पिछले दिनों देश भर में मानसून के विदा होने के वक्त भयंकर बारिश देखने को मिली थी। खासकर बिहार और देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में पिछले कई वर्षों के वर्षा के रिकॉर्ड टूट गए। अब भारतीय वैज्ञानिक के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि भारतीय-प्रशांत महासागर के गर्म होने के कारण बारिश का भारत का ही नहीं बल्कि वैश्विक पैटर्न भी बदला।
शोध पत्रिका नेचर में “इंडो-पैसिफिक वार्म पूल का दो गुना विस्तार एमजेओ जीवन चक्र को प्रभावित करता है” शीर्षक से प्रकाशित इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया है कि भारतीय-प्रशांत महासागर के गर्म हिस्से का आकार दोगुना हो गया है और पृथ्वी पर महासागर के तापमान में यह सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (आईआईटीएम)- Centre for Climate Change Research, Indian Institute of Tropical Meteorology, Pune, India पुणे से जुड़े एम. के. रॉक्सी (M. K. Roxy), के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में आईआईटीएम से ही जुड़े पाणिनी दासगुप्ता (Panini Dasgupta), प्रशांत समुद्री पर्यावरण प्रयोगशाला, राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन, सिएटल, वाशिंगटन, यूएसए (Pacific Marine Environmental Laboratory, National Oceanic and Atmospheric Administration, Seattle, WA, USA) से जुड़े माइकल जे. मैकडेन (Michael J. McPhaden) व चिदोंग झांग (Chidong Zhang), वायुमंडल और महासागर अनुसंधान संस्थान, टोक्यो विश्वविद्यालय, काशीवा, चिबा, जापान (Atmosphere and Ocean Research Institute, The University of Tokyo, Kashiwa, Chiba, Japan) से जुड़े तमकी सुमात्सु (Tamaki Suematsu), और वायुमंडलीय विज्ञान विभाग, वाशिंगटन विश्वविद्यालय, सिएटल, वाशिंगटन, संयुक्त राज्य अमेरिका (Department of Atmospheric Sciences, University of Washington, Seattle, WA, USA) डेह्युन किम (Daehyun Kim) शामिल हैं।
अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आई कि एमजेओ के व्यवहार में बदलाव के कारण उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम पैसिफिक, अमेजॉन बेसिन, दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया (इंडोनेशिया, फिलीपींस और पापुआ न्यू गीनिया) में बारिश बढ़ गई है। उसी दौरान इन्हीं परिवर्तनों के कारण सेंट्रल पैसिफिक, यूनाइटेड स्टेट्स के पश्चिम और पूर्वी हिस्से में (उदाहरण के लिये कैलीफोर्निया), उत्तर भारत, पूर्वी अफ्रीका और चीन के यांगज़े बेसिन में बारिश में गिरावट दर्ज हुई है।
एमजेओ भूमध्यरेखा के ऊपर चक्रवात, मॉनसून, और एल नीनो साइकल को नियंत्रित करता है- और कभी-कभी एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में मौसम की विनाशकारी घटनाओं को अंजाम देता है।
भूमध्य रेखा के ऊपर महासागर में एमजेओ 12,000 से 20,000 किलोमीटर तक की दूरी तय करता है, खास तौर से भारतीय-प्रशांत महासागर के गर्म हिस्से के ऊपर से, जिसका तापमान आमतौर पर समुद्री तापमान 28°C से अधिक रहता है।
1900-1980 तक महासागर के गर्म हिस्से का क्षेत्रफल 2.2 × 107 वर्ग किलोमीटर था। 1981-2018 में इसका आकार बढ़ कर 4 × 105 वर्ग किलोमीटर हो गया, जोकि कैलिफोर्निया के क्षेत्रफल के बराबर है।
अध्ययन में कहा गया है कि यद्यपि सम्पूर्ण भारतीय-प्रशांत महासागर गर्म हो गया है, इसमें सबसे गर्म पानी पश्चिमी प्रशांत महासागर में है, जिससे तापमान में अंतर पैदा होता है, जो भारतीय महासागर से नमी को साथ लेकर पश्चिम प्रशांत समुद्री महाद्वीप (West Pacific Maritime Continent) तक ले आता है, और यहां पर बादल बनते हैं। इसके परिणामस्वरूप एमजेओ का जीवनचक्र बदल गया है। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि एमजेओ जीवन चक्र पर इस वार्मिंग का प्रभाव काफी हद तक अज्ञात है।
भारतीय महासागर पर एमजेओ के बादलों के बने रहने का समय औसतन 19 दिन से करीब 4 दिन घट कर औसतन 15 दिन हो गया है। जबकि पश्चिमी प्रशांत पर यह 5 दिन बढ़ गया है (औसतन 16 दिन से बढ़कर 21 दिन हो गया है)। एमजेओ बादलों के भारतीय महासागर और पश्चिमी प्रशांत सागर पर बने रहने के समय में बदलाव ही है जिसके कारण पूरी दुनिया के मौसम में परिवर्तन हुआ है।
"मौसम के सटीक अनुमान को लगाने के लिये समन्यवयक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास चल रहे हैं, जो दो से चार हफ्ते में आगे आयेंगे और इस संस्था की सफलता के लिये एमजेओ एक महत्वपूर्ण कुंजी है"। वह कहते हैं कि, "हमारे द्वारा निकाले गये निष्कर्ष यह पता लगाने के लिये एक वेचनात्मक मानदंड हैं कि मौसम के विस्तारित भाग के अनुमान के लिये किस कंप्यूटर मॉडल पर भरोसा करें। यह उनकी क्षमता और एमजेओ के बनावटी व्यवहार और बदलते हुए पर्यावरण पर निर्भर करता है"
मुख्य शोधकर्ता एम. के. रॉक्सी ने कहा कि
"क्लाइमेट मॉडल के इस बनावटी रूप से यह पता चलता है कि यह सब भारतीय-प्रशांत महासागर में निरंतर बढ़ती गर्मी है, जो भविष्य में पूरी दुनिया में बारिश के पैटर्न में बदलाव करेगा। इसका मतलब हमें हमारे महासागर पर नज़र रखने वाले निरीक्षण यंत्रों को अत्याधुनिक बनाने की जरूरत है, ताकि मौसम में होने वाले परिवर्तन का सटीक अनुमान लगाया जा सके, और गर्म होती दुनिया के कारण भविष्य में आने वाली चुनौतियों का भी कुशलतापूर्वक अनुमान लगाया जा सके।"
अमलेन्दु उपाध्याय