अमेरिका में जो हो रहा है, उसकी चेतावनी हम खाड़ी युद्ध के समय से भारत के विश्व व्यवस्था के उपनिवेश बनने से बहुत पहले से देते रहे हैं।
मैंने सरकारी नौकरी के लिए कभी कोई आवेदन नहीं किया। पत्रकारिता मेरे लिए करियर कभी नहीं था। यह एक मिशन था, जो तमाम मुश्किलों के बावजूद आज भी जारी है।
अमेरिका के न्यूयार्क में रहते हुए विश्व प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री डॉ पार्थ बनर्जी और अमेरिकी चिंतक नोआम चॉम्स्की यह चेतावनी दशकों से देते रहे हैं।
नई विश्व व्यवस्था दुनिया भर के किसानों, मजदूरों, छात्रों, युवाजनों, अश्वेतों, गरीबों और आम लोगों के खिलाफ है।
राष्ट्रपति जॉन केनेडी के समय से भारत के नेहरुकाल से ही दुनिया को उपनिवेश बनाने की मुहिम अमेरिका के सारे राष्ट्रपति चला रहे थे। अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अपवाद नहीं है।
दुनिया की अर्थव्यवस्था और राष्ट्र तन्त्र को अमेरिकी उपनिवेश बनाने के लिए Rothschild family (राथ्सचाइल्ड वंश) और राकफेलर { John D. Rockefeller (जॉन डी. रॉकफेलर) } ने विश्वयुद्धों में पूंजी निवेश किया था।
भारत में विनिवेश और निजीकरण (Disinvestment and Privatization in India) के कारपोरेट नस्ली राजकाज के पीछे भी करीब तीन दशक से इन्हीं रॉथ्सचाइल्ड और राकफेलर परिवारों की बड़ी भूमिका है।
दुनिया भर में नरसंहारों के पीछे इनकी भूमिका जानने के लिए नेट पर इनके नाम से सर्च करके पढ़े तो खेल समझ में आएगा।
वियतनाम युद्ध के समय से आम अमेरिकी नागरिक बलि के बकरे बने हुए हैं। खाड़ी यद्ध से खस्ताहाल अमेरिकी अर्थव्यवस्था से अश्वेत और गरीब, मेहनतकश लोग खास प्रभावित होने लगे, जिनके लिए ओबामा भी कुछ नहीं कर सके।
भारत में कांग्रेस भाजपा
दुनियाभर की रंग बिरंगी सरकारें उनकी।
दुनियाभर की रंग बिरंगी राजनीतिक पार्टियां उनकी।
दुनियाभर के बैंक उनके।
दुनियाभर के शेयरबाज़ार उनके।
सारा हथियार का कारोबार उनका और अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक युद्धक अर्थव्यवस्था है जहां दुनियाभर के युद्धों और गृहयुद्धों का उत्पादन होता है। उनके अंतरिक्ष और परमाणु हथियार कार्यक्रम, जनसँख्या नियंत्रण कार्यक्रम, डॉलर वर्चस्व के कार्यक्रम हैं।
दुनियाभर में तेल उनके कब्जे में।
नस्ली नरसंहार सेना दुनियाभर के देशों में देशभक्ति, धर्म, नस्ल, भाषा और संस्कृति के नाम पर संस्थागत तरीके से लोकतन्त्र का खात्मा करके फासिज्म का राजकाज चला रहा है देशी नाम की आड़ में स्त्रीविरोधी कू क्लक्स क्लान।
अश्वेतों, किसानों, मजदूरों और ग़रीबों का सफाया ही दुनियाभर के देशों में और अमेरिका में भी इसी कु क्लाक्स कलान का आर्थिक राजनीतिक धार्मिक सांस्कृतिक एजेंडा है।
राष्ट्रपति ट्रम्प इसी एजेंडा पर काम कर रहे हैं।
कोरोना का इस्तेमाल वे अश्वेतों, किसानों, मजदूरों, गरीबों के सफाये के लिए दुनियाभर में भोपाल गैस त्रासदी के जैसे रासायनिक हथियार और परमाणु बम की तरह कर रहे हैं। वैसे भी जैविक हथियारों का इस्तेमाल तो कोलम्बस के समय से उपनिवेशों में जनसँख्या सफाये का लोकप्रिय हथियार है।
अमेरिका और यूरोप में निजीकरण और मुक्तबाजार की वजह से मेहनतकश वर्ग के लिये न रोटी है और न रोज़ी।
अमेरिका में मारे गए दो लाख लोगों और बाकी दुनिया मारे गए कोरोना पीड़ितों में तीन चौथाई वहीं लोग हैं जिनके खिलाफ दुनियाभर में युद्धघोषणा करके ट्रम्प और दुनियाभर के अमेरिकी उपनिवेशों में उनके मित्र हुक्मरान कारपोरेट मदद से सत्ता में आये।
इसी के खिलाफ अमेरिकी जनता इतने गुस्से में हैं कि उनको अब गाँधीजी की अहिंसा का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
पलाश विश्वास