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ट्यूबलाइट फ़िल्म बजरंगी भाईजान का विस्तार है

ट्यूबलाइट फिल्म समीक्षा | ट्यूब लाइट समीक्षा हिंदी मूवी रिव्यु ( Tubelight Review in Hindi)

कबीर खान के कहन में दम तो है। पहली बात, उनको ये पता है कि अभी क्या कहे जाने की ज़रूरत है। दूसरी बात, उन्हें उसे कहने का सलीका आता है। तीसरी और सबसे ज़रूरी बात, जो नहीं कहा जाना है उसे वे बेमतलब वज़न नहीं देते। Tubelight (ट्यूबलाइट) फ़िल्म बजरंगी भाईजान का विस्तार है, लेकिन अपने राजनीतिक संदेश के मामले में उससे कहीं ज़्यादा स्पष्ट, नाटकीय और मौजूं। जब 'भारत माता की जय' बोलना नागरिकता और राष्ट्रभक्ति की कसौटी बनाया जा रहा हो, वैसे में कबीर खान बहुत सहज तरीके से उससे निपटते हैं- एक मासूम बच्चे की स्वाभाविक दलील से।

राजनीतिक स्वर के अलावा कबीर खान आपके भीतर विश्वास भरने के तरीके भी जानते हैं। चौतरफा संदेह और नपुंसकत्व के दौर में वे इंसान की आंतरिक ताकत को अतिनाटकीय तरीके से उजागर करते हैं। 'हर इंसान में एक जादूगर होता है'- इस फ़िल्म की बॉटमलाइन है। वे चाहते हैं कि हम अपने भीतर के जादूगर को पहचानें, लेकिन जादू जैसी चीज़ की वास्तविकता को भी समझें। फ़िल्म देखते वक़्त मुझे गोर्की की कहानी 'दाँको का जलता हृदय' याद आ रही थी।

बजरंगी के बाद का डेवलपमेंट आश्वस्त करता है। कबीर खान अगर 'गुड मुसलमान' और 'बैड मुसलमान' के फेर से खुद को बचा ले गए, तो यकीन मानिए वे अगले पांच साल में सबसे ज़रूरी बॉलीवुड निर्देशक होंगे क्योंकि उनकी पकड़ समय की नब्ज़ पर है- हमारा समय, जिसकी चूल उखड़ चुकी है।

अभिषेक श्रीवास्तव

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