कुछ साल पहले चिकित्सा जगत के क्षेत्र में अमेरिका में एक अनूठा प्रयोग (A unique experiment in America in the field of medicine) किया गया और उसकी चर्चा वहां के सभी बड़ी अखबारों में हुई। एक बड़े अस्पताल में कैंसर के ऐसे मरीज़ों के दो समूह बनाए गए, जिनका कैंसर शुरुआती स्टेज पर था, ट्यूमर था, पर छोटा था। उन दोनों समूहों को एक-दूसरे से बिलकुल अलग कर दिया गया। एक समूह को ऑपरेशन करके ट्यूमर निकाल दिया गया जबकि दूसरे समूह के रोगियों को हिप्नोटाइज़ (hypnotize patients) करके उन्हें यह कहा गया कि ऑपरेशन हो गया है, ऑपरेशन सफल रहा है और ट्यूमर निकाल दिया गया है जबकि उनका ऑपरेशन किया ही नहीं गया था। इस समूह के सभी रोगियों को सम्मोहित करके सुला दिया गया था और उसी अवस्था में उन्हें यह बताया गया था कि उनका ऑपरेशन कर दिया गया है। यह बात उनके अवचेतन मन ने स्वीकार कर ली कि ऑपरेशन हो गया है और ट्यूमर शरीर से निकल गया है। जानते हैं कि इसका परिणाम क्या हुआ? मरीज़ों का यह समूह भी ठीक हो गया, बिना ऑपरेशन के ही।
मरीज़ों के दोनों समूहों पर बाद में भी लंबे समय तक नज़र रखी गई और यह पाया गया कि दोनों समूहों की प्रगति एक जैसी थी, यानी जिन मरीज़ों का ऑपरेशन नहीं हुआ था वो भी सेहतमंद बने रहे क्योंकि उनके मन-मस्तिष्क ने यह मान लिया था कि ऑपरेशन हो गया है और अब उनके शरीर में कोई ट्यूमर नहीं है।
दूसरा प्रयोग भी हालांकि अमेरिका में ही हुआ पर यह डॉक्टरों और मनोवैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा एक ऐसे कैदी पर किया गया था जिसे फांसी दी जानी थी।
यह एक सच्ची घटना है जो मैंने कभी बचपन
डाक्टरों ने कहा कि हम तुम्हारे साथ एक रीसर्च करना चाहतें हैं, तुम्हें फांसी न देकर हम तुम्हें एक कोबरा सांप से डंसवा देंगे, इसमें तुम्हें बस एक सुई चुभने के बराबर दर्द होगा, और तुम 5 से 15 सेकेंड में मर जाओगे। तुम्हें डेढ़ मिनट तक छटपटाना नहीं पड़ेगा। लेकिन सब कुछ तुम्हारे हाथ में है, अगर तुम अनुमति दोगे तभी हम ऐसा करेंगे, वर्ना डेढ़ मिनट तक दर्द में फांसी से ही मरना होगा।
क़ैदी को भी यह तरीक़ा ठीक लगा, उसने डेढ़ मिनट तक दर्द झेलने के बजाय 15 सेकेंड में मरना उचित समझा। और बोला “ठीक है, अगर मरना ही है तो यही तरीका सही।“
अगले दिन उसे एक स्टूल पर बैठाया गया, उसके सामने एक काले रंग का भयानक-सा किंग कोबरा सांप लाकर रख दिया गया, और उससे कहा गया कि देखो, यह दुनिया के सबसे ज़हरीले सांपों में से एक है यह तुम्हें डंसेगा और तुम्हारी मौत हो जाएगी। आप क़ैदी की मनस्थिति समझ सकते हैं। उसके पसीने छूटने लगे। उसके दिमाग़ में अब यह चलने लगा कि सांप आएगा, डंसेगा और मैं मर जाउंगा। मौत को सामने देखकर उसका चेहरा सूखकर छोटा हो गया। उसके क़रीब सांप को लाकर रख दिया गया और उसका चेहरा और गर्दन उस काले कपड़े से ढंक दिया गया, जो फांसी के वक़्त पहनाया जाता है। इसके बाद डॉक्टरों ने उससे कहा कि अब सांप तुम्हारे पैरों की तरफ़ बढ़ रहा है, यह तुम्हें डंसेगा और तुम मर जाओगे। यह कहकर उसके पैर में सांप से न डंसवा कर सिर्फ एक सुई चुभा दी गयी।
आश्चर्य होगा जानकर कि वो क़ैदी उसी समय मर गया। इससे ज़्यादा आश्चर्य की बात तब हुई जब उसका पोस्टमोर्टम किया गया।
पोस्टमोर्टम रिपोर्ट में यह पाया गया कि उसकी मौत किसी ज़हरीले ज़ख़्म के कारण हुई है, जो अक्सर सांप काटने से होता है।
यह सब दिमाग़ का खेल था, एक दिन पहले से ही उसके दिमाग़ में यह बात चलायी जा रही थी कि उसे सांप से डंसवाकर मारा जाएगा। दिमाग़ उसी दिशा में सोचने लगा और दिमाग़ ने एक सुई के चुभन को भी सांप का डंसना समझकर खुद को ख़त्म कर लिया।
हम जैसे विचार दिमाग़ में लाते हैं, हमें वैसा ही परिणाम मिलता है। हमारे विचार और हमारी भावनाएं हमारे दिमाग को प्रभावित करती हैं, हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं, और हमारी खुशी या उदासी का कारण बनती हैं, हमारी सफलता या असफलता का कारण बनती हैं। किसी ने कुछ कह दिया और हमें गुस्सा आ गया या हम उदास हो गये तो हम अपने ही अंदर विष भर लेंगे, अपनी ही सेहत का नुकसान करेंगे और अगर हमने उसकी परवाह नहीं की, उसकी उपेक्षा कर दी तो हमारा मूड नहीं बिगड़ेगा, हम पहले की ही तरह अपने काम निपटाते रहेंगे और हमारी सेहत पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। खुशियों का यह एक ऐसा राज़ है जिसे समझ कर हम हमेशा खुश रह सकते हैं और जीवन में सफल भी हो सकते हैं।
इसे थोड़ा और विस्तार में समझने की जरूरत है। यदि दिल में होगा कि मैं फलां काम नहीं कर सकता, यह तो मेरी काबलियत से बड़ा है, या मेरी औकात से बड़ा है, तो सच मानिए, मैं सही कह रहा हूं क्योंकि सारी कोशिशों के बावजूद भी मैं उसे पूरा नहीं कर पाऊंगा, और अगर मैंने सोच लिया कि मैं कर सकता हूं, तो मैं यह भी सच ही कह रहा हूं क्योंकि मैं पूरा दिल लगाकर कोशिश करूंगा, जहां अड़चन आयेगी वहां रास्ता ढूंढूंगा, किसी से सलाह लूंगा, किसी से सहायता लूंगा, पर काम पूरा कर के दिखाऊंगा। यह भी विचारों की शक्ति है।
हमारा दिमाग हमारे विचारों से, हमारी भावनाओं से चलता है। इसीलिए यह समझना आवश्यक है कि भावनाओं को बदले बिना या उन पर नियंत्रण पाये बिना हम सफलता की चाबी हासिल नहीं कर सकते। इसलिए हमेशा सजगता से पॉज़िटिव बातों को ही दिमाग़ तक आने दें, और सिर्फ़ सकारात्मक ही सोचें। वर्ना एक बार दिमाग़ में नकारात्मकता प्रवेश कर गयी तो दिमाग़ उसी दिशा में सोच-सोच कर आप के अंदर निराशा भर देगा। इन दोनों प्रयोगों से एक ही सीख मिलती है कि हमारे विचार हमारी प्राणशक्ति हैं। विचार खुशगवार होंगे तो हम खुश रहेंगे। विचार सफलता के विश्वास से भरपूर होंगे तो हम सफल होंगे। खुश रहना, सफल होना और लगातार सफल होते रहना, ये सब हमारे हाथ में है, क्योंकि ये हमारे विचारों का परिणाम हैं। हमारे विचार हमारे अपने हैं, इन पर नियंत्रण हमारे हाथ में है। इस एक गुर को समझ लेने से ही खुश रहना, सफल होना और सफल बने रहना आसान हो जाता है।
अब हम जानते हैं कि अपने विचारों पर नियंत्रण करके अपने मनचाहे जीवन का आनंद लेना हमारे अपने हाथ में है।
पी. के. खुराना
लेखक एक हैपीनेस गुरू और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।
The Power of Ideas: Two Experiments, One Lesson