अब तक अधिकतर लोग यह समझते थे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एक विशेषज्ञ संस्था है, पर इसके एग्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष पद पर डॉ हर्षवर्धन का एक साल के लिए जाना कम से कम ये दर्शाता है कि यह संगठन पूरी तरह से राजनैतिक रंगों वाला है.
एक ऐसा व्यक्ति जो पेशेवर चिकित्सक होते हुए भी देश के पर्यावरण से सम्बंधित विश्व स्वास्थ्य संगठन की ही रिपोर्ट (World Health Organization report related to the country's environment) को लगातार नकारता रहा हो, अनेकों बार खुले आम कह चुका हो कि प्रदूषण से कोई नहीं मरता, लम्बे समय से देश के स्वास्थ्य मंत्री पद पर बने रहने के बाद भी स्वास्थ्य व्यवस्था में कोई सुधार नहीं कर पाया हो, कोविड-19 के सन्दर्भ में राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ इक्का-दुक्का बैठक के अलावा कुछ भी नहीं किया हो और मुजफ्फरपुर के चमकी बुखार के मामले में भी राजनीति करने से बाज नहीं आया हो – अब इसी संगठन में अध्यक्ष बन के पहुँच गया है.
डॉ हर्षवर्धन किसी चिकित्सा पद्धति से नहीं बल्कि योग और इसी तरह के अन्य तरीकों से कोविड-19 के इलाज (Covid-19 treatment) के भी पक्षधर रहे हैं.
कोविड 19 के मसले पर भी डॉ हर्षवर्धन का योगदान कहीं नजर नहीं आता. जिस दिन उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के एग्जीक्यूटिव बोर्ड का पाद ग्रहण किया, उसी दिन भारत में किसी भी दिन की तुलना में सर्वाधिक मामले दर्ज किये गए. शायद इसी आंकड़े को छुपाने के लिए एकाएक हरेक सरकारी पिट्ठू मीडिया पर दिनभर खबर चलती रही कि यदि लॉकडाउन नहीं लगता तो करोड़ों लोग मरते.
इससे पहले उनका मंत्रालय बताता रहा कि 16 मई के बाद देश में नए मरीज आने बंद हो जायेंगें, पर दुनिया ने इसका ठीक उल्टा देखा. डॉ हर्षवर्धन जिस भी मंत्रालय में रहे, वहां केवल
दिल्ली और पूरा उत्तर भारत लगातार वायु प्रदूषण की चादर में घिरा रहता था, पर पर्यावरण मंत्री की हैसियत से डॉ हर्षवर्धन को कभी कोई समस्या नजर नहीं आयी. उन्होंने संसद को बताया कि प्रदूषण से कभी कोई मरता नहीं है, क्योंकि किसी के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह नहीं लिखा है.
बड़े जोर शोर से दुनिया को यह बताने के लिए कि वे प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रतिबद्ध हैं, क्लीन एयर प्रोग्राम शुरू किया था, जिसका आज तक कोई नतीजा नहीं निकला. प्रदूषण से सम्बंधित कानूनों में ढील भी खूब दी गई.
विज्ञानं और प्रोद्योगिकी मंत्री की हैसियत से उन्होंने विज्ञान को देश से गायब करने का खूब काम किया. उनका विज्ञान वेदों, पुराणों और धार्मिक ग्रन्थ में सिमट कर रह गया.
प्रतिष्ठित इंडियन साइंस कांग्रेस के अधिवेशन भी राजनेताओं और फर्जी वैज्ञानिकों के अड्डे बन गए. इन अधिवेशनों में विज्ञान की चर्चा ही बंद हो गई. उनके जमाने में टेस्ट ट्यूब बेबी आधुनिक विज्ञान की देन नहीं रह गया बल्कि महाभारत कालीन हो गया. विज्ञान के अनुसंधान के नाम पर गौमूत्र और इसी तरह के अन्य विषयों पर सरकार पैसे लुटाने लगी.
कोविड-19 के दौर में भी उन्ही की पार्टी के लोग गौमूत्र और गोबर के लेप से चिकित्सा की बात करते रहे, पर डॉ हर्षवर्धन चुप बैठे रहे.
प्रधानमंत्री हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को कोविड-19 की दवा बताकर उसका व्यापार बढाते रहे, दुनियाभर में खैरात बाँटते रहे, पर हमारे माननीय स्वास्थ्य मंत्री चुपचाप बैठे रहे. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग पर चिंता जताई थी. संगठन टेस्ट पर लगातार जोर देता रहा, पर स्वास्थ्य मंत्री को कभी इसकी जरूरत ही नहीं महसूस हुई. उन्हें कोविड 19 का कम्युनिटी विस्तार आज तक नहीं पता चल रहा है.
स्वास्थ्य मंत्री का आकलन देखिये, जब 800 भी मामले भारत में नहीं थे, तब सख्ती से लॉकडाउन का पालन किया गया, और अब जब सवा लाख से अधिक मामले हो चुके हैं तब लॉकडाउन केवल नाम का रह गया है.
डॉ हर्षवर्धन केवल अपनी मंत्री की कुर्सी सुरक्षित रखना जानते हैं, और इसके लिए अपने मंत्री वाले विभाग की पूरी उपेक्षा करते हैं. उन्होंने एक ही महत्वपूर्ण काम आज तक किया है और वह है प्रधानमंत्री जी को खुश रखना.
प्रधानमंत्री जी तो अवैज्ञानिक विषयों से बंधे हैं और देश को टाक पर रखकर केवल अपने पार्टी के हितों को साधते हैं, डॉ हर्षवर्धन भी यही करते हैं.
अब इतना तो स्पष्ट है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन केवल वह काम करेगा जिससे अमेरिका जैसे देश खुश रहें, और छोटे गरीब देश मरते रहें.
महेंद्र पाण्डेय
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