दुनिया भर से कोरोना वायरस से लोगों के बीमार होने और मरने की खबरें आ रही हैं, लेकिन जब कोरोना वायरस भारत पहुंचा, तो इसे रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन से मरने की खबरें (News of dying from lockdown), ज्यादा भयावह बन कर सामने आने लगीं हैं। इस भयावहता को अनदेखा कर लोग कह रहे हैं कि "लॉक डाउन ज़रूरी था, सरकार क्या करे।"
विभिन्न देशों ने इस महामारी से लड़ने के लिए क्या-क्या किया है, इसके बारे में पढ़ते हुए एक लेख वेनेजुएला पर मिला।
वेनेजुएला वह देश है, जो साम्राज्यवादी देश अमेरिका के पीछे बसा उसकी आंख की किरकिरी है क्योंकि यह समाजवादी विचारधारा का करीबी "लोक कल्याणकारी" देश है। इस कारण अमेरिका ने उसके ऊपर तमाम तरीके के आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। इस देश में मात्र 86 लोग कोरोना positive पाये गये और मौत एक भी नहीं हुई, क्योंकि सरकार ने इंसानों को केंद्र में रखा, मुनाफे को नहीं।
इस समय अमेरिकी साम्राज्यवादी मीडिया के प्रभाव में चीन को खूब गालियां दी जा रही हैं और उसे ही इस आपदा का कारण माना जा रहा है, जबकि उसने अपने यहां इस महामारी पर विजय हासिल कर ली है। लेकिन यहां तो यह बताना था कि वेनेजुएला ने चीन को गरियाने की बजाय उससे मदद मांगी और चीन ने उसे तत्काल कोवी डाइनोस्टिक किट्स उपलब्ध करा दिए, जिससे 3 लाख 20 हज़ार लोगों की जांच हो सकती थी। इसके अलावा उसने अपने यहां से कुछ मेडिकल एक्सपर्ट और सामान भी भेज दिए।
समाजवादी क्यूबा के मानवीय डॉक्टर इस समय पूरी दुनिया में चर्चा का विषय हैं, उनकी टीम हर देश में जा रही है। वेनेजुएला की मांग पर वहां भी 130 डॉक्टरों की टीम और कोविड-19 से लड़ने वाली दवा (Covid-19 Fighting Drug) की 10 हज़ार खुराक भेज दी गई। मार्च में पहला मामला सामने आते ही सार्वजनिक स्थल बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। लेकिन केवल इतने से कुछ नहीं होता। आगे सुनिए कि उसने क्या किया।
एक वेबसाइट के जरिए नागरिकों का सर्वे कर उसने अपने नागरिकों को वर्तमान समय में होने वाले रोगों की जानकारी जुटाई। उनमें से कोरोना जैसे लक्षण (कोरोना like symptoms) वाले कुछ हज़ार लोगों को चिन्हित कर उन्हें कोरोना के जांच का सुझाव दिया। मेडिकल टीम ने उनके घर पर पहुंच कर उनका परीक्षण किया और पॉजिटिव पाए गए लोगों का तत्काल इलाज शुरू कर दिया।
हमारे देश के ज्यादातर डॉक्टर जहां छुट्टी पर हैं, वेनेजुएला में दो साल पूरा कर चुके मेडिकल छात्रों को कोरोना से लड़ने का प्रशिक्षण देकर मैदान में उतार दिया गया। इस तरह वहां कोरोना के मरीज़ 86 पर ही रुक गए और मौत अब तक एक भी नहीं हुई है। लॉक डाउन के दौरान लोगों को भोजन और आवश्यक सामान उपलब्ध कराने की व्यवस्था की, घरों का किराया कैंसिल कर दिया, सबको तनख्वाह उपलब्ध कराने की व्यवस्था की।
यह सब इसलिए संभव हुए क्योंकि वहां एक ऐसी सरकार है जो मानव केंद्रित समाजवादी व्यवस्था के करीब की ही सही, लोक कल्याणकारी व्यवस्था में यकीन रखती है और मुनाफाखोर साम्राज्यवाद से लगातार लड़ रही है।
वेनेजुएला ही नहीं क्यूबा भी इस बात का उदाहरण है कि किसी भी महामारी से सबसे बेहतर तरीके से वह व्यवस्था ही लड़ सकती है जो पूंजीवाद विरोधी हो, मानव केंद्रित हो।
यह भी देखिए कि खुद पूंजीवाद की राह पर चलने वाली सरकारें भी इस वक्त वही तरीके अपनाने के लिए मजबूर हो रही हैं, जो लोक कल्याणकारी या समाजवादी व्यवस्था का रास्ता है। जैसे स्पेन, आयरलैंड, दक्षिण अफ्रीका ने इस महामारी से लड़ने के लिए अपने यहां के सभी अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण कर दिया है।
चीन को समाजवादी मान कर गालियां देने की बजाय नेट पर खोज कर उन लेखों को भी ज़रूर पढ़ें कि उसने बीजिंग का लॉक डाउन कितने शानदार तरीके से किया, जिससे जनता को कम से बेहद कम असुविधा झेलनी पड़ी।
कोरोना और विश्व आर्थिक मंदी दोनों ही लगातार इस ओर इशारा कर रही हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में इंसान की समस्या का हल नहीं बचा। लेकिन लोग इस निष्कर्ष पर न पहुंचे, इसलिए इसी समय में कई लेख लिखे जा रहे हैं।
हाल ही में विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार और विद्वान जुआल नोवा हरारी का एक लेख "कोरोना के बाद दुनिया" खूब पढ़ा जा रहा है, जो कि "फाइनेंशियल टाइम्स" में छपने के बाद हिंदी में भी अनुदित हो गया है। हमारे कुछ मित्र भी इस लेख से अत्यधिक प्रभावित होकर इसे सबके पास भेज रहे हैं।
लेख सचमुच बांध लेने वाला है, लेकिन लेख की यह गंभीर गड़बड़ी है कि यह लेख लोगों का ध्यान उन उपायों की ओर जाने से रोकता है, जिनसे ऐसी महामारी को न सिर्फ रोका जा सकता है, बल्कि इस समय में लोगों को भुखमरी जैसे हालात से बचाया जा सकता है।
वास्तव में यह लेख घोड़े की आंख के किनारों पर लगाए जाने वाले टोप की तरह है, जिससे लोग इस व्यवस्था के बाहर जाकर सोच भी न सकें। और यही हो भी रहा है, लेख पढ़ने के बाद लोग पूंजीवादी व्यवस्था की तकनीकी विकास के या तो प्रभाव में आ रहे हैं या डर रहे हैं। हरारी वास्तव में इसी दर्शन के विद्वान हैं जो तकनीक और श्रम का संबंध न देख कर तकनीक पर अत्यधिक जोर देते हैं।
हरारी इस बात की ओर लोगों का ध्यान जाने ही नहीं देते हैं कि तकनीक का इस्तेमाल वर्ग व्यवस्था से जुड़ा है। वे तकनीक के पूंजीवादी इस्तेमाल से लोगों को अचंभित और आतंकित करते हैं, लेकिन उन तथ्यों को नहीं बताते जहां तकनीक का इस्तेमाल सरकारों ने अपने यहां के नागरिक अधिकारों को मुकम्मल बनाने के लिए किया है। वे तकनीक के वर्गीय पक्ष को आमने सामने लाने के बजाय "नागरिक अधिकार" और बीमारी से बचाव के लिए "निगरानी की तकनीक" को आमने सामने खड़ा कर बीच का रास्ता निकालते हैं।
वे कहते हैं
"मैं (सरकार द्वारा निगरानी तकनीक के माध्यम से) अपने शरीर का ताप मापे जाने के पक्ष में हूं, लेकिन इसका इस्तेमाल सरकार को सर्व शक्तिमान बनाने के लिए हो, इसके पक्ष में नहीं हूं।"
ऐसा कहकर कर वे बारीक और शातिर तरीके से "सर्विलांस राज्य" को समर्थन देते हैं।
हरारी का लेख दरअसल मानवीय पूंजीवाद का समर्थन करने वाला लेख है। यानि मुनाफा केंद्रित पूंजीवाद बना रहे, लेकिन लोगों के लिए वह मानवीय भी रहे। क्या ये दोनों एक साथ संभव है?
समाजवाद को खारिज करने और मानवीय पूंजीवाद को स्थापित करने के लिए लेख में हरारी ने बड़ी चालाकी से जनता पर निगरानी रखने वाले राज्य के रूप में समाजवादी रहे देशों का ही हवाला दिया है, अमेरिका इजरायल जैसे खतरनाक देशों का नहीं, जो इस मामले में सबसे आगे हैं।
दरअसल जब से विश्व पूंजीवाद अपने आक्रामक एकाधिकारी चरण में पहुंचा है, उसी समय से उदार और मानवीय पूंजीवाद की बात करने वाले ढेरों विद्वान पैदा होने लगे हैं, ताकि बार-बार मंदी का शिकार होने वाले पूंजीवाद से लोगों का विश्वास न डिगे। हरारी ऐसे ही विद्वान हैं। इनके लेख को ध्यान से पढ़ना चाहिए।
कोरोना जैसी बीमारी से लड़ने के लिए और भुखमरी को गरीबी को खत्म करने का रास्ता मार्क्सवाद से ही हो कर जाता है। सच तो ये भी है कि कोरोना ने विश्वव्यापी पूंजीवादी मंदी के कारण को ढकने का काम भी किया है, सरकारों को अब यह कहने का मौका मिल गया है कि जो भी भयानक हो रहा है, या आने वाले समय में होने वाला है वह कोरोना के कारण है। जबकि सच्चाई यह है कि पूंजीवाद और उसकी मंदी ने किसी भी महामारी से लड़ने की सरकार की क्षमता खत्म कर दी है। कोरोना के लॉक डाउन से जूझते हुए इस समय इसपर विचार करना बेहद जरूरी है।
सीमा आज़ाद
प्रस्तुति - कामता प्रसाद
Notes -
Yuval Noah Harari is a historian, philosopher, and the bestselling author of Sapiens: A Brief History of Humankind, Homo Deus: A Brief History of Tomorrow, and 21 Lessons for the 21st Century.
Born in Haifa, Israel, in 1976, Harari received his PhD from the University of Oxford in 2002, and is currently a lecturer at the Department of History, the Hebrew University of Jerusalem. His books have sold over 23 Million copies worldwide.
Yuval Noah Harari quotes
“History began when humans invented gods, and will end when humans become gods”