केंद्र की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship amendment Act) (सीएए )और एनआरसी (NRC) की दिशा में जो कदम उठाया है, उससे इस सरकार के नोटबंदी जैसे तुगलकी व निरर्थक फैसले के बाद पूरे देश के अवाम का जीवन फिर एक बार बुरी तरह प्रभावित होने जा रहा है. लेकिन नोटबंदी ने पूरे देश को सड़कों पर जरूर ला खड़ा किया था, किन्तु उससे देश नहीं जला था, जबकि आज जल रहा है. सरकार के इस फैसले से जहाँ बुरी तरह आर्थिक संकट में फंसे भारत नामक अभागे देश की कई हजार करोड़ की आर्थिक क्षति हुई है, वहीँ कई दर्जन लोग धरना-प्रदर्शनों में अपनी जान गवां चुके हैं. इसे लेकर देश में जिस तरह हिंसा का माहौल गरमा रहा है उसे देखते हुए खुद भाजपा की कई सहयोगी पार्टियां चेतावनी देते हुए कह रही हैं कि अगर इस कानून को खत्म नहीं किया गया तो इसके विरोध में जारी हिंसा भविष्य में गृह युद्ध में बदल सकती है। लेकिन मोदी-शाह की सेहत पर इससे कोई फर्क पड़ता दिख नहीं रहा है. वे विपक्ष और सहयोगी दलों के साथ सड़कों पर उतरे छात्रों के मांग की बुरी तरह अनदेखी करते हुए सीएए और एनआरसी पर अपने रुख ()Hate Politics of BJP में बदलाव करते नहीं दिख रहे हैं.
तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र के बाद झारखण्ड विधानसभा चुनाव में भाजपा की दुर्गति के बाद इन्हें लग रहा है कि मोदी का जादू उतार पर है और वह कश्मीर, रामजन्मभूमि तथा एनआरसी सरीखे दूर-दराज के जान पड़ने वाले राष्ट्रीय मुद्दों के सहारे मतदाता को भटकाने की कोशिश कामयाब नहीं होंगे. लेकिन अनुच्छेद-370 के खात्मे, तीन तलाक
जी हाँ ! मंदिर मुद्दा ख़त्म होने के बाद मोदी-शाह ने सीएए और एनआरसी के जरिये डॉ. हेडगेवार द्वारा ईजाद उस ‘हेट पॉलिटिक्स’ की एक नयी पारी का आगाज कर दिया, जिसके सहारे ही कभी दो सीटों पर सिमटी भाजपा नयी सदी में अप्रतिरोध्य बन गयी.
अडवाणी-अटल, मोदी-शाह की आक्रामक राजनीति से अभिभूत ढेरों लोगों को यह पता नहीं कि जिस हेट पॉलिटिक्स के सहारे आज भाजपा विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली पार्टी के रूप में इतिहास में नाम दर्ज करायी है, उसके सूत्रकार रहे 21 जून,1940 को इस धरा का त्याग करने वाले चित्तपावन ब्राहमण डॉ. हेडगेवार, जिन्होंने 1925 में उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, जिसका राजनीतिक विंग आज की भाजपा है. अपने लक्ष्य को साधने के लिए उन्होंने एक भिन्न किस्म के वर्ग-संघर्ष की परिकल्पना की. वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्तकर कार्ल मार्क्स ने कहा है कि दुनिया का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है. एक वर्ग वह है जिसका उत्पादन के साधनों पर कब्ज़ा है और दूसरा वह है, जो इससे बहिष्कृत व वंचित है. इन उभय वर्गों में कभी समझौता नहीं हो सकता. इनके मध्य सतत संघर्ष जारी रहता है.
किन्तु डॉ. हेडगेवार ने एकाधिक कारणों से मुसलमानों के रूप में एक नया ‘वर्ग-शत्रु’ खड़ा करने की परिकल्पना की. उन्हें अपनी परिकल्पना को रूप देने का आधार 1923 में प्रकाशित विनायक दामोदर सावरकर की पुस्तक ‘हिंदुत्व: हिन्दू कौन ?’ में मिला, जिसमे उन्होंने अपने सपनों के भारत निर्माण के लिए अंग्रेजों की जगह ‘मुसलमानों को प्रधान शत्रु’ चिन्हित करते हुए उनके विरुद्ध जाति-पाति का भेदभाव भुलाकर सवर्ण-अवर्ण सभी हिन्दुओ को ‘हिन्दू – वर्ग’ (संप्रदाय) में उभारने का बलिष्ठ प्रयास किया था.
1923 के पूर्व कुछ ऐसे हालात पैदा हो चुके थे, जिसमें डॉ. हेडगेवार के समक्ष ‘हिन्दू –वर्ग ‘ बनाने से भिन्न विकल्प नहीं रहा. इन विगत वर्षों में अंग्रेजों द्वारा आविष्कृत ‘आर्यतत्व’ के बाद पुणे के चित्तपावन ब्राह्मण तिलक के नेतृत्व में ब्राह्मण विद्वानों द्वारा ‘ब्राह्मणों’ को आर्य प्रमाणित करने की होड़ तुंग पर पहुंच चुकी थी. इस बीच 1922 में सिन्धु सभ्यता के उत्खनन के सत्यान्वेषण भारत में आर्यों के आगमन की पुष्टि कर दी थी. उधर सिन्धु सभ्यता के सत्यान्वेषण और ज्योतिबा फुले के आर्य-अनार्य सिद्धांत से प्रेरित इ.व्ही. रामासामी पेरियार दक्षिण भारत में मूलनिवासीवाद का मंत्र फूंककर ब्राह्मण वर्चस्व की जमीन दरकाना शुरू कर चुके थे. इसके पूर्व इंग्लॅण्ड में एडल्ट फ्रेंचाइज (वयस्क मताधिकार) आन्दोलन के सफल होने की सम्भावना उजागर हो चुकी थी.
इन सब घटनाओं पर किसी की सजग दृष्टि थी तो डॉ. हेडगेवार की. उन्होंने अपनी प्रखर मनीषा से यह उपलब्धि कर लिया था कि भारत अंग्रेजों के लिए बोझ बन चुका है और वे इसे निकट भविष्य में छोड़कर स्वदेश चले जायेंगे. उनके जाने के बाद आजाद भारत में भी इंग्लॅण्ड में शुरू हुआ वयस्क मताधिकार लागू होगा. वैसे में विशिष्ट जन ही नहीं, भूखे अधनंगे दलित- आदिवासी- पिछड़ों को भी वोट देने, अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिलेगा. तब वे और चाहे कुछ करें या न करें तिलक, नेहरू इत्यादि विशिष्ट ब्राह्मण विद्वानों ने जिन्हें विदेशी(आर्य) प्रमाणित किया है, उन्हें तो वोट नहीं देंगे. और जब विशाल वंचित वर्ग ब्राह्मणों को अपने वोट से महरूम कर देगा, तब वे सत्ता से दूर छिटक जायेंगे. इसी चिंता ने डॉ. हेडगेवार को तत्कालीन ब्राह्मण विद्वानों के विपरीत ‘आर्य समाज’ की जगह हिन्दू समाज बनाने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने भारतीय समाज के गहन अध्ययन के बाद यह सत्योप्लब्धि कर लिया था कि जब हिन्दू धर्म-संस्कृति के नाम पर आन्दोलन से लोगों को ध्रुवीकृत किया जायेगा, उससे विशाल हिन्दू समाज बनेगा, जिसका नेता ब्राह्मण होंगे ही होंगे.
हेडगेवार से यह गुरुमंत्र पाकर संघ लम्बे समय से चुपचाप काम करता रहा. किन्तु मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जब बहुजनों के जाति चेतना के चलते सत्ता की बागडोर दलित –पिछड़ों के हाथ में जाने का आसार दिखा, तब संघ ने राम जन्मभूमि मुक्ति के नाम पर, अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में आजाद भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दिए, जिसमें मुस्लिम विद्वेष के भरपूर तत्व थे. राम जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन के जरिये मुस्लिम विद्वेष का जो गेम प्लान किया गया, उसका राजनीतिक इम्पैक्ट क्या हुआ इसे बताने की जरूरत नहीं है. एक बच्चा भी बता देगा कि मुख्यतः मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के जरिये ही भाजपा केंद्र से लेकर राज्यों तक में अप्रतिरोध्य बनी है, जिसमें संघ के अजस्र आनुषांगिक संगठनों के अतिरक्त साधु-संतों, मीडिया और पूंजीपतियों की भी जबरदस्त भूमिका रही है.
आज मोदी-शाह 2024 को दृष्टिगत रखते हुए एक बार फिर संघ के अनुषांगिक संगठनों, मीडिया, लेखक-पत्रकारों, साधु-संतो के सहयोग से नागरिकता संशोधन कानून को हथियार बनाकर मुस्लिम-विद्वेष एक नया अध्याय रचने में जुट गए हैं.
अतीत के अनुभव के आधार पर विपक्ष को यह मानकर चलना चाहिए कि संघ परिवार का मुस्लिम-विद्वेष हथियार हमेशा कारगर हुआ है और वह उसकी प्रभावी काट ढूँढने में अबतक व्यर्थ रहा है.किन्तु 2024 में अगर भाजपा को रोकना है तो उसे हर हाल में इसकी काट ढूंढनी ही होगी.यह कैसे मुमकिन होगा इस पर गैर-भाजपाई नेता और बुद्धिजीवी विचार करें. किन्तु मेरा मानना है कि यह काम धर्म की जगह आर्थिक आधार पर वर्ग- संघर्ष को बढ़ावा देकर किया जा सकता है, ताकि वर्ग-शत्रु के रूप में मुसलमानों की जगह कोई और तबका उभरकर सामने आये. और इस किस्म के वर्ग-संघर्ष को संगठित करने लायक वर्तमान में अभूतपूर्व स्थितियां और पारिस्थितियाँ मौजूद हैं.
मार्क्स ने इतिहास कि आर्थिक व्याख्या करते हुए, जिस वर्ग-संघर्ष की बात कही है, भारत में सदियों से वह वर्ग संघर्ष वर्ण-व्यवस्था रूपी आरक्षण –व्यवस्था में क्रियाशील रहा, जिसमें 7 अगस्त,1990 को मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होते ही एक नया मोड़ आ गया. क्योंकि इससे सदियों से शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार जमाये विशेषाधिकारयुक्त तबकों का वर्चस्व टूटने की स्थिति पैदा हो गयी.
मंडल ने जहां सुविधाभोगी सवर्णों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत अवसरों से वंचित कर दिया, वहीँ इससे दलित,आदिवासी. पिछड़ों की जाति चेतना का ऐसा लम्बवत विकास हुआ कि सवर्ण राजनीतिक रूप से लाचार समूह में तब्दील हो गए.
कुल मिलकर मंडल से एक ऐसी स्थिति का उद्भव हुआ जिससे वंचित वर्गों की स्थिति अभूतपूर्व रूप से बेहतर होने की सम्भावना उजागर हो गयी और ऐसा होते ही सुविधाभोगी सवर्ण वर्ग के बुद्धिजीवी, मीडिया, साधु -संत, छात्र और उनके अभिभावक तथा राजनीतिक दल अपना कर्तव्य स्थिर कर लिए. इन्ही हालातों में अपने असल वर्ग- शत्रु बहुजनों का ध्वंस करने के लिए संघ-परिवार ने रामजन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत को तुंग पर पहुचा कर ‘हेट-पॉलिटिक्स’ का आगाज किया और इसके सहारे एकाधिक बार केंद्र की सत्ता पर कब्ज़ा जमाते हुए आज अप्रतिरोध्य बन गयी.
The real class enemies of the Sangh are not Muslims, but Dalits, tribals and backward
अब जहां संघ के असल वर्ग - शत्रु का सवाल है, वह मुसलमान, नहीं दलित, आदिवासी और पिछड़े हैं. इनके ही हाथ में सत्ता की बागडोर जाने से रोकने लिए हेडगेवार ने प्रयः 95 वर्ष पूर्व हेट पॉलिटिक्स का सूत्र रचा था , जिसका मंडल उत्तर काल में भाजपा ने जमकर सदव्यवहार किया. चूंकि देखने में संघ के सीधे निशाने पर मुसलमान रहे, किन्तु असल शत्रु बहुजन ही हैं, इस कारण ही उसके राजनीतिक संगठन ने ‘हेट पॉलिटिक्स’ से मिली सत्ता का इस्तेमाल मुख्यतः बहुजनों के खिलाफ किया. हेट –पॉलिटिक्स से भाजपाइयों के हाथ में आई सत्ता से मुसलमानों में असुरक्षा-बोध जरुर बढा, किन्तु असल नुकसान दलित-आदिवासी और पिछड़ों का हुआ है.
आंबेडकर प्रवर्तित जिस आरक्षण के सहारे हिन्दू आरक्षण(वर्ण-व्यवस्था) के जन्मजात वंचित शक्ति के स्रोतों में शेयर पाकर राष्ट्र के मुख्यधारा से जुड़ रहे थे, उस आरक्षण के खात्मे में ही संघ प्रशिक्षित प्रधानमंत्रियों ने अपनी उर्जा लगायी है. इस हेतु ही उन्होंने बड़ी-बड़ी सरकारी कपनियों को, जिनमें हजारों लोग जॉब पाते थे, औने-पौने दामों में बेचने जैसा देश-विरोधी काम अंजाम दिया. इस मामले मोदी वाजपेयी को भी बौना बना दिए. वहीं मोदी पीएम के रूप में अपने पहले कार्यकाल में सरकारी अस्पतालों, हवाई अड्डों, रेलवे इत्यादि को निजी हाथों में देने सर्वशक्ति लगाने के बाद दुबारा सत्ता में आकर आज बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेचने में अधिकतम उर्जा लगा रहे हैं. उनके इस काम को संघ के ही स्वदेशी जागरण मंच एक प्रस्ताव पारित कर देश-विरोधी काम घोषित कर दिया है. यह सब काम वह सिर्फ वर्ग-शत्रु बहुजनों को फिनिश करने के लिए ही कर रहे हैं. उनकी नीतियों से पिछले साढ़े पांच सालों में बहुजन उन स्थितियों में पहुँच गए हैं, जिन स्थितियों में दुनिया के तमाम वंचितों ने स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई छेड़ा.
मोदी –राज में एक ओर जहाँ दलित-आदिवासी और पिछड़े गुलाम बनते जा रहे हैं, वहीं हिन्दू आरक्षण के अल्पजन सुविधाभोगी वर्ग का शक्ति के समस्त स्रोतों पर औसतम 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा हो गया है. शक्ति के स्रोतों पर सुविधाभोगी वर्ग के अभूतपूर्व कब्जे से वंचित बहुजन जिस पैमाने पर सापेक्षिक वंचना(रिलेटिव डिप्राइवेशन ) के शिकार हुए हैं, उसका भाजपा-विरोधी यदि कायदे से अहसास करा दें तो मुस्लिम विद्वेष के जरिये भाजपा के हेट –पॉलिटिक्स कि सारी चाल बिखर कर रह जाएगी. क्योंकि तब बहुसंख्य लोगों कि नफरत सुविधाभोगी वर्ग की ओर शिफ्ट हो जाएगी. याद रहे भाजपा की हेट पॉलिटिक्स इसलिए कामयाब हो जाती है क्योंकि इसके झांसे निरीह दलित, आदिवासी और पिछड़े आ जाते हैं.
एच.एल. दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)