Hastakshep.com-आपकी नज़र-article on corona virus-article-on-corona-virus-Yogi Adityanath-yogi-adityanath-किसान-kisaan-कोरोना वायरस-koronaa-vaayrs-कोरोनावायरस-koronaavaayrs-मोदी सरकार-modii-srkaar-योगी आदित्यनाथ-yogii-aaditynaath

मोदी सरकार बनने के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हठधर्मिता दिखाते हुए मनमानी फैसले लिये, उससे न केवल उद्योग धंधे चौपट हो गये हैं बल्कि छोटे-मोटे कारोबारी भी सडक़ पर आ गये हैं। किसान-मजदूर और युवा बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में देश के शीर्षस्थ उद्योगपतियों के रहमोकरम पर चल रही मोदी सरकार (Modi government) ने अब इन उद्योगपतियों को मोटा मुनाफा कमाने के लिए किसानों के वजूद से खिलवाड़ करने का षड्यंत्र रचा है। मोदी सरकार और कॉरपोरेट कंपनियों ने मिलकर किसान की जमीन हथियाकर किसान को उसके ही खेत में बंधक बनाने की पूरी तैयारी कर ली है।

The Modi government is now trying to completely destroy the annadata to benefit the capitalists.

इस कोरोना काल में जब देश संक्रमण काल से कराह रहा है ऐसे में जिस तरह से मनमाने ढंग से राज्यसभा में तीन किसान बिलों को पास कराया गया, उससे पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि मोदी सरकार पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए अब अन्नदाता को पूरी तरह से बर्बाद करने में लग गई है।

मोदी सरकार के समर्थकों के कृषि बिल पर तर्क | Arguments on agricultural bill of supporters of Modi government

मोदी सरकार के साथ ही उनके समर्थक इस बात पर जोर दे रहे हैं पिछली सरकारों में किसानों को अपनी फसल को दूसरे प्रदेशों में भेजने की छूट नहीं थी। किसान परंपरागत फसल उगाकर घाटा झेल रहे थे। उनका कहना है कि इन बिलों के कानून बनने के बाद किसान देश के किसी भी हिस्से में अपनी फसल बेचकर मोटा मुनाफा कमा सकेजा। विडंबना यह है कि जिन लोगों को खेती और किसान की समस्या से कोई लेना देना नहीं है

उन्हें किसान और खेती का नीति का निर्धारक बना दिया गया है। ये लोग यह समझने को तैयार नहीं कि देश में 70 फीसद लघु किसान हैं। मतलब 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन अधिकतर किसानों के पास है। ये लोग न तो ज्यादा फसल स्टॉक रख सकते हैं और न ही बड़े स्तर पर बेचने के लिए उगा सकते हैं। ऐसे में दूसरे राज्यों में फसल बेचेने के लिए फसल के मूल्य से ज्यादा तो इनका पैसा ट्रांसपोर्ट में खर्च आ जाएगा और हरियाणा, पंजाब जैसे प्रदेश के किसानों का दूसरे प्रदेशों में जाने का सवाल ही नहीं उठता।

जो लोग किसान पृष्ठभूमि से आते हैं वे भलीभांति जानते हैं कि किसान का फसल बेचना दूसरे राज्यों में बेचना तो दूर दूरदराज के शहरों में भी नहीं बेच सकते हैं। किसान पास के शहर में ही स्थापित मंडियों में अपनी फसल बेचते हैं। इसका कारण यह है कि मंडियों तक फसल लाने के लिए किसान काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं।

इस किसान बिल में स्टॉक की अनुमति देकर कंपनियों को कालाबाज़ारी की छूट दे दी गई है। ऐसे में आशंका व्यक्त की जा रही है कि ये कंपनियां सस्ती दर पर किसान की फसल खरीदकर बड़े स्तर पर स्टॉक करेंगी और बाजार में खाद्यान्न की कमी होने पर मोटे मुनाफे पर बेचेंगी। सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य इन बिलों में मेंशन न करने की वजह से कॉरपोरेट कंपनियां मनमाने मूल्य  में पर किसान की फसल खरीदेंगी। जो लोग यह कह रहे हैं कि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसान अधिक मूल्य पर अपनी फसल को बेचेगा। वे लोग समझ लें कि छोटे से छोटे व्यापार में भी व्यापारियों ने संगठन बना रखे हैं ये लोग आपसी तालमेल से ग्राहक को फायद न होने देने और खुद मोटा मुनाफा कमाने की रणनीति बनाकर रखते हैं। जब किसान की जमीन और खेती कब्जाने की बात होगी तो ये कंपनियां आपस में मिलकर किसानों को उबरने नहीं देंगी तथा किसान की जमीन कब्जा लेंगी। जैसे कि पहले साहूकार करते थे। ऐसी स्थिति में इन पूंजपीतियों के सरकार को भी ब्लेकमेलिंग करने की आशंका होगी।

आढ़तियों के यहां फसल बेचने से खाद्यान्न कई हिस्सों में चला जाता था। कंपनियों की किसान की फसल सीधे खरीदने की अनुमति से अब देश के गिनी-चुनी कंपनियों के पास फसलों का स्टॉक होगा, जिसके चलते ये लोग अपनी भरपूर मनमानी करेंगी। मतलब देश में भुखमरी के हालात भी पैदा कर सकती हैं।

मोदी सरकार यह दिखावा कर रही है कि किसानों को फसल उगाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ये उद्योगपति अपने हिसाब से फसल उगवाकर किसानों को मोटा मुनाफा दिलवाएंगे और खुद भी कमाएंगे, जिससे देश का विकास होगा।

लोगों को यह समझना चाहिए कि उद्योगपति का एकमात्र उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है, उसे किसान, मजदूर, देश और समाज की समस्या से कोई लेना देना नहीं होता है। इस बिल के कानून बनने के बाद अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपति किसानों की जमीन हथियाने के लिए ऐसी फसल उगाने का लालच देंगे, जिसकी पैदावार की वहां जलवायु ही न हो। वहां की मिट्टी उस फसल के लिए ऊपजाऊ भी न हो। मतलब जब इन उद्योगपतियों की पसंद की फसल नहीं उगेगी तो ये मीन-मेख निकालकर फसल को रिजेक्ट कर देंगे, जिसके चलते किसान को एडवांस में दिया गया पैसा कर्जे में तब्दील हो जाएगा। ऐसे में ये उद्योगपति किसान को और लालच देकर उसकी जमीन हथियाने की पूरी कोशिश करेंगे, फिर क्या होगा ये किसान या तो अपनी ही जमीन पर मजदूरी करेंगे या फिर बंधुआ बनकर रह जाएंगे।

इस बिल में फसल की खऱीद-फरोख्त में किसान को कोई अधिकार नहीं दिया गया है वह अधिक से अधिक एसडीएम के पास जा सकता है। इस व्यावसायीकरण और अराजकता के दौर में क्या एसडीएम सरकारों के सिरमौर कॉरपोरेट कंपनियों की सुनेगा या फिर किसान की ? अब तो जगजाहिर हो चुका है आज की तारीख में संविधान की रक्षा के लिए बनाए गये तंत्र, कार्यपालिका, विधायिका, मीडिया और यहां तक न्यायपालिका भी मोदी सरकार के दबाव से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। ऐसे में बेचारे किसान की कौन सुनेगा ?

लोग आढ़तियों की कितनी भी बुराई करें पर जमीनी हकीकत यह है कि स्थानीय मंडी में आढ़तियों और किसानों के बीच गहरा सहयोग का सम्बन्ध रहा है। आढ़ती किसान के दुख-सुख में शरीक होते रहे हैं। यह व्यवस्था एक व्यापारिक और आर्थिक ही नहीं बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना की तरह है। आढ़ती और किसान मिल-बैठकर आपसी विवाद को भी सुलझाते रहे हैं। कॉरपोरेट कंपनियां जरा-जरा सी बात पर किसानों को कोर्ट-कचहरी में घसीटेंगी। इन बिलों में आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अनुसार, आलू, तेल, दाल, चावल, गेहूं आदि खाद्यान्न पर लागू कालाबाज़ारी की बन्दिश को हटा दिया गया है। मतलब कॉरपोरेट कंपनियों को कालाबाजारी की खुली छूट दे दी गई है। इसका एक बड़ा उदाहरण तो महाराष्ट्र में दाल घोटाले में देखने को मिला, घोटाले के बाद वहां दाल 200 रु किलो बिकी।

दरअसल जो आदमी का स्वभाव होता वह उसी के अनुसार ही काम करता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशुद्ध रूप से एक व्यापारी हैं, यह बात उन्होंने स्वीकार भी की है। यही वजह है कि वह हर चीज में व्यापार ढूंढने लगते हैं और जिन उद्योगपतियों ने उनके प्रधानमंत्री बनवाने में उन पर पानी की तरह पैसा बहाया है उनको फायदा पहुंचाने के लिए वह कुछ भी करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। अडानी का उदाहरण सबके सामने हैं।

मोदी सरकार के बाद भले ही देश तबाही की ओर जा रहा हो पर अडानी की संपत्ति ने लगातार अप्रत्याशित ग्रोथ की है। मुकेश अंबानी की संपत्ति भी इसी तरह से बढ़ी है। प्रवासी मजदूरों को तबाह करने के बाद मोदी सरकार की गलत नीतियों की मार युवाओं पर पड़ी और अब मोदी सरकार ने किसानों की जमीन कॉरपोरेट घरानों के हवाले करने का एक बड़ा षड़यंत्र रचा है।

इस किसान बिल में कार्पोरेट कम्पनी, कमर्शियल क्राप, कम्पनियों के शोरूम के साथ ही राष्ट्रीय खाद्यान्न निगम, स्थानीय मंडी, परचून-पंसारियों की दुकान और राशन प्रणाली पूरी तरह से खत्म करने की व्यवस्था है। मतलब किसान की फसल पूरी तरह से कॉरपोरेट कंपनियों के पास चली जाएगी। ये उद्योगपति किसान की फसल का इस्तेमाल अपने कारेाबार को बढ़ाने में करेंगी। इस व्यवस्था में देश में भुखमरी की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

खाद्यान्न की व्यवस्था बड़े-बड़े माल में होने से यह आम आदमी की पहुंच से बहुत दूर चला जाएगा। किसान को कंपनियों की शर्तों पर खेती करनी पड़ेगी।

कल्पना कीजिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती ज्यादा होती है। यदि ये कंपनियां गन्ने की जगह कपास की खेती करने पर जोर देंगी तो क्या होगा। वैसे भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी गन्ने की पैदा होने वाली चीनी से शुगर होने की बात कर चुके हैं। ऐसे में न केवल किसान प्रभावित होगा बल्कि क्षेत्र में लगी शुगर मिलों के साथ उनमें काम करने वाले श्रमिक भी प्रभावित होंगे।

लोगों को यह भी समझ लेना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती को कब्जाने के लिए उद्योगपति शुरुआत में नुकसान झेलने की रणनीति भी अपना सकते हैं।

यह बिल देश की पूरी व्यवस्था अस्त-व्यस्त कर देगा।

मान लो पश्चिम बंगाल में लोग चावल उगाते हैं और खाते हैं। ये कंपनियां गेहूं उगाने को कहेंगी। ऐसे में चावल के अभाव में उनका खान-पान भी प्रभावित होगा। यह बिल किसान का भूगोल और लम्बे समय में विकसित हुई खान-पान की संस्कृति को तहस-नहस कर देगा।

इन कंपनियों के मुनाफे के लिए गेहूं, चावल, गन्ने की जगह फल-फूल और औषधियों की खेती पर ज्यादा जोर देने की संभावना है। ऐसे में देश में खाद्यान्न के भारी संकट होने के आसार भी बन सकते हैं।

मोदी सरकार और कॉरपोरेट कंपनियों की नीयत पर शक इसलिए भी बनता है क्योंकि यह बिल  ऐसे में पास कराया गया, जब देश कारोना महामारी से जूझ रहा है। ऐसी क्या जल्दी थी कि इस तरह मनमानीपूर्ण तरह से यह बिल पास कराया गया।

यदि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के कामकाज के तरीके की समीक्षा की जाए तो उन्होंने एक बार भी किसान या मजदूरों से बात करना मुनासिब नहीं समझा। किसान और मजदूर से संबंधित योजनाएं लाने या फिर कानून बनाने में वह पूंजीपतियों के साथ ही बैठक करते हैं। मतलब साफ है कि किसान और मजदूरों का हक मोदी पूंजपीतियों को दिलवाने पर आमादा हैं। चाहे नोटबंदी का मामला हो, जीएसटी का हो या फिर कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन करने का, हर बार मोदी की प्राथमिकता कॉरपोरेट घरानों को फायदा कराना ही रहा है। किसान-मजदूर और युवा तो इनके एजेंडे में बेवकूफी की श्रेणी में आते हैं।

यही प्रधानमंत्री लॉकडाउन लगाने के समय कह रहे थे कि किसी एक व्यक्ति की भी नौकरी नहीं जाएंगी। देश में लगभग 20 करोड़ लोगों की नौकरी गई हैं पर मोदी की जुबान से एक शब्द भी नहीं निकला। ऐसे ही निजी स्कूलों में फीस के मामले में हो रहा है। बिना स्कूल खुले बच्चों से मनमानी फीस वसूली जा रही है और मोदी सरकार के साथ ही भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारें मूकदर्शक भी भूमिका में हैं। ऐसा ही किसानों के साथ होगा। किसानों की जमीन कॉरपोरेट घराने कब्जाएंगे और देखना यही मोदी सरकार और इसके समर्थक कहते घूमेंगे किसान घाटे की खेती कर रहे थे, देखो अब ये उद्योगपति कैसे खेती को मुनाफे में बदलते हैं। मतलब किसान, मजदूर और युवा सबको इन गिने-चुने उद्योगपतियों के बंधक बनाने की तैयारी मोदी सरकार ने पूरी तरह से कर दी है।

हालांकि कृषि अध्यादेशों के खिलाफ 25 सितम्बर को 234 किसान संगठनों ने भारतबंद का आह्वान किया है पर काफी समय से किसान प्रभावशाली आंदोलन करने में विफल रहे हैं। इसका बहुत बड़ा कारण यह है कि कई किसान संगठनों के मुखिया अब निजी स्वार्थ से सरकारों से सौदा करने लगे हैं।

अकसर देखने में आता है कि किसान अ्रांदोलन निर्णायक मोड़ पर खत्म कर दिये जाते हैं। गत साल यूपी गेट पर भाकियू का आंदोलन भी ऐसे ही टूटा था। जब किसानों ने मांगों को लेकर यूपी गेट पर मोदी सरकार पर दबाव बना लिया तो भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत की अगुआई में कई किसान नेता भाजपा नेता राजनाथ सिंह से मिले और आनन-फानन में आंदोलन खत्म कर दिया गया। 

किसान आंदोलन में महेंद्र सिंह टिकैत वाली छाप किसान नेता की छाप छोड़ने में विफल रहे हैं।

आज देश में जिस तरह से ये किसान बिल कानून बनने जा रहे है। इसके विरोध में किसानों के उच्च पदों पर बैठे बेटे और बेटियों को भी खड़ा होने की जरूरत है। यदि देश में यह बिल कानून बन जाता है तो समझो किसान ही नहीं बल्कि देश भी तबाह हो जाएगा।

चरण सिंह राजपूत

CHARAN SINGH RAJPUT, चरण सिंह राजपूत, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
HARAN SINGH RAJPUT, चरण सिंह राजपूत, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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