महात्मा गांधी के विराट व्यक्तित्व की थाह पाना असंभव है। विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर उनके सहचर मित्र थे तो उपन्यास सम्राट प्रेमचंद उनके अनुयायी। ''युद्ध और शांति'' के कालजयी लेखक लेव टॉल्सटाय से उन्होंने प्रेरणा ली तो ''ज्यां क्रिस्तोफ'' जैसी महान कृति के उपन्यासकार रोम्यां रोलां को उन्हें सलाह देने का अधिकार हासिल था। शांतिदूत दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल उनसे प्रभावित थे तो सार्थक फिल्मों के प्रणेता-अभिनेता चार्ली चैंप्लिन पर उनका गहरा असर था।
अल्बर्ड आइंस्टीन ने तो 1939 में ही यह घोषणा कर दी थी- आने वाली पीढ़ियां मुश्किल से इस बात पर विश्वास कर पाएंगी कि हाड़ -मांस से बना यह पुतला कभी इस पृथ्वी पर चला था।
महात्मा गांधी से यदि मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और आंग सान सू ची ने प्रेरणा ली तो फिदेल कास्त्रो और हो ची मिन्ह ने भी स्वयं को इनका अनुयायी घोषित किया।
साम्राज्यवादी प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अधनंगा फकीर कहकर उनका उपहास करने की चेष्टा की तो स्वाधीनता संग्राम में साथी भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने सहज विनोद में उन्हें मिकी माउस की संज्ञा दी।
रवींद्रनाथ ने ही 1919 में उन्हें महात्मा की उपाधि दी और 1944 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने न सिर्फ उन्हें राष्ट्रपिता का संबोधन दिया, बल्कि आज़ाद हिंद फौज की पहली ब्रिगेड का नाम ही गांधी ब्रिगेड रखा। 30 जनवरी 1948 की शाम पं. जवाहरलाल नेहरू ने रुंधे हुए स्वर में घोषणा की- हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है।
Mahatma Gandhi was also a light and a lighthouse.
मोहनदास करमचंद गांधी प्रकाश भी थे और प्रकाश स्तंभ भी। उनके विद्वान पौत्र राजमोहन गांधी ने जब उनकी वृहत् जीवनी लिखी तो उपमा-अलंकार के फेर में पड़े बिना पुस्तक को शीर्षक दिया- मोहनदास। इसके आगे जिसको जो मर्जी आए जोड़ ले।
एक समय वे मिस्टर गांधी के नाम
मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, निराला, पंत, महादेवी, बच्चन, सोहनलाल द्विवेदी प्रभृति कितने वरेण्य साहित्यकारों ने उन पर कविताएं लिखीं।
कवि प्रदीप लिखित जागृति के गीत ''साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'' से लेकर, ''लंबे हाथ'' के ''तुममें ही कोई गौतम होगा, तुममें ही कोई होगा गांधी'' न जाने कितनी फिल्मों में उन पर गीत लिखे गए।
रायपुर के बैरिस्टर गांधीवादी रामदयाल तिवारी ने 1937 में ''गांधी मीमांसा'' शीर्षक से उनके जीवन दर्शन पर ग्रंथ लिखा। दो साल पहिले चंपारन सत्याग्रह की शताब्दी पर दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हुईं। आज जब 150वीं जयंती मनाई जा रही है तो ध्यान आना स्वाभाविक है कि पच्चीस साल पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में सरकार ने एक सौ पच्चीसवां जन्मदिन समिति बनाई थी और उसके अध्यक्ष कनक तिवारी ने आयोजनों की झड़ी और पुस्तकों की ढेरी लगा दी थी।
Does Gandhi currently have any relevance?
इस असमाप्त पृष्ठभूमि में आज अपने आपसे यह सवाल करने की आवश्यकता है कि गांधी हमारे लिए क्या मायने रखते हैं। जो बीत गई सो बीत गई, लेकिन वर्तमान में गांधी की क्या कोई प्रासंगिकता है? क्या भारत को या दुनिया को उनकी वैसी ही ज़रुरत है जो उनके जीवनकाल में थी? आज के वैश्विक परिदृश्य में क्या उनसे उसी तरह प्रेरणा ली जा सकती है, जैसी आज से चालीस-पचास साल पहले तक ली जाती थी? फिल्मों में कोर्टरूम और पुलिस थाने के दृश्यों में गांधी की तस्वीर लगभग अनिवार्य तौर पर देखने मिलती है, सरकारी दफ्तरों और इमारतों में भी उनके चित्र दीवार पर बदस्तूर टांगे जाते हैं। इस औपचारिकता का निर्वाह वे सत्ताधीश भी करते हैं जिनके मन में गांधी नहीं, गोडसे बसता है। इसीलिए वे मजबूरी का नाम महात्मा गांधी का मुहावरा चलाते हैं, जिसका प्रतिउत्तर मित्र लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल ''मजबूती का नाम महात्मा गांधी'' से देते हैं।
आज भी चरखा चलाने और खादी पहनने वाले अनेकानेक जन मजबूरी और मजबूती के बीच के भारी अंतर को नहीं समझ पाते। गांधी एक छाया और छायाचित्र की तरह हमारे राष्ट्रीय जीवन में मौजूद हैं। उन्हें शायद किसी दिन कल्कि अवतार भी घोषित कर दिया जाए! किंतु बुनियादी प्रश्न तो गांधी के विचारों को समझने व आत्मसात करने का है।
वे सब जो गांधी के नाम पर यत्र-तत्र-सर्वत्र समारोह कर रहे हैं, वे गांधी जीवन दर्शन को यदि यत्किंचित भी समझ पाएंगे तो स्वयं अपना भला करेंगे।
गांधीजी के जीवन के 10 संदेश- 10 messages of Gandhiji's life,
गांधी ने कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। इस गहन-गंभीर लेकिन सादे से सुनाई देने वाले वाक्य की तह में जाने का प्रयत्न करना चाहिए। मेरी सीमित समझ में कुछ बिंदु आते हैं।
ललित सुरजन
गांधीजी की 150वीं जयंती पर देशबन्धु का विशेष संपादकीय