वाकया 2008 का है। मैं उन दिनों इंडियन एक्सप्रेस के लखनऊ ब्यूरो (Lucknow Bureau of Indian Express) में काम करता था। एक दिन अचानक एक खबर एक साथ कई हिंदी अखबारों में छपी कि ऐशबाग कब्रिस्तान में उमराव जान की कब्र (Umrao Jaan's grave in Aishbagh cemetery) तोड़ कर रास्ता बना दिया गया है। ये खबर जल्द ही दिल्ली मीडिया में घूम गई। संपादक ने मुझे तलब करते हुए इस पर तफसील से बड़ी रिपोर्ट बनाने को कहा। उस समय एक्सप्रेस के ब्यूरो मे मुझे छोड़ बाकी लोग लखनऊ के बाहर से थे लिहाजा नीम हकीम मैं ही था।
उन्हीं दिनों अभिषेक बच्चन-ऐश्वर्या राय की उमराव जान फिल्म (Abhishek Bachchan-Aishwarya Rai's Umrao Jaan film,) भी आयी थी।
उमराव जान की असलियत जानने को खूब मशक्कत की। सबसे पहले बड़े भाई हुसैन अफसर Syed Husain Afsar से बात की और उनके अज़ीज़ दोस्त, उम्दा सहाफी ज़नाब यसा रिजवी ( अब मरहूम) के पास पहुंचे जिन्होंने उमराव जान 2 लिखने में जेपी दत्ता को सहयोग दिया था।
इतिहासकार रवि भट्ट, योगेश प्रवीन से लेकर दर्जनों लोगों से दरयाफ्त करते दो-तीन गुजरे। हिरन कोठी, हिरन पार्क से लेकर तमाम जगहों पर भी गए। उमराव जान अदा लिखने वाले मिर्जा हाद़ी रुसवा के एक पड़ नाती या पोते भी मिले जो अक़बरी गेट के आसपास अंडाफरोश़ी करते थे।
आखिर यही पाया कि उमराव जान नाम का कोई किरदार हकीकत में तो नहीं था और ये फिक्शन गढ़ा गया था।
खैर यह असलियत न लिखी न छपी बल्कि मेरी कवायद से नाराज साहब ने किसी और से कब्र टूटने जैसी ही खबर करवाई। उमराव जान के कथित वंशज होने का दावा करने वाले एक शख्स ने रास्ते पर मोमबत्ती जला मायूस सूरत बना खबर के लिए फोटोशूट करवाया।
इस पूरी पड़ताल में बराबर साथ देते रहे भाईसाहब अंबरीष कुमार Ambrish Kumar ने जरूर हिम्मत दिखाते हुए इंडियन एक्सप्रेस के सहयोगी अखबार
आज के नवभारतटाइम्स NBT मे अवध के मोअज्जिज जानकार, कला संस्कृति, संगीत पर बेहतरीन काम कर रहे यतीन्द्र मिश्रा ने उमराव जान पर जो लिखा वो भी तस्दीक करता है काल्पनिक पात्र होने की।
(वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस की एफबी टिप्पणी का संपादित रूप साभार)