जिस समय देश आज़ाद हुआ हमारा कोयला उद्योग (Coal industry) निजी मालिकों के हाथों में था और कोयला मजदूरों की स्थिति (Status of coal laborers) जानवरों से भी बदतर थी जिसका भली-भांति चित्रण शत्रुघ्न सिंहा की फ़िल्म “कालिका“ में किया गया है. यह फ़िल्म 1983 में रिलीज़ हुई थी.
1956 में भारत सरकार ने National Coal Development Corporation (NCDC) की स्थापना की और आंध्र प्रदेश ने सिंगरेनी कोलियरीज़ लिमिटेड का अधिग्रहण किया जिसमें आज भारत सरकार की 49% की भागीदारी शामिल है.
देश में बढ़ते हुए कोयले की माँग को पूरा करने में निजी मालिकों की नाकामी और मनमानी, कोयला मज़दूरों की दयनीय स्थिति और उनकी सुरक्षा एंव स्वास्थ के प्रति मालिकों की लापरवाही जैसी गंभीर समस्याओं के पेश-ए-नज़र तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण का फ़ैसला लिया और दो चरणों में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. प्रथम चरण में 01 मई 1972 को 226 कोकिंग कोयला वाली खदानों का राष्ट्रीयकरण हुआ और भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (Bharat Coking Coal Limited,) नामक कंपनी बनी, फिर 01 मई 1973 को 07 राज्यों में स्थित 711 नन-कोकिंग कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण हुआ और इसके प्रबंधन हेतु कोयला खान प्राधिकरण लिमिटेड ( Coal Mines Authority Limited- CMAL ) नामक कंपनी बनाई गई. तदुपरांत नवम्बर 1975 में दोनों कंपनियों को मिला कर कोल इण्डिया लिमिटेड (Coal India Limited) की स्थापना की गयी जो अपनी 07 Coal Producing Subsidiaries के साथ देश की महारत्न कंपनी और विश्व की सबसे बड़ी कोयला कम्पनी है. किन्तु केंद्र सरकार की नई आर्थिक एंव औद्योगिक नीति के कारण अब BSNL और AIR INDIA जैसी कंपनियों की तरह कोल इण्डिया का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ चुका है और अभी तक इसके 30.95 % शेयर बिक चुके
बीजेपी विपक्ष में रहते हुए जिस FDI का सख्ती से विरोध करती रही थी सत्ता में आते ही इसने इसे मान्यता दे दी और मोदी सरकार ने Coal Sector में 100 % FDI को मंज़ूरी दे दी जिसका समस्त श्रमिक संगठनों द्वारा लगातार विरोध होता रहा है किन्तु इन सारे विरोधों के बावजूद मोदी सरकार ने इस दिशा में एक क़दम और आगे बढ़ाते हुए Commercial Mining को भी मंज़ूरी दे दी जिसके तहत 18 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 41 Coal Blocks की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी जिससे कोयला उद्योग अब निजी मालिकों के हाथों में चला जायेगा. प्रधानमंत्री ने अपने इस फ़ैसले को आत्मनिर्भर भारत की ओर एक बड़ा क़दम बताया है किन्तु कोयला श्रमिकों में सरकार के इस फ़ैसले से तीव्र रोष व्याप्त है और सभी केंद्रीय श्रमिक संगठनों - इंटक (INTUC), आयटक (AITUC), सीटू (CITU), एचएमएस (HMS) और आर एस एस से सम्बंधित संगठन बीएमएस (BMS) इत्यादि ने Commercial Mining के विरोध में एक ज़बरदस्त आन्दोलन छेड़ दिया है.
जाने-माने श्रमिक नेता इंटक के सेक्रेट्री जनरल एस क्यू ज़माँ ने एक बयान में कहा है कि आत्मनिर्भर भारत के नाम पर मोदी सरकार का यह क़दम कोयला कामगारों को राष्ट्रीयकरण के पूर्व वाली दयनीय स्थिति में पहुंचा देगा.
उन्होंने स्पष्ट किया कि कोल इण्डिया ने बीते वर्ष 602 मिलियन टन और एससीसीएल ने 65 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया है और इसके श्रमिक देश को कोयला उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम हैं.
उन्होंने बताया कि मोदी सरकार की इस मज़दूर विरोधी एंव जनविरोधी नीति के विरुद्ध 02 जुलाई से 04 जुलाई तक कोल इण्डिया और सिंगरेनी कोलियरीज़ कंपनी लिमिटेड (S C C L ) की सभी खदानों में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया है जिसमें तमाम श्रमिक संगठन शामिल होंगे.
सीटू ( सीआईटीयू) के वरिष्ठ नेता कॉमरेड एस के बख्शी ने कमर्शियल माइनिंग को कोरोना से भी ज़्यादा खतरनाक बताते हुए कहा है कि समस्त सार्वजनिक उद्योगों को कौड़ी के भाव पूँजीपतियों के हवाले कर देने से देश विकास के नहीं बल्कि विनाश के रास्ते पर जा रहा है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया है कि इस हड़ताल को कोयला मजदूर ऐतिहासिक रूप से सफल बनाएँगे. वेस्टर्न कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड के जाने पहचाने कामगार नेता ज़ियाउलहक़ ने भी इस हड़ताल को सफल बनाने की अपील की है.
आयटक संगठन के स्थानीय लीडर कॉम. विजय अड्डूरवार से प्राप्त जानकरी के अनुसार IndustriALL Global Union के जनरल सेक्रेट्री वाल्टर संशेज़ ने भी कमर्शियल माइनिंग का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है.
IndustriALL Global Union एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो विश्व स्तर पर खनन, उर्जा और विनिर्माण के क्षेत्र में कार्यरत है और 140 देशों में 05 करोड़ से ज़्यादा कामगारों की नुमाइंदगी करता है. इसका मुख्यालय जिनेवा (स्वीटज़रलैंड) में है. .
अब देखना है कि कोयला मज़दूरों का यह आंदोलन मोदी सरकार के ऊपर कोई प्रभाव डालने में सफल होता है या नहीं. फ़िलहाल तो मेरी नज़रों के सामने स्व॰ इंदिरा गांधी की वह शंका घूम रही है जो उन्होंने कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पश्चात कोयला मजदूरों को संबोधित करते हुए कुछ इस तरह व्यक्त की थी,
“आप लोग सतर्क रहें, लगन से काम करें और राष्ट्रीयकृत कोयला उद्योग को सफल बनाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं, वरना कोयला खदानों के पुराने मालिक राष्ट्रीयकरण को फेल कराना चाहेंगे. वे साबित करना चाहेंगे कि सरकार कोयला खदानों को नहीं चला सकती. आप सबको इस चुनौती को स्वीकार करना होगा.”
ऐसा प्रतीत होता है कि स्व॰ इंदिरा गाँधी ने जो शंका व्यक्त की थी वह अब केवल कोयला उद्योग ही नहीं बल्कि समस्त सार्वजनिक उद्योगों के लिए एक चुनौती बन चुकी है और इन सार्वजनिक उद्योगों के अस्तित्व को बचाने के लिए समस्त मजदूर यूनियनों को ज़बरदस्त संघर्ष करना होगा.
मोहम्मद ख़ुर्शीद अकरम सोज़