वक़्त बर्बाद कर दिया। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए, लेकिन दिल्ली में उसने चुनाव कराने में और देर की। इसका नतीजा यह हुआ कि पहले भाजपा पर स्वार्थ हावी था, फिर डर हावी होने लगा।
इसी डर की वजह से दिल्ली में हर्षवर्द्धन जैसे सबल और साफ़-सुथरी छवि के लोकप्रिय नेता के रहते उसने चुनाव से 20 दिन पहले किरण बेदी को इम्पोर्ट किया और पार्टी में असंतोष की आग भड़का ली। मनोज तिवारी जैसे नेताओं ने आवाज़ उठाने की कोशिश भी की, लेकिन उन आवाज़ों को दबा
फालतू का दिखावा भी किया।
ओबामा के आगे-पीछे भी घूमे। टप-टप लार भी टपकाई। अलग-अलग नेताओं ने उल्टे-पुल्टे बयान भी दिये। कुछ सड़क-छाप नेताओं के सांप्रदायिक बयान भी आए। सारे दांव उल्टे पड़े। कुल मिलाकर, मई 2014 से लेकर फरवरी 2015 तक उसने क्रमशः अपनी स्थिति कमज़ोर की और आम आदमी पार्टी ने अपनी स्थिति मज़बूत की।
आम आदमी पार्टी पर उसका कोई हमला कारगर नहीं हुआ। जब उसने कहा कि केजरीवाल अपने वादे पूरे नहीं कर सके और कुर्सी छोड़कर भाग गए, तो लोगों ने पूछना शुरू किया कि जो वादे आपने किये थे, उनका क्या हुआ? लोगों के एकाउंट में अब तक क्यों नहीं आए 15 लाख रुपये? क्यों नहीं सुधरी दिल्ली में कानून-व्यवस्था? क्यों नहीं लगा भ्रष्ट अफसरों और पुलिस के द्वारा आम आदमी को सताए जाने पर लगी रोक?
ऐसे में, नतीजा अप्रत्याशित ज़रूर लग रहा है, लेकिन यह तो होना ही था!
बहरहाल, क्या भाजपा इस हार से सबक लेगी? इस देश को अब साफ-सुथरी राजनीति और काम करने वाली सरकार चाहिए, जो जनता के रोज़मर्रा की मुश्किलें हल कर सकें। उन्हें लंबी-चौड़ी डींगे हांकने वाले लोग नहीं चाहिए। शायद मोदी और शाह इस बात को समझें और अपनी सोच और कार्यशैली में बदलाव लाएं।
अभिरंजन कुमार