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और भी शहर हैं इस मुल्क में दिल्ली के सिवा ?

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में फैले ख़तरनाक वायु प्रदूषण की ख़बरें अभी लगभग सभी राष्ट्रीय टीवी चैनल्स पर चलनी कम भी नहीं हुई थीं कि अचानक दिल्ली में  गत 2 नवंबर को तीस हज़ारी से शुरू हुए पुलिस -वकील संघर्ष ने दिल्ली के वायु प्रदूषण के समाचार की जगह ले ली। पुलिस-वकील संघर्ष (Police-lawyer conflict) से लेकर, उनके 11 घंटे के धरने, विरोध प्रदर्शन,जुलूस व पुलिस जनों के परिवार के लोगों द्वारा दिए जाने वाले धरने व इससे संबंधित प्रतिक्रियाओं व इसे लेकर होने वाले राजनैतिक आरोपों व प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया। आजकल इसी ख़बर के फ़ॉलो अप पर पूरा ज़ोर दिया जा रहा है।

इन ख़बरों के अतिरिक्त दिल्ली की केजरीवाल सरकार से जुड़ी ख़बरें, दिल्ली में होने वाली बलात्कार की घटनाएं, यहाँ के जेएनयू व डीयू अथवा जामिया की ख़बरें, सड़कों पर लगे जाम, यहाँ की टैक्सी, टैम्पू हड़ताल, धरने प्रदर्शन अथवा राजधानी में होने वाली राजनैतिक  गतिविधियां, कैंडल मार्च आदि समाचार, यहाँ तक कि दिल्ली के खेल संगठनों से जुड़ी ख़बरें भी टीवी पर प्रमुख स्थान पाती हैं। हालांकि इस तरह की या कई बार तो इससे भी बड़ी घटनाएं देश के दूसरे हिस्सों में भी घटती हैं, परन्तु या तो उन्हें बिल्कुल ही स्थान नहीं मिल पाता या फिर उतना स्थान नहीं मिल पाता जितने स्थान की वह घटनाएं हक़दार हैं। हाँ अगर बात टीआरपी हासिल करने की हो या किसी घटना को लेकर टीवी चैनल्स में प्रतिस्पर्धा सी स्थापित हो जाए फिर तो किसी भी क्षेत्र का कोई भी समाचार मुख्य समाचार का स्थान पा जाता है।

ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या केवल दिल्ली में ही भारत के लोग बसते हैं?

क्या पूर्वोत्तर, दक्षिण भारत, तथा देश के दूर दराज़ के अन्य क्षेत्र समस्याओं, घटनाओं, राजनैतिक गहमा गहमी अथवा अपराधों से मुक्त हैं

जो प्रायः उनकी चर्चा ही सुनने को नहीं मिलती ? क्या दिल्ली के सिवा देश में और कोई सूबा या शहर ऐसा नहीं जिसकी ख़बरें राष्ट्रीय टीवी चैनल्स में प्रमुख स्थान पाने की हैसियत रखती हों?

राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली, जिसे हिंदुस्तान का दिल भी कहा जाता है निश्चित रूप से देश की राजधानी होने के नाते पूरे देश का राजनैतिक भविष्य, राज्यों का विकास, पूरे देश के लिए शिक्षा, रोज़गार, औद्योगिक विकास तथा सड़क बिजली पानी जैसी पूरे देश की अनेक ज़रूरतों संबंधी नीति निर्धारित करती है। परन्तु हक़ीक़त में दिल्ली के भू भाग का महत्व केवल इतना ही है कि वह देश की राजधानी है अन्यथा देश के चप्पे-चप्पे में रहने वाले प्रत्येक भारतवासी का भी वही महत्व अथवा देश के लिए वही योगदान है जो दिल्ली के लोगों का है। फिर आख़िर चर्चा में सिर्फ़ और सिर्फ़ दिल्ली ही क्यों ?

क्या प्रदूषण केवल दिल्ली में ही छाया रहता है ? शेष भारत क्या प्रदूषण मुक्त है?

ट्रैफ़िक जाम क्या केवल दिल्ली में होता है? अपराध क्या सिर्फ़ दिल्ली में ही घटते हैं? छात्र राजनीति केवल जेएनयू व डी यू अथवा जामिया में ही होती है? जी नहीं, सच पूछिए तो दिल्ली के आस पास ही दिल्ली से अधिक प्रदूषित शहर मौजूद हैं मगर चर्चा में नहीं हैं। मिसाल के तौर पर ग़ाज़ियाबाद और मेरठ, फ़रीदाबाद और गुड़गांव जैसे शहर भी वर्ष भर वायु प्रदूषण का ज़हर उगलते रहते हैं।

कानपुर, आगरा, इलाहबाद, कोलकाता, चेन्नई, पटना जैसे अनेक नगर व महानगर न केवल भयानक व ज़हरीले वायु प्रदूषण की चपेट में हैं बल्कि भारी ट्रैफ़िक जाम से लेकर तरह-तरह के अपराधों की गिरफ़्त में भी रहते हैं। परन्तु इनका कोई ज़िक्र कभी भी टीवी समाचारों में होता नहीं दिखाई देता।

यदि हम प्रदूषण संबंधी ख़बरों (Pollution related news) को ही लें तो इसी खबर की चर्चा या इसके फ़ॉलो अप के रूप में यही चैनल देश के अण्डमान निकोबार जैसे अति दूरदराज़ केंद्र शासित प्रदेश के प्रदूषण मुक्त होने के तरीक़ों की चर्चा छेड़ सकते थे। देश के लोगों को बताया व दिखाया जा सकता है कि किन नीतियों पर चलते हुए देश का एक अति दूर दराज़ का केंद्र शासित प्रदेश और समुद्री टापू अपनी प्राकृतिक सम्पदा, सौंदर्य तथा जलवायु की रक्षा करते हुए एवं विकास की अंधी दौड़ से स्वयं को दूर रखते हुए अपने आप को वायु प्रदूषण से कैसे बचाए हुए है। इस प्रकार की रिपोर्टिंग शेष भारत के लोगों को प्रोत्साहित कर सकती हैं।

Kanhaiya Kumar is the result of a sharp negative media reporting

इसी प्रकार विश्वविद्यालय कैंपस की घटनाओं को ले लें। इसी मीडिया ने देश को कन्हैया कुमार नाम का एक नेता दे दिया।

मीडिया की ताबड़तोड़ नकारात्मक रिपोर्टिंग का ही परिणाम है कन्हैया कुमार

ज़रा उस दौर को याद कीजिये जब कन्हैया कुमार का उदय हुआ। आप को तब यह भी याद होगा कि राजस्थान के एक 'सांस्कृतिक राष्ट्रवादी' विधायक ने जेएनयू कैम्पस से पाए जाने वाले सिगरेट व बीड़ी के जले हुए टुकड़ों की गिनती की थी, उसने  कैम्पस में पाई जाने वाली शराब व बियर की बोतलों की अलग अलग गिनती की। नशीली दवाइयां व इंजेक्शन खोज निकाले, इतना ही नहीं बल्कि कैम्पस में कितनी हड्डियां चबाई गईं और कितने प्रयुक्त निरोध चुने गए, इन सब का पूरा डेटा राजस्थान के माननीय विधायक के पास था जिसे हमारे आप तक पहुँचाने का काम देश के तथाकथित मुख्य धारा के स्वयंभू राष्ट्रीय टीवी चैनल्स ने किया।

मान लिया कि इन टीवी चैनल्स की प्राथमिकता में ऐसी ही ख़बरें आती हैं तो क्या यह सब केवल जेएनयू तक ही सीमित है या किसी सोची समझी व सुनियोजित रणनीति के तहत महज़ जेएनयू को बदनाम करने के लिए एक साज़िश के तहत ऐसी ख़बरों को प्रसारित किया गया? ऐसी ही दिल्ली आधारित बम्पर रिपोर्टिंग का ही परिणाम दिल्ली के अन्ना आंदोलन की सफलता से लेकर अरविन्द केजरीवाल का उदय तक रही हैं। आए दिन दिल्ली में होने वाले कैंडल मार्च व मैराथन दौड़ें भी समाचारों में अहम स्थान पा जाती हैं।

और यदि यही राष्ट्रीय मीडिया दिल्ली से बाहर नज़र डालता भी है तो या तो कश्मीर पहुँच कर आतंकवाद पर चर्चा छेड़ देता है या फिर सीमा पार कर सीधा पाकिस्तान पर 'आक्रमण' कर बैठता है। और यदि देश में और कुछ देखता भी है तो या तो हिन्दू मुसलमान या अयोध्या का मंदिर मस्जिद विवाद। आसाम में एन आर सी के भय से अब तक कितने लोग आत्म हत्या कर चुके, ऐसे लोगों की मनोस्थिति क्या होती जा रही है, मीडिया नहीं बता रहा।

कश्मीर में शांति होते तो सभी देख रहे हैं वहां की अशांति, घुटन, बेबसी और भुखमरी की ख़बरों से सब को परहेज़? इसी प्रकार पूर्वोत्तर के व दक्षिण भारत के लोगों की तमाम मांगों, उनकी ज़रूरतों, तथा वहां होने वाले अपराधों से देश नावाक़िफ़ रह जाता है क्यों कि राष्ट्रीय मीडिया में उन्हें जगह नहीं मिल पाती। लिहाज़ा मीडिया घराने के संचालकों को स्वयं यह सोचना चाहिए कि ख़बरों के लिए केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि और भी शहर हैं इस मुल्क में दिल्ली के सिवा !

निर्मल रानी

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