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इस बार गाड़ी नहीं पलटी अतीक अहमद की

गैंगस्टर अतीक अहमद का अंत (end of gangster atiq ahmed) लगभग अनुमानों के अनुसार ही हुआ। कुछ दिनों पहले ही उसे अहमदाबाद से प्रयागराज सड़क मार्ग से लाया गया था। तब लोग हर्ष मिश्रित उत्सुकता से उस वाहन के पलटने का इंतज़ार कर रहे थे, जिसमें बिठाकर उसे लाया जा रहा था- उसी प्रकार जैसे लोग किसी मूवी के क्लाईमेक्स का इंतजार सांस रोककर करते हैं।

टीवी मीडिया का

मूत्रकाल

अपेक्षित मंज़र को दर्शाने में चूक न जायें, इसके लिए वाहनों के काफिले में शामिल अनेक न्यूज़ चैनलों की ओबी वैनों में सवार रिपोर्टर व कैमरामैन लम्बे सफर में फिल्मांकन जारी रखे हुए थे। अतीक को एक जगह रोककर जब पेशाब के लिए उतारा गया तब भी पत्रकारिता के निम्नतम स्तर को छूने से कोई परहेज न करते हुए टीवी मीडिया ने अपना कर्तव्य भी पूरा किया, लेकिन इस निराशा के साथ कि उसका 'एनकाऊंटर' वहां नहीं हो सका।

बंदूक संस्कृति : अमेरिका अपनी ही नीतियों का शिकार

बहरहाल, प्रयागराज में शनिवार की रात जब उसे पुलिस अभिरक्षा में स्वास्थ्य परीक्षण के लिये उसके भाई अशरफ के साथ एक अस्पताल लाया गया था। मीडियाकर्मी बनकर आए तीन युवकों ने दोनों को गोली मार दी। हत्या के वक्त बड़ी संख्या में पुलिस जवानों से घिरा हुआ अतीक अहमद प्रेस वालों से बात कर रहा था।

कहा जा सकता है कि अतीक की हत्या का लाइव प्रसारण (Live telecast of gangster Atiq Ahmed's murder) समाज के एक बड़े तबके को संतोष दे ही गया जिन्हें इन दिनों कोर्ट-कचहरी में न्यायाधीशों की बजाय हथियारों के सहारे सड़कों पर न्याय होते देखना पसंद है, वह भी कुछ वर्ग विशेष के लोगों के खिलाफ।

पिछले 8-9 वर्षों में बदला है देश की जनता का फिनोमिना भी

अभी दो दिन पूर्व ही अतीक के एक बेटे असद की उसके एक साथी के साथ पुलिस एनकाउंटर में ही मौत हुई थी। पिछले 8-9 वर्षों में देश में जो बहुत कुछ बदला है, उनमें एक यह फिनोमिना भी है। जनता ने इस न्यायिक सैद्धांतिकी को आत्मसात कर लिया है कि न्यायालय तक मुजरिमों को ले जाने की आवश्यकता नहीं है। उनके साथ यही सलूक ठीक है। हालांकि लोगों ने विकल्प खुला रख छोड़ा है जिसमें वे अपराधियों में चुनते हैं कि किसे न्यायालय तक पहुंचा कर दोषमुक्त होते देखना चाहते हैं और किन लोगों का कोर्ट की दहलीज तक पहुंचने के पहले ही ठांय-ठांय कर देना चाहिये।

देश की न्याय व्यवस्था और कार्यप्रणाली का ठप होना साबित करते हैं अतीक-अशरफ हत्या व असद का एनकाउंटर

अंतरराज्यीय गैंग चलाने वाले इस माफिया डॉन व उसके आपराधिक कामों के हिस्सेदार सदस्यों के प्रति किसी को कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन अतीक-अशरफ हत्या व असद का एनकाउंटर (Atiq-Ashraf murder and Asad's encounter) देश की न्याय व्यवस्था और कार्यप्रणाली का ठप होना तो साबित करते ही हैं, इन वारदात की समाज में होती प्रतिक्रिया से पता चलता है कि लोगों को इंसानी खून का स्वाद भाने लगा है। यह सबसे खतरनाक स्थिति है जो लोकतंत्र के हित में कतई नहीं है।

वैसे तो अतीक-अशरफ की हत्या के कारण पुलिस के 17 कर्मचारियों को लापरवाही का आरोप लगाकर निलम्बित कर दिया गया है, पर यह भी तथ्य सामने आया है कि हाल ही में अतीक ने अपने इसी तरह के अंत की आशंका व्यक्त की थी।

अतीक अहमद की हत्या पर देशबन्धु का आज का संपादकीय Today's editorial of Deshbandhu on the murder of Atiq Ahmed सवाल तो यह भी है कि इतनी बड़ी संख्या में तैनात पुलिसकर्मियों की उपस्थिति के बावजूद विचाराधीन कैदियों की कैसे हत्या हो जाती है और तैनात पुलिस वाले कैसे तितर-बितर हो जाते हैं?

संदेह होना स्वाभाविक है कि इस हत्याकांड के पीछे खास ताकतें हैं। अतीक पहले समाजवादी पार्टी का विधायक था। क्या इस मामले में राजनैतिक ताकतों ने खेल किया है या किसी रंजिश के चलते ऐसा हुआ है? ये सारे राज़ अब दफ्न हो गये।

 जो भी हो, प्रतीत यही होता है कि अब स्वयं प्रशासन नहीं चाहता कि अपराधियों को विधिसम्मत सज़ा दिलाई जाये। देश के कई राज्यों, खासकर उत्तर भारत में लोगों का आकर्षण धर्म विशेष या खास विचारधारा से जुड़े अपराधियों से इसी प्रकार से निपटने में बढ़ा है। केवल मामले दर्ज होने के आधार पर ही दोषी व्यक्तियों या अपराधियों को कभी पुलिस सीधे ठोक देती है तो कभी उनके घरों को बुलडोज़रों से जमींदोज कर दिया जाता है। कानून के मुताबिक दोषियों को सज़ा दिलाने का धैर्य किसी में नहीं है। कार्य पालिका ने न्यायपालिका की जिम्मेदारियां हस्तगत कर ली हैं। शक्ति पृथक्करण की संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त होती नज़र आ रही है। इस मामले में उत्तर प्रदेश की सरकार को ट्रेंड सेटर कहा जा सकता है। अपराध में शामिल पाये गये लोगों के मकानों को ध्वस्त कर देना, उनकी तस्वीरों का चौक-चौराहों पर प्रदर्शन, वाहन पलटा देना या उल्टे-सीधे कारण बतलाकर पुलिस द्वारा गोली से उड़ा देना आम हो गया है। कुछ सम्प्रदायों व विशिष्ट विचारधारा के लोगों के साथ यह अकसर होता है। अगर जनता को भी यह पसंद आता है तो यह नागरिक चेतना का अवसान ही है।

देशबन्धु का आज का संपादकीय किंचित संपादन के साथ साभार

The result of the failed system is the murder of Atiq Ahmed.


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