लखनऊ में सीएए हिंसा से जुड़े आरोपियों के होर्डिंग्स लगाने के योगी सरकार के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल खड़े किए हैं। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हम आपकी चिंता समझ सकते हैं, लेकिन कोई भी ऐसा कानून नहीं, जिससे आपके होर्डिंग लगाने के फैसले को समर्थन किया जा सके। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
योगी सरकार द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक नहीं लगाएगी, जिसमें यूपी के अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वो सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर को हटाएं।
जस्टिस उमेश उदय ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन बेंच ने कहा कि इस मामले को चीफ जस्टिस देखेंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे पहले यूपी सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कई बड़ी टिप्पणियां कीं।
उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदलत से कहा कि 95 लोग शुरुआती तौर पर पहचाने गए। उनकी तस्वीरें होर्डिंग पर लगाई गईं।
सॉलिसिटर ने कहा कि इनमें से 57 लोगों पर आरोप के सबूत भी हैं, लेकिन आरोपियों ने अब निजता के अधिकार का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय में होर्डिंग को चुनौती दी।
सॉलिसिटर की दलील पर जस्टिस ललित ने कहा कि अगर दंगा-फसाद या सरकारी संपत्ति बर्बाद करने में किसी खास संगठन के लोग
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हमने पहले चेतावनी और सूचना देने के बाद होर्डिंग लगाए। इस पर जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि जनता और सरकार में यही फर्क है। जनता कई बार कानून तोड़ते हुए भी कुछ कर बैठती है, लेकिन सरकार पर कानून के अनुसार ही चलने और काम करने की इजाजत है।
जस्टिस ललित ने प्रशासन द्वारा होर्डिंग लगाने के फैसले पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि हम आपकी चिंता को समझ सकते हैं, लेकिन कोई भी ऐसा कानून नहीं, जिससे आपके होर्डिंग लगाने के फैसले को समर्थन किया जा सके।
शीर्ष अदालत की टिप्पणी पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ब्रिटेन के सर्वोच्च न्यायालय ने भी व्यवस्था दी है कि अगर कोई मुद्दा या कार्रवाई जनता से सीधा जुड़े या पब्लिक रिकॉर्ड में आ जाए तो निजता का कोई मतलब नहीं रहता। होर्डिंग हटा लेना ऐसी कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन मुद्दा बड़ा है।
सॉलिसिटर जनरल की दलील पर पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी की ओर से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने बुनियादी नियमों की अनदेखी की।
श्री सिंघवी ने कहा कि अगर ऐसे ही फैसले लेते रहे तो नाबालिग बलात्कारी के मामले में भी यही होगा? इसमें बुनियादी दिक्कत है।
श्री सिंघवी ने कहा कि तीन साल बीत जाने के बाद भी सरकार बैंक डिफॉल्टर के नाम अब तक सार्वजनिक नहीं कर पाई।
उन्होंने कहा कि यह पिक एंड चूज का मामला है। सरकार ने आदेश जारी कर अधिसूचित कर दिया। क्या यही अथॉरिटी है?
सिंघवी ने कहा कि सरकार ने लोकसंपत्ति बर्बाद करने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ही फैसले की अनदेखी की है।