माँ बनना इस दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास होता है। इस अहसास को सेलिबे्रट करने का मौका देता है मदर्स-डे। मगर जो महिलाएं किसी परेशानी की वजह से मां नहीं बन पाती हैं, उनके लिए भी उम्मीदें बाकी हैं, वो भी मदर्स-डे पर मातृत्व को महसूस कर सकती है। इसमें अत्याधुनिक तकनीकों जैसे आईवीएफ काफी कारगर साबित हो रही है। आईवीएफ के जरिये कई महिलाओं को मां बनने का सुख (The joy of women becoming mothers through IVF) मिला है और उन्होंने भी मनाया है अपनी जिंदगी का पहला मदर्स-डे।
एक मां को अपने मातृत्व का आनंद लेने का, वहीं बच्चों को मौका मिलता है इस खास दिन अपनी मां को खास महसूस कराने का। मां और बच्चे दोनों के लिए ही मदर्स-डे एक बेहद खास दिन होता है। दोनों एक-दूसरे से जुड़े ही इस तरह होते हैं कि उनकी खुशियां भी दोनों के साथ से जुड़ जाती है। मगर मातृत्व का जश्न मनाने वाला ये दिन उन मांओं के लिए बेहद तकलीफदेह साबित होता है, जो किसी कारण से मां नहीं बन पाई है। आखिर मां बनना किसी भी महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत पल होता है। इस पल का वो बेसब्री से इंतजार करती है। मगर कुछ कारणों से कुछ महिलाएं सही समय पर मां नहीं बन पाती है। कई कोशिशों के बावजूद भी जब गर्भधारण में सफलता नहीं मिलती है, तो यह स्थिति निराशा और अवसाद का भी कारण बन जाती है। इस दौरान अक्सर महिलाओं की उम्र भी 40 तक पहुंच जाती है। माना जाता है कि इस उम्र के बाद गर्भधारण में समस्या (Problem in pregnancy) होती है। ऐसे में हमेशा के लिए संतानहीनता का सामना भी करना पड़ सकता है।
जानकार बताते हैं कि शादी
१. बंद ट्यूब व ट्यूब में संक्रमण
किसी भी ट्यूब ब्लॉक का मुख्य कारण है यूट्रस में इन्फेक्शन (Infection in utrus), यह इन्फेक्शन शारीरिक संबंध या यूरिन में इन्फेक्शन (Urine infection) के कारण हो सकता है। ऑपरेशन या ओवरी सिस्ट के कारण भी यह हो सकता है। यूटरस में टी.बी. होने से भी ट्यूबल ब्लॉक (tubal blockage) हो जाता है और फैलोपियन ट्यूब में एक्टोपिक प्रेग्नेंसी होने से भी दिक्कतें और बढ़ सकती है।
फैलोपियन ट्यूब के बंद होने के कई कारण होते हैं - जैसे संक्रमण, टी.बी., बार-बार गर्भपात होना, गर्भधारण को रोकने के विकल्प, ऑपरेशन इत्यादि या माहवारी बंद होने की स्थिति में।
महिलाओं में अण्डों की मात्रा सीमित होती है जो हर महीने कम होती रहती है। 35 वर्ष की उम्र के बाद अण्डों की गुणवत्ता व संख्या में तेजी से गिरावट होती है और जब किसी महिला में अण्डे खत्म हो जाते हैं तब उनकामासिक धर्म बंद हो जाता है। ऐसी महिलाओं का गर्भाशय भी सिकुड़ जाता है। इन महिलाओं को हार्मोन की दवा देकर माहवारी शुरू की जाती है, जिससे गर्भाशय की आकृति पुन: सामान्य हो जाती है तथा आई.वी.एफ. प्रक्रिया केजरिये बाहरी (डोनर) अण्डे की सहायता से पति के शुक्राणु का इस्तमाल कर भ्रूण बना लिया जाता है। इस भ्रूण को भ्रूण प्रत्यारोपण के माध्यम से गर्भाशय के अंदर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
शुक्राणुओं की कमी Sperm deficiency
शुक्राणुओं में कमी का मतलब है पुरुषों के वीर्य में सामान्य से कम शुक्राणुओं का होना। शुक्राणुओं में कमी होने को ओलिगोस्पर्मिया (Oligospermia in Hindi, अल्पशुक्राणुता) भी कहा जाता है। वीर्य में शुक्राणुओं का पूरी तरह से खत्म होना एजुस्पर्मिया (Azoospermia in Hindi, अशुक्राणुता, शुक्राणुहीनता) कहलाता है। पुरुष के शुक्राणुओं में कमी के कारण महिला के गर्भधारण करने की संभावना बहुत कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में भी आईवीएफ तकनीक कारगर है।
कुछ मामलों में देखा गया है कि आईवीएफ तकनीक भी बार-बार असफल होती है। दरअसल कुछ महिलाओं को आईवीएफ के दौरान भी गर्भपात का सामना करना पड़ता है या सफल प्रत्यारोपण के बावजूद भी आईवीएफ फेल हो जाता है, ऐसे मामलों में निराश होने की जरूरत नहीं है, कई बार दूसरे से तीसरे प्रयास में सफलता संभव हो सकती है।
कई बार गर्भधारण ना कर पाने की वजह पीसीओडी की समस्या के रूप में भी सामने आती है। चिकित्सकीय भाषा में महिलाओं की इस समस्या को पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीज (Polycystic ovary disease) के रूप में जाना जाता है। इससे महिलाओं की ओवरी और प्रजनन क्षमता पर असर तो पड़ता ही है साथ ही, आगे चल कर उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और हृदय से जुड़े रोगों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
पीसीओडी होने पर महिलाओं की पूरी शारीरिक प्रक्रिया ही गड़बड़ा जाती है। महिलाओं के अंडाशय में तरल पदार्थ से भरी कई थैलियां होती है, जिन्हें फॉलिकल्स या फिर सिस्ट कहा जाता है। इन्हीं में अंडे विकसित होते हैं और द्रव्य का निर्माण होता है। एक बार जब अंडाविकसित हो जाता है, तो फॉलिकल टूट जाता है और अंडा बाहर निकल जाता है। फिर अंडा फैलोपियन ट्यूब से होता हुआ गर्भाशय तक जाता है। इसे सामान्य ओव्यूलेशन प्रक्रिया (Normal ovulation process - what is ovulation) कहा जाता है। वहीं, जो महिला पीसीओडी से ग्रस्त होती है, उसमें प्रजनन प्रणाली अंडे को विकसित करने के लिए जरूरी हार्मोन का उत्पादन ही नहीं कर पाती है। ऐसे में, फॉलिकल्स विकसित होने लगते हैं और द्रव्य बनना शुरू हो जाता है, लेकिन ओव्यूलेशन प्रक्रिया शुरू नहीं होती है। परिणामस्वरूप, कई फॉलिकल्स अंडाशय में ही रहते हैं और गांठ का रूप ले लेते हैं। इस स्थिति में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन नहीं बनते और इन हार्मोन्स के बिना मासिक धर्म प्रक्रिया बाधित या फिर अनियमित हो जाती है, जिस कारण गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है।
डा. नुपुर गुप्ता
कंसलेंट ऑब्स्टट्रिशन एंड गाइनोकोलोजिस्ट
निदेशक वेल वुमेन क्लीनिक, गुरुग्राम
( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह विज्ञप्ति के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)