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अलगाव की स्थिति स्थाई नहीं होनी चाहिए - अशोक वाजपेयी

The state of isolation should not be permanent - Ashok Vajpayee

- सहज होना, सरल होना, आसान होना, कितना मुश्किल है इरफान होना - अजय ब्रह्मात्मज

नई दिल्ली, 01 मई 2020 . प्राकृतिक आपदाएं आती हैं और अपने साथ बहुत कुछ बहा कर ले जाती हैं। इतिहास में ऐसे कई शहरों का वर्णन है जिन्हें आपदाओं ने लील लिया। लेकिन ज़िंदगी अपना रास्ता ढूँढ लेती है।

विश्व कोरोना के संकट से जूझ रहा है लेकिन, इसी संकट में साथ देने और एक-दूसरे के लिए खड़े होने की कहानियाँ भी हैं। यह कहानियाँ सामाजिकता की नई परिभाषाओं को गढ़ रहीं हैं। जाति, धर्म, देश इन सबसे उपर, इंसान की इंसान के प्रति निष्ठा, प्यार, इज़्ज़त हमें एक नया परिचय दे रहे हैं।

यह सच है कि महामारी ने हमारे जीवन की स्वाभाविकता को पूरी तरह उलट दिया है। कोरोना के बाद की दुनिया कैसी होगी इसके बारे में हम अभी नहीं जानते। लेकिन, उम्मीद का दामन थामें हम इस महामारी पर जीत हासिल करेंगे।

लॉकडाउन में 39 दिन से लगातार राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव पेज से साहित्यिक और वैचारिक चर्चाओं का आयोजन किया जा रहा है। ‘स्वाद-सुख’ के विशेष कार्यक्रम में लॉकडाउन के दौरान घर पर बनाए जा सकने वाले व्यंजनों की चर्चा एवं उससे संबंधित रोचक जानकारियां, लोगों का प्रिय कार्यक्रम बन चुका है। इसी सिलसिले में गुरुवार का दिन वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी, लेखक रेखा सेठी, फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज और इतिहासकार पुष्पेश पंत के सानिध्य में व्यतीत हुआ।

अलगाव की स्थिति स्थाई नहीं होनी चाहिए - अशोक वाजपेयी

40 दिन से भी अधिक दिनों से हम एकांतवास में हैं। लेकिन आभासी दुनिया के जरिए हम दूसरे से जुड़े हुए हैं। गुरुवार की शाम राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से जुड़कर वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने लोगों के साथ एकांतवास में जीवन एवं लॉकडाउन

के बाद के समय की चिंताओं पर अपने विचार व्यक्त किए।

आभासी दुनिया के मंच से जुड़कर अशोक वाजपेयी ने कहा,

“इन दिनों इतना एकांत है कि कविता लिखना भी कठिन लगता हैं। हालांकि यह एक रास्ता भी है इस एकांत को किसी तरह सहने का। यही मानकार मैंने कुछ कविताएं लिखीं हैं।“

अशोक वाजपेयी ने कहा कि यह कविताएं लाचार एकांत में लिखी गई नोटबुक है। लाइव सेशन में उन्होंने अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया–

“घरों पर दरवाज़ों पर कोई दस्तक नहीं देता / पड़ोस में कोई किसी को नहीं पुकारता/  अथाह मौन में सिर्फ़  हवा की तरह अदृश्य/ हलके से हठियाता है / हर दरवाज़े हर खिड़की को / मंगल आघात पृथ्वी का/ इस समय यकायक / बहुत सारी जगह है खुली और खाली/ पर जगह नहीं है संग-साथ की/  मेल-जोल की/  बहस और शोर की / पर फिर भी जगह है/  शब्द की/ कविता की/ मंगलवाचन की...”

लॉकडाउन का हमारे साहित्य और ललित कलाओं पर किस तरह का और कितना असर होगा इसपर अपने मत व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा,

“हमारे यहाँ सामान्य प्रक्रिया है कि श्रोता या दर्शक संगीत या नृत्य कला की रचना प्रक्रिया में शामिल रहते हैं। लेकिन, आने वाले समय में अगर यह बदल गया तो यह कलाएं कैसे अपने को विकसित करेंगी? साथ ही सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि, वो बिना कार्यक्रमों के जीवन यापन कैसे करेंगी? उनके लिए आर्थिक मॉडल विकसित कर उन्हें सहायता देना हमारी जिम्मेदारी है। जरूरत है इस संबंध में एकजुट विचार के क्रियान्वयन की। साहित्य में भी ई-बुक्स का चलन बढ़ सकता है।“

उन्होंने यह भी कहा,

“कोरोना महामारी ने सामाजिकता की नई परिभाषा को विकसित किया है। लोग एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहे हैं लेकिन महामारी का यह असामान्य समय व्यक्ति और व्यक्ति के बीच के संबंध को नई तरह से देखेगा। जब हम एक दूसरे से दूर- दूर रहेंगे, एक दूसरे को बीमारी के कारण की तरह देखने लगेंगे...तो दरार की संभावनाएं बढ़ जाएगीं। यह भय का माहौल पैदा करेगा। हमारा सामाजिक जीवन इससे बहुत प्रभावित होगा। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि यह अलगाव स्थायी न हो।“

लॉकडाउन है लेकिन हमारी ज़ुबानों पर ताला नहीं लगा है। इसलिए हमें अपनी अभिव्यक्ति के अधिकार का पूरा उपयोग करना चाहिए। हम, इस समय के गवाह हैं।

साहित्यिक विमर्श के कार्यक्रम के तहत राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव के मंच से रेखा सेठी ने स्त्री कविता पर बातचीत की। लाइव जुड़कर बहुत ही विस्तृत रूप में स्त्रियों पर आधारित कविताओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि, “स्त्रियों के प्रति संवेदनशीलता की कविताएं सिर्फ़ स्त्रियों ने नहीं लिखे हैं, बल्कि हिन्दी साहित्य में बहुत ऐसे कवि हैं जिन्होंने हाशिए पर खड़ी स्त्री को अपनी कविता का केन्द्र बनाया है।“

उन्होंने बातचीत में कहा कि

“जब स्त्रियों ने अपने मानक को बदलकर अपने आप को पुरूष की नज़र से नहीं, एक स्त्री की नज़र से देखना शुरू किया, अपनी बात को संप्रेषित करना शुरू किया तो वहीं बदलाव की नई नींव पड़ी।“

स्त्री कविता पर रेखा सेठी की दो महत्वपूर्ण किताब – स्त्री कविता: पक्ष और परिपेक्ष्य तथा स्त्री कविता: पहचान औऱ द्वन्द राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है।

“सहज होना, सरल होना, आसान होना, कितना मुश्किल है इरफान होना”

राजकमल प्रकाशन समूह के आभासी मंच से ‘हासिल-बेहासिल से परे : इरफ़ान एक इंसान’ सत्र में इरफ़ान के व्यक्तित्व और फ़िल्मों से जुड़े कई किस्से साझा किए फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने। 29 अप्रैल की सुबह इरफ़ान ख़ान हमें छोड़ कर चले गए लेकिन उनकी याद हमारे साथ, हमारे मानस में अमिट है।

फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने इरफ़ान को याद करते हुए फ़ेसबुक लाइव के मंच से बताया कि

“मुझे हमेशा लगता रहा है कि इरफ़ान हिन्दुस्तानी फ़िल्म इंडस्ट्री में मिसफिट थे। लेकिन, उन्हें यह भी पता था कि फ़िल्में ही ऐसा माध्यम है जो उनकी अभिव्यक्ति को एक विस्तार और गहराई दे सकता था इसलिए वे लगातार फ़िल्में करते रहे।“

इरफ़ान के जीवन की सरलता और सहजता पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि, “ज़िन्दगी की छोटी चीज़ों का उन्हें बहुत शौक था। पतंगबाज़ी करना और खाने का शोक उन्हें नए व्यंजनों की ओर आकर्षित करता था। उन्हें खेती करना बहुत पसंद था। जब भी उन्हें समय मिलता तो वे शहर छोड़कर गाँव चले जाते थे।“

साहित्य के साथ इरफ़ान के रिश्ते को इसी से आंका जाता सकता है कि उनकी बहुत सारी फ़िल्में साहित्यिक रचनाओं पर आधारित हैं। इस विषय पर अपनी बात रखते हुए अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि, “थियेटर की पृष्ठभूमि से आने वाले इरफ़ान के जीवन में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान था। कई ऐसी साहित्यिक रचनाएं हैं जो उन्हें बहुत पसंद आयी थी और वे चाहते थे कि कोई इसपर फ़िल्म बनाएं। वे खुशी से इन फ़िल्मों में काम करना पसंद करते। उदय प्रकाश उनके सबसे पसंदीदा लेखकों में से थे। उनकी रचनाओं के नाट्य रूपांतरण में उन्होंने काम भी किया था।“

इरफ़ान अपनी फ़िल्मों के किरदार पर बहुत मेहनत करते थे। पान सिंह तोमर, अशोक गांगूली या इलाहाबाद के छात्र नेता का किरदार, यह सभी इस बात का प्रमाण है कि वे अपने दर्शकों को उस स्थान की प्रमाणिकता से अभिभूत कर देते थे।

अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि, “इरफ़ान के जीवन में उनकी पत्नी सुतपा का रोल बहुत महत्वपूर्ण है। एनएसडी के समय से दोनों दोस्त थे और सुतपा ने राजस्थान की मिट्टी से गढ़े इरफ़ान के व्यक्तित्व को निखारने और संवारने में अपना बहुत कुछ अर्पित किया है।“

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