१२ दिसंबर को सबके लिए स्वास्थ्य सेवा दिवस (यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज डे- universal health coverage day in Hindi) मनाया जा रहा है। पर बढ़ती हुई दवा प्रतिरोधकता के कारण रोग लाइलाज हो रहे हैं या उनके उपचार के लिए कारगर दवाएँ सीमित रह गयी हैं, महँगी हो रही हैं, और इलाज के नतीजे भी संतोषजनक नहीं रहते और अक्सर मृत्यु का ख़तरा बढ़ जाता है। ऐसे में, जब तक दवाओं का ग़ैर-ज़िम्मेदाराना और अनुचित इस्तेमाल पूर्णत: बंद नहीं होगा तब तक कैसे हम सबके लिए स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं?
दवाओं का अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग (Improper and irresponsible use of drugs) सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य तक ही नहीं सीमित है बल्कि पशुपालन और कृषि में भी इसका अत्याधिक दुरुपयोग है जिसके कारणवश आज बढ़ती हुई दवा प्रतिरोधकता एक भीषण चुनौती प्रस्तुत कर रही है। यदि दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश नहीं लगा तो यह ख़तरा बढ़ता जा रहा है कि हम लोग १९२० के दशक के युग में फिसल जाएँ जब अधिकांश लोग संक्रामक रोगों से मृत होते थे क्योंकि एंटीबाइयोटिक दवाओं थी ही नहीं।
दवा प्रतिरोधकता के कारण, आम संक्रमण जिनका पक्का इलाज सम्भव है, वह लाइलाज हो जाते हैं और मृत्यु तक हो सकती है। इसीलिए सबके लिए स्वास्थ्य सुरक्षा का सपना यदि साकार करना है तो यह ज़रूरी है कि दवा प्रतिरोधकता पर विराम लगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेडरोस अधानोम घेबरेएसस ने कहा कि यदि दवा प्रतिरोधकता
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक दवा प्रतिरोधकता नियंत्रण विभाग के निदेशक डॉ हेलिसस गेटाहुन (Dr Haileyesus Getahun, WHO Director of the AMR Global Coordination Department,) ने सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) से कहा कि दवा प्रतिरोधकता एक मानव जनित समस्या है क्योंकि दवाओं का अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग मानव ने ही, मानव स्वास्थ्य, पशुपालन और कृषि में किया है। प्राकृतिक तौर पर भी दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है पर मानव द्वारा दवाओं के ग़ैर-ज़िम्मेदाराना और अनुचित उपयोग के कारण दवा प्रतिरोधकता एक वीभत्स चुनौती बन गयी है। यदि हम दवाओं का उचित और ज़िम्मेदारी से उपयोग करेंगे तो दवा प्रतिरोधकता कम होगी और उससे होने वाले नुक़सान पर भी अंकुश लगेगा।
विश्व में दवा प्रतिरोधकता नियंत्रित करने की दिशा में, डॉ हेलिसस गेटाहुन का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चूँकि दवाओं का ग़ैर-ज़िम्मेदाराना और अनुचित इस्तेमाल मानव स्वास्थ्य, पशुपालन और कृषि में होता है और पर्यावरण भी कुप्रभावित होता है, इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ-साथ जो संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक संस्थाएँ पशु स्वास्थ्य, कृषि और खाद्य, और पर्यावरण पर केंद्रित हैं, उन सबको एकजुट करने का ज़रूरी कार्य डॉ हेलिसस गेटाहुन ने किया है।
डॉ हेलिसस गेटाहुन ने कहा कि हम सब को दवाओं का इस्तेमाल बहुत ज़िम्मेदारी से उचित रूप से ही करना होगा। इन दवाओं में एंटी-बैक्टीरीयल, एंटी-वाइरल, एंटी-फ़ंगल और एंटी-पैरसायट वाली दवाएँ शामिल हैं।
डॉ हेलिसस गेटाहुन ने एंटी-बायोटिक पर विशेष ध्यान देने के लिए अपील की क्योंकि यह दवाएँ अनेक बैक्टीरीयल संक्रमण को रोकने के लिए रीढ़-की-हड्डी जैसी ज़रूरी हैं।
उन्होंने कहा कि इसका वैज्ञानिक प्रमाण है कि पशुपालन और कृषि में जो एंटी-बायोटिक दुरुपयोग होती हैं जिसके कारण बैक्टीरिया दवा-प्रतिरोधक हो जाता है, वह इंसानों को भी संक्रमित कर सकता है। इसीलिए वह सभी वर्ग जो मानव स्वास्थ्य, पशुपालन और कृषि और पर्यावरण से जुड़े हैं सब एकजुट हो कर दवा प्रतिरोधकता को नियंत्रित करने की ओर कार्य करें।
डॉ हेलिसस गेटाहुन ने कहा कि दवा प्रतिरोधकता को नियंत्रित करने के लिए मूल बातें ही सबसे महत्व की हैं। संक्रमण नियंत्रण सशक्त होगा तो दवा प्रतिरोधकता पर भी अंकुश लगेगा। इसलिए मौलिक रूप से हमें संक्रमण नियंत्रण को सुधारना होगा जिससे कि वह उच्च गुणात्मकता का रहे, साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता रहे। कोविड महामारी के दौरान हाथ धोने और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है जिसका संक्रमण नियंत्रण पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा यदि यह स्वच्छता हम सब के जीवन का भाग बन सके।
डॉ हेलिसस गेटाहुन ने कहा कि जब हम रोगग्रस्त होते हैं तो बिना चिकित्सकीय परामर्श के दवाओं का उपयोग न करें।
डॉ हेलिसस गेटाहुन ने ज़ोर देते हुआ कहा कि एक ओर हमें दवाओं के उचित और ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है तो दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करना है कि दवाएँ हर जरूरतमंद तक पहुँचें, उच्च गुणात्मकता की हों और अमीर-ग़रीब कोई भी जरूरतमंद इनसे वंचित न रहें। एंटी-बायोटिक के अभाव में कोई भी मृत्यु न हो। यही संतुलन हमें पशुपालन और कृषि क्षेत्र में स्थापित करना होगा कि हर ज़रूरत पर दवाएँ उचित ढंग से ज़िम्मेदारी से उपयोग हों पर अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग कदापि न हो। यदि दवाओं का ग़लत इस्तेमाल होगा तो मानव स्वास्थ्य, पशु-स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण सबको क्षति पहुचेंगी।
डॉ हेलिसस गेटाहुन ने बताया कि मौजूदा दवाओं से यदि दवा प्रतिरोधकता बढ़ती गयी तो उपचार के विकल्प बहुत सीमित रह जाएँगे क्योंकि बहुत कम नयी दवाएँ शोधरत हैं। इसलिए सरकारों को यह दायित्व भी उठाना होगा कि नयी दवाओं के शोध में पर्याप्त निवेश हो जिससे कि भविष्य में बेहतर दवाएँ हमें मिले। उसी तरह पशु स्वास्थ्य क्षेत्र में हमें वैक्सीन टीके के शोध में निवेश करना होगा जिससे कि एंटी-बायोटिक दवाओं के उपयोग की ज़रूरत ही न पड़ें।
हर इंसान के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना नि:संदेह एक मानवाधिकार है और सतत विकास लक्ष्य (sustainable development goals) को हासिल करने के लिए एक अत्यंत ज़रूरी कड़ी। परंतु दवा प्रतिरोधकता एक बड़ा रोड़ा है जिसपर लगाम लगाना एक जन स्वास्थ्य प्राथमिकता है।
शोभा शुक्ला
(शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका हैं और लारेटो कॉन्वेंट कॉलेज की भौतिक विज्ञान की सेवानिवृत्त वरिष्ठ शिक्षिका।)