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साम्प्रदायिकता के स्वरूप – एक वायरल वीडियो का सच Nature of communalism - the truth of a viral video

इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें सीआरपीएफ की आरक्षक बतायी गयी एक लड़की खुश्बू चौहान मानव अधिकारों सम्बन्धी किसी वाद विवाद प्रतियोगिता (Khushboo Chauhan Human Rights Debate Contest,) में मानव अधिकारवादियों के विपक्ष में बोल रही है। इस लड़की की प्रस्तुति किसी साम्प्रदायिक दल के ओजस्वी वक्ता की तरह है जो देशभक्ति, सैन्यभक्ति, के आवरण में एक वर्ग विशेष को निशाना बनाने के लिए रक्षा बलों और मासूम लोगों को उकसाते हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि सुरक्षा बल कई बार अपने काम में अनुशासन का उल्लंघन करते हुए साम्प्रदायिक हो जाते हैं। इस हिंसा का विरोध करते हुये विधि सम्मत व्यवहार की मांग करने वाले मानव अधिकार कार्यकर्ता इनकी आँख की किरकिरी बनते हैं।

सबसे पहले तो यह देखना होगा कि यह वीडियो कितना सच्चा है। पिछले अनेक उदाहरणों की तरह कहीं यह वीडियो भी किसी साम्प्रदायिक सन्देश में विश्वसनीयता पैदा करने के लिए किसी मुखर लड़की को सीआरपीएफ की वर्दी पहिना कर तो शूट नहीं किया गया है। इसमें चतुराई यह बरती गयी है कि उस आरक्षक लड़की को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग सीएपीएफ वाद विवाद प्रतियोगिता 2019 में विषय के विपक्ष में बोलते हुये दिखाया गया है। बताया यह गया है कि यह प्रतियोगिता आईटीबीपी द्वारा दिनांक 27 सितम्बर 2019 को आडिटोरियम हाल बीपीआरएंडडी नई दिल्ली में आयोजित थी। वायरल सन्देश में केवल इस एक लड़की का भाषण ही फैलाया जा रहा है। विषय के पक्ष में और किस-किस ने क्या-क्या कहा इसकी कहीं चर्चा सुनायी नहीं दे रही।

किसी भी सुरक्षाबल के सैनिक को इतनी अनुमति नहीं होती है कि सीधे-सीधे सरकार पर आरोप लगाते हुए उसे सेना के जवानों की शहादत के लिए जिम्मेवार बताये, किंतु यह आरक्षक लड़की विभिन्न ओजस्वी कविताओं के अंशों से

शहीदों के साथ घटित घटनाओं को भावुकता भरे अतिरंजित शब्दों से वातावरण को संवेदनशील बनाने की कोशिश करती है।

शहीदों के प्रति पूरी-पूरी सहानिभूति रखते हुए भी यह मानना ही पड़ेगा कि सैनिकों का काम अपने कमांडर के आदेश पर दुश्मनों से मुकाबला करना ही होता है जिसमें वे दुश्मनों को नेस्तनाबूद करते हैं व इसी मुकाबले में कभी-कभी उनकी भी जान चली जाती है। उनकी इस शहादत को पूरा देश सलाम करता है।

सैनिकों का काम खतरों से भरा हुआ होता है, और सीमा के अन्दर जब उन्हें उग्र भीड़ या आतंकियों से निबटना पड़ता है तो यह ध्यान रखना होता है कि न्यूनतम बल प्रयोग में दोषी गिरफ्तार हो सकें आम निर्दोष नागरिकों को कोई नुकसान न हो।

सुरक्षाबलों में ही कुछ सैनिक उस समाज से आये होते हैं जो साम्प्रदायिकता से दुष्प्रभावित है और वे अव्यवस्था पैदा करने वालों को उनके धर्म के हिसाब से देखते हुए हिंसा का प्रयोग करते हैं, व उनके धर्म के अन्य अनुशासित लोगों के बीच भेद नहीं कर पाते।

उन्नीस सौ अस्सी के दशक में उग्रवादी सिखों के नाम पर हजारों निर्दोष सिखों को मार दिया गया था। मानव अधिकारों की रक्षा करने वाले संगठन उन्हीं मामलों को उठाते हैं, जहाँ निर्दोषों के खिलाफ नफरत से प्रेरित दमन होता है। वे इसे रोकने के लिए उन दोषियों को दण्डित करने की मांग करते हैं जिन्होंने नियम भंग करके संविधान विरोधी कार्यवाही की होती है।

सम्बन्धित वीडियो में शहीद सैनिक की मृत देह का मार्मिक चित्रण करते हुए उससे पैदा हुयी भावुकता में उक्त आरक्षक कह रही है कि मानव अधिकार की कार्यवाही के डर से बहादुर माना जाने वाला सैनिक खुल कर अपना काम नहीं कर पाता। उसका कहना था कि इस काम में निर्दोष भी मारा जा सकता है।

यह लड़की आंतरिक सुरक्षा के काम को भी युद्ध बताते हुए कह रही है कि युद्ध में पहल करके बहुत सी लड़ाइयां जीती गयी हैं, अर्थात सुरक्षा बलों को पहले ही हमला कर देना चाहिए। उसका मानना है कि मानव अधिकार कार्यकर्ता और मीडिया तिल का ताड़ बनाते हैं अर्थात वे देश विरोधी लोग होते हैं।

दूसरी ओर ये आरक्षक यह भी कह रही है कि मानव अधिकार कार्यकर्ताओं की शिकायत पर अपनी नौकरी खोने के डर से

इस आरक्षक लड़की का वीडियो अगर असली भी है तो उसकी सूचनाएं गलत हैं। उसे नहीं पता कि कसाब के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे रात के बारह बजे नहीं खोले गये थे। उसे नहीं पता कि वह जिस कन्हैया के सीने में तिरंगा गाड़ कर उसकी हत्या का आवाहन कर रही है वह देश के टुकड़े होने का नारा लगाने वाला नहीं था, अपितु जे एन यू का छात्र यूनियन का अध्यक्ष था। उसे समझ नहीं है कि देश में एक संविधान है और देश में सैनिक शासन नहीं है, इसलिए देश संविधान से चलता है। इस आरक्षक लड़की का भाषण किसी संविधान विरोधी उग्रवादी का भाषण था जो दी गयी अवधारणा के अनुसार सत्ता की हिंसा से अपनी तरह का समाज और व्यवस्था बनाना चाहती है।

अगर यह मासूम सी दिखती लड़की किसी साम्प्रदायिक संगठन का खिलौना नहीं है, तो उसकी सूचनाएं गलत हैं, जिन्हें सुधारा जा सकता है। अगर वह सचमुच ही सीआरपीएफ की आरक्षक है तो उसे सही जानकारी देने. देश के संविधान और व्यवस्था का पाठ पढाने की जिम्मेवारी उसके विभाग की है क्योंकि बहुत सम्भव है कि ऐसी सोच वाले अन्य भी ढेर सारे आरक्षक हों।

तय है कि उक्त वीडियो किसी सम्प्रदायिक संगठन द्वारा ही वायरल कराया जा रहा है इसलिए सुप्रीम कोर्ट के सोशल मीडिया पर दिये ताजा फैसले को देखते हुए इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ न्यूज चैनल भी इसे दिखा रहे हैं।

वीरेन्द्र जैन