दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से शुरू हुए विवाद में पुलिस और वकीलों दोनों की ओर से अपनी ताकत का इजहार कर दिया गया है। पहले वकीलों ने हड़ताल कर अपनी पॉवर दिखाई तो बाद में पुलिस वालों ने भी मोर्चा संभाल लिया। कल दिल्ली में पुलिस वालों ने अधिकारियों द्वारा उनकी मांगें मान लेने पर भले ही अपना आंदोलन खत्म कर दिया हो पर यह विवाद रुकने की जगह और बढ़ रहा है।
दिल्ली में पुलिस और वकीलों में पैदा हुई खटास का असर साफ दिखाई दिया। अदालतों में पुलिस वाले गायब रहे तो वकीलों ने पांच अदालतों में कामकाज ठप्प करके रखा। रोहिणी कोर्ट में तो एक वकील ने बिल्डिंग की छत पर चढ़कर खुदकुशी करने की कोशिश की।
तीस हजारी कोर्ट विवाद के बाद वकीलों ने जो उत्पात मचाया, पुलिस ने अपने ही अधिकारियों के खिलाफ जो मोर्चा खोला वह पूरे देश ने देखा। यह स्थिति देश की राजधानी दिल्ली की ही नहीं बल्कि पूरे देश में यही हाल है। न किसी को कानून पर विश्वास रहा है और न ही कानून के रखवाले कानून के प्रति गंभीर हैं। क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है तो वकीलों का विवाद पूरा देश देख रहा है।
दिल्ली से ज्यादा हालत खराब बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब की है। कहना गलत न होगा कि पूरे का पूरा देश अराजकता से जूझ रहा है।
गजब स्थिति है देश में। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास विदेशों में होने वाले विभिन्न समारोह के लिए समय है। अपनी महिमामंडन में समारोह करवाकर अपनी उपलब्धियों का बखाने करने का समय है पर देश में जब भी कहीं
बात-बात पर ट्वीट करने वाले अरविंद केजरीवाल भी चुप्पी साधे बैठे हैं। सबको वोटबैंक चाहिए। हां मामला वोटबैंक का होता तो देखते कि कैसे इनकी आवाज में गर्मी आ जाती। भले ही देश में अराजकता का माहौल हो। रोजी-रोटी का बड़ा संकट लोगों के सामने खड़ा हो गया हो पर देश के कर्णधार इस समय देश समाज नहीं बल्कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की चिंता कर रहे हैं। पुलिस वाले पिटे सा पिटे पर उनको अपनी ड्यूटी करनी है।
जिन अदालतों में खुद कानून नहीं बचा है भला वे क्या कानून की रक्षा करेंगी।
जो वकील खुद कानून को नहीं मान रहे हैं भला वे किसी को क्या न्याय दिलाएंगे ? जिस पुलिस का खुद का विश्वास कानून से उठ रहा है वह भला किसी को कानून का क्या विश्वास दिलाएगी ? देश की राजधानी ही नहीं बल्कि पूरा देश राम भरोसे है। वह बात दूसरी है कि भगवाधारी लोग इन राम को भी अयोध्या के राम से जोड़कर राम मंदिर निर्माण से जोड़ दें।
कहना गलत न होगा कि देश में लोकतंत्र नाम की कोई चीज रह नहीं गई है।
हमारे देश में पुलिस और वकील को कानून का रखवाला माना जाता है। कानून के ये दोनों ही रखवाले सड़कों पर जमकर कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि लोकतंत्र के चार मजबूत स्तंभ माने जाने वाले न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया तमाशबीन बने हुए हैं। जरा-जरा सी बात ट्वीट करने करने वाले राजनेता चुप्पी साधे बैठे हैं। राजनेताओं को देश व समाज से ज्यादा चिंता महाराष्ट्र में सरकार बनाने और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की है।
गजब स्थिति पैदा हो गई है देश में हिन्दू को मुसलमान से लड़ा दिया है। दलित और पिछड़ों को सवर्णों से लड़ा दिया है। गरीब को अमीर से लड़ा दिया गया है। पुलिस को वकीलों से लड़ा दिया गया है। अड़ौसी से पड़ौसी लड़ रहा है। रिश्तेदार से रिश्तेदार लड़ रहा है। भाई से भाई लड़ रहा है। नजदीकी रिश्तों में बड़े स्तर पर खटास देखी जा रही है। जो युवा अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहना चाहिए वह जाति-धर्म और पेशों के नाम पर लड़ रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि लोगों में इस व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा नहीं है।
देश के सियासतदारों एक रणनीति के तहत इस गुस्से को आपस में उतरने की व्यवस्था पैदा कर दी है। वोटबैंक के लिए राजनीतिक दलों ने देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है। हर कोई निरंकुश नजर आ रहा है। यह सब सत्ताधारी नेताओं, ब्यूरोक्रेट के गैर जिम्मेदाराना रवैये और पूंजीपतियों की निरंकुशलता के चलते हो रहा है। हर कोई कानून को हाथ में लिये घूम रहे हैं। इन सब बातों के लिए कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए। यह व्यवस्था के खिलाफ एक प्रका र का गुस्सा है जो एक-दूसरे पर उतर रहा है।
लोग सब देख रहे हैं कि केंद्र सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं को कैसे अपनी कठपुतली बना रखा है। विधायिका सत्ता की लोभी हो गई है। न्यायापालिका जजों के रिटायर्ड होने पर किसी आयोग के चेयरमैन बनने के लालच के नाम पर प्रभावित हो रही है। कार्यपालिका में भ्रष्टाचार चरम पर है। मीडिया को चलाने वाले अधिकतर लोग काले काम करने वाले हैं। ऐसे में अराजकता नहीं फैलेगी तो फिर क्या होगा ?
तीस हजारी कोर्ट में हुए विवाद के लिए कितने लोग वकीलों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं पर दिल्ली के अलावा भाजपा शासित प्रदेशों में पुलिस कितनी निरंकुशता केसाथ काम कर रही है यह किसी से छुपा है क्या ? दूसरों को कानून का पाठ पढ़ाने वाले खुद ही सड़कों पर अपने कार्यालयों में कानून से खेलते दिखाई देते हैं। ट्रैफिक व्यवस्था के नाम पर पुलिस ने देश में आम आदमी के साथ जो ज्यादती की किसी से छिपी है क्या ? पुलिस की निरंकुशलता के चलते ही आम आदमी उससे पंगा लेने से बचता है। क्योंकि वकील कानून की सभी पेजिदगियां जानते हैं तो उन्होंने पुलिस से मोर्चा लिया है।
इन सबके बीच यह बात निकलकर आती है कि जहां वोटबैंक की बात आती है तो राजनीतिक दल अपनी नाक घुसेड़ देते हैं यदि बात देश और समाज की हो तो चुप्पी साध लेते हैं। जैसे पुलिस और वकीलों के मामले पर साध रखी है। यह देश की विडंबना ही है कि जो गुस्सा एकजुट होकर देश के राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट और लूटखसोट करने वाले पूंजीपतियों के खिलाफ उतरना चाहिए वह आपस में उतर जा रहा है। हां यह बात जरूर है कि देश की व्यवस्था न सुधरी। देश के जिम्मेदार लोगों के जनतार को बेवकूफ बनाने के रवैये में बदलाव न आया तो वह दिन दूर नहीं कि हमारी देश की स्थिति भी पाकिस्तान जैसी हो जाए।
देश पर राज कर रही भाजपा का तो एक ही उद्देश्य ही है कि देश में जितना धर्म और जाति के नाम, पेशों के नाम पर विवाद होगा, जितना देश में अंधविश्वास और पाखंड बढ़ेगा उतनी ही उनकी दुकान आगे बढ़ेगी। देश में अराजकता बढ़ने का बहुत बड़ा कारण घरो में सियासत का घुसेड़ देना है। जरा-जरा सी विवाद हो जाना, एक-दूसरे से नफरत करना तो जैसे आम बात सी हो गई है। इसके लिए न केवल सत्ताधारी और विपक्ष के नेता जिम्मेदार हैं बल्कि निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर भागे चली जा रही जनता भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है।
चरण सिंह राजपूत