यह व्यवस्था वास्तव में सड़ चुकी है, जिसमें इंसानियत व मानवता के लिए कोई जगह नहीं है। जिंदा आदमी तो दूर, लोग यहाँ लाश को भी अपनी गंदी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। आज जब पूरे विश्व में कोविड-19 एक खतरनाक बीमारी के रूप में सामने आया है (Covid-19 has emerged as a dangerous disease all over the world) और पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था डगमगा चुकी है। कोविड-19 का अब तक कोई भी वैक्सीन (Covid-19 Vaccine) नहीं बन पाने के कारण इस बीमारी से बचने के लिए लगभग सभी प्रभावित देश सोशल डिस्टेन्सिंग का सहारा ले रही है। इस महामारी से अबतक लाखों लोग मर चुके हैं और इस बीमारी से फैली अव्यवस्था के कारण भी इससे कम लोग अपनी जान नहीं गंवाए होंगे, यह भी एक सत्य है।
कोरोना महामारी के इस दौर में हमारे देश में अतिदक्षिणपंथी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर चलने वाली भाजपा की सरकार है और यहाँ के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी आरएसएस की शाखा के ही प्रशिक्षित कैडर हैं। आरएसएस की विचारधारा व लक्ष्य आज किसी से छुपा नहीं है, यह भगवा संगठन इस महामारी के दौर में भी अपनी पूरी ताकत से अपने लक्ष्य 'हिन्दू राष्ट्र' को पाने के लिए जी-जान से जुटी हुई है।
हमारे देश में कोरोना महामारी फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराना भी आरएसएस के अपने वृहत लक्ष्य का ही एक हिस्सा है। आज पूरे देश में मुसलमानों के प्रति नफरत की ज्वाला धधकायी जा रही है, अपने इस नापाक उद्देश्य को पूरा करने के लिए जमकर सोशल
खैर, मैं इस लेख के माध्यम से आपका ध्यान दूसरी ओर आकृष्ट करना चाहता हूं। वह घटना इस प्रकार है, 12 अप्रैल को दिन के लगभग 9 बजे झारखंड की राजधानी रांची के रिम्स अस्पताल में एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु (One corona infected person dies in Rims Hospital, Ranchi) हो गई । इनकी मृत्यु के बाद केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय व डब्ल्यूएचओ के गाइडलाइन के अनुसार ही रांची प्रशासन ने इस लाश को दफनाने की प्रक्रिया शुरु की।
प्रशासन ने फैसला किया कि लाश को बरियातू स्थित जोड़ा तालाब के इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी स्थित कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा। वहाँ लाश को दफनाने के लिए जेसीबी से गड्ढा भी खोदा गया, लेकिन स्थानीय लोगों के अचानक विरोध के कारण वहाँ लाश दफनाना स्थगित कर दिया गया।
वैसे, अंजुमन इस्लामिया के महासचिव हाजी मुख्तार अहमद का कहना है कि बरियातू के सत्तार कॉलोनी स्थित कब्रिस्तान में शव दफनाने को लेकर कोई विवाद नहीं था, प्रशासन ने यहाँ कम जगह होने के कारण यहाँ शव दफनाना रद्द किया। लेकिन अखबारों में बरियातू में भी शव नहीं दफनाने को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन की तस्वीर छपी है, इसका मतलब यही है कि यहाँ भी विरोध के कारण ही लाश नहीं दफनाया जा सका।
इसके बाद प्रशासन ने रातू रोड स्थित कब्रिस्तान में दफनाने का निर्णय लिया। लोगों का कहना है कि प्रशासन का यह निर्णय बहुत ही तेजी से रातू रोड पहुंच गई और प्रशासन के पहुंचने से पहले ही लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाते हुए सैकड़ों महिला-पुरुष रातू रोड स्थित कब्रिस्तान पहुंच गये और कब्रिस्तान को घेरकर विरोध प्रदर्शन करने लगे।
लोगों का कहना था कि कोरोना का संक्रमण कैसे फैलेगा, यह कहना मुश्किल है। इसलिए हम जान दे देंगे लेकिन यहाँ शव दफनाने नहीं देंगे। यहाँ भी प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों की मांगों को मानते हुए शव दफनाये बगैर वापस आ गई।
फिर प्रशासन ने डोरंडा स्थित कब्रिस्तान का रूख किया, लेकिन वहाँ भी स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन के कारण प्रशासन को पीछे हटना पड़ा।
बाद में अफवाह उड़ी कि जोमार नदी के पास शव को दफनाया या जलाया जाएगा, वहाँ भी काफी संख्या में लोग जमा होकर विरोध प्रदर्शन करने लगे, लेकिन वहाँ प्रशासन पहुंचा ही नहीं। आखिरकार रात के लगभग एक-डेढ़ बजे मृतक के अपने मोहल्ले हिन्दपीढ़ी के बच्चों के कब्रिस्तान में ही दफनाया गया।
बीबीसी न्यूज पोर्टल पर 18 मार्च 2020 के प्रकाशित खबर “कोरोना वायरस: क्या शव से भी संक्रमण का ख़तरा है?” के अनुसार "कोरोना वायरस के संक्रमण से किसी की मृत्यु होने के बाद उसके शव का प्रबंधन कैसे किया जाए और क्या सावधानियाँ बरती जाएं, इस बारे में भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ दिशा-निदेश जारी किए हैं.
राजधानी दिल्ली में एक बुज़ुर्ग महिला की COVID-19 के कारण मृत्यु होने के बाद लोगों में यह भ्रम देखने को मिला था कि उनके शव के अंतिम संस्कार से भी संक्रमण फैल सकता है।
इस घटना के बाद दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग ने यह दावा किया कि शव के अंतिम संस्कार से कोरोना वायरस नहीं फैलता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के दख़ल के बाद चिकित्सकों की एक टीम की निगरानी में महिला का अंतिम संस्कार किया गया था। इस पूरे मामले को देखते हुए ही भारत सरकार ने नेशनल सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (एनसीडीसी) की मदद से ये दिशा-निर्देश तैयार किए हैं।
18 मार्च 2020 को प्रेस से बात करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनसीडीसी के हवाले से कहा कि 'जिस तरह की गाइडलाइंस निपाह वायरस के संक्रमण के समय जारी की गई थीं, COVID-19 के लिए उन्हीं में कुछ बदलाव किए गए हैं।
चूंकि COVID-19 एक नई बीमारी है और वैज्ञानिकों के पास फ़िलहाल इसकी सीमित समझ है। इसलिए महामारियों से संबंधित जो समझ अब तक हमारे पास है, उसी के आधार पर ये गाइडलाइंस (COVID-19 guidelines in Hindi) तैयार की गई हैं।'
मरीज़ के शरीर में लगीं सभी ट्यूब बड़ी सावधानी से हटाई जाएं. शव के किसी हिस्से में घाव हो या ख़ून के रिसाव की आशंका हो तो उसे ढका जाए.
1.भारत सरकार के अनुसार COVID-19 से संक्रमित शव को ऐसे चेंबर में रखा जाए जिसका तापमान क़रीब चार डिग्री सेल्सियस हो.
शव को ले जाने वालों के लिए :
कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मौत (Corona infected person dies) के बाद की प्रक्रिया पर केन्द्र सरकार की एक स्पष्ट गाइडलाइन है, फिर भी रांची प्रशासन बार-बार भीड़ के सामने क्यों बेबस नजर आया ? झारखंड सरकार के एक भी मंत्री ने कोरोना संक्रमण के बारे में फैले हुए झूठे अफवाह से आक्रोशित जनता को समझाने का प्रयास क्यों नहीं किया ? प्रशासन की हर अगली योजना के बारे में मोहल्ले वाले कैसे अवगत होते रहे ? वे कौन लोग थे, जो जनता को लाश नहीं दफनाने को लेकर उकसा रहे थे ? आखिर कोरोना से संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु के बाद की गाइडलाइन को लेकर अब तक जनता को जागरूक क्यों नहीं किया गया है ? ऐसे कई सवाल हैं, जो झारखंड सरकार को कठघरे में खड़ा करती है।
लाश को दफनाने को लेकर देर रात तक चले इस घटनाक्रम ने इंसानियत को तो तार-तार किया ही, साथ में आने वाले समय की भयावहता ने भी लोगों को सोचने को मजबूर कर दिया है।
संघ के एजेंडे से प्रभावित होते हुए कुछ लोग सोशल साइट्स पर इस विरोध प्रदर्शन को उचित ठहराने लगे और कोरोना संक्रमित शव को इलेक्ट्रिक शवदावगृह में जलाने की वकालत भी करने लगे और इसके पीछे यह तर्क दिया जाने लगा कि साइन्टिफिक तरीके से यही सही है। लेकिन जब ऐसे लोगों से कोरोना संक्रमित शव के बारे में डब्ल्यूएचओ या किसी स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन मांगी गयी, तो ऐसे लोग कट लिये।
रांची स्थित 'श्री महावीर मंडल डोरंडा' केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष संजय पोद्दार व मंत्री पप्पू वर्मा ने तो उपायुक्त को आवेदन देकर किसी भी कोरोना संक्रमित शव की अंत्येष्टि शहर से बाहर करने की ही मांग कर डाली।
आज जिस तरह से 'गोदी मीडिया' और आरएसएस के लगुवे-भगुवे मुसलमानों के प्रति नफरत उगल रहे हैं, उसमें मुसलमानों को समाज से अलग-थलग करने की पूरी तैयारी है। इसीलिए कभी सीएए, एनआरसी और एनपीआर, तो अभी कोरोना महामारी में भी उनको ही निशाना बनाया जा रहा है।
दरअसल आज दुनिया आत्मकेन्द्रित होती जा रही है और इस शोषण व लूट पर टिकी इस व्यवस्था के पोषणकर्ता यह कभी भी नहीं चाहेंगे कि लोग सामूहिकता में किसी भी विषम परिस्थितियों से टक्कर ले। हमारे जैसे अर्द्ध-औपनिवेशिक और अर्द्ध-सामंती व्यवस्था वाले देश में तो गरीब जनता के सामने महामारी से ज्यादा अपने आप को भूख से बचाने की चिंता है और ऐसी परिस्थिति में दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा फैलाये जा रहे संगठित अफवाह के कारण जनता के आपस में लड़ने की स्थिति तैयार की जा रही है। ऐसे में इस बदबूदार हो रहे व्यवस्था की बदबू और इस बदबू को फैलाने वाली ताकतों को भी आज खुली आँखों से साफ देखा जा सकता है। आज जनता को आपस में लड़ने के बजाय अपनी लड़ाई का विपक्ष इस बदबूदार व्यवस्था के पालनहारों को बनाना होगा, तभी भविष्य में हम एक प्रेममयी दुनिया को देख पायेंगे।
रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार