नई दिल्ली, 8 अप्रैल। देश में आज भी महिलाओं की एक बड़ी आबादी गर्भपात के अपने अधिकारों से अनजान हैं और वे असुरक्षित गर्भपात का सहारा लेती है, जो चिंता का विषय है। यह कहना है हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल (President Of Heart Care Foundation of India (HCFI) Padmashri Dr. K. K. Agarwal) का। उन्होंने बताया कि देश में असुरक्षित गर्भपात (Unprotected abortion) महिलाओं की असमय मृत्यु का एक प्रमुख कारण (A major cause of untimely death of women) है।
स्त्री रोग विशेषज्ञों (Gynecologist in Delhi/NCR) की मानें तो देश की राजधानी दिल्ली में गर्भपात के 10 मामलों में से सिर्फ एक के बारे में सूचना दी जाती है।
डॉ. के. के. अग्रवाल के अनुसार, गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने से महिलाओं को गर्भावस्था समाप्त करने से नहीं रोका जा सकता है, जबकि इससे अनचाहे गर्भ को समाप्त करने के लिए खतरनाक उपायों का सहारा लेने का जोखिम बढ़ जाता है।
अग्रवाल ने कहा,
"गर्भपात की उच्च दर की एक वजह यह है कि कई क्षेत्रों में अच्छे गर्भनिरोधक नहीं मिलते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनियोजित गर्भावस्था की दर बढ़ जाती है।"
उन्होंने कहा कि गर्भपात की गोलियां प्रभावी और सुरक्षित हो सकती हैं, बशर्ते गोलियों का सही तरीके से उपयोग किया जाए। उन्होंने कहा,
"उपयोग की सही जानकारी नहीं होने पर महिलाओं के स्वास्थ्य पर इसके हानिकारक प्रभाव होते हैं। घातक हो सकती है। केवल कुछ प्रतिशत महिलाओं के पास ही गर्भपात की दवा हो सकती है। जटिलताओं के मामले में इन गोलियों का उपयोग करने और गुणवत्ता स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करना अनिवार्य हो जाता है।"
डॉ. अग्रवाल ने आगे
"गर्भनिरोधक और गर्भपात पर शिक्षा और जागरूकता (Education and awareness on abortion) की जरूरत है। स्थिति का आकलन करना, सुरक्षित गर्भपात (Safe abortion) को एक वास्तविकता बनाना और देश भर में इसके लिए सुविधा उपलब्ध कराना समय की जरूरत है। यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत है कि समाज के सभी वर्गों की महिलाओं को सही जानकारी उपलब्ध हो।"
उन्होंने कहा कि भारत में गर्भपात एक अत्यधिक प्रतिबंधित प्रक्रिया है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (1971)- Medical Termination of Pregnancy Act (1971), एक पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर (Registered Medical Practitioner) द्वारा गर्भावस्था के 12 सप्ताह से पहले या दो पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के अनुमोदन से गर्भावस्था के 20 सप्ताह से पहले गर्भपात की इजाजत दी जाती है, लेकिन यह इजाजत तभी दी जाती है जब मां या बच्चे का मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा न हो।
उन्होंने कहा,
"गर्भावस्था की समाप्ति शल्य चिकित्सा या चिकित्सकीय रूप से की जा सकती है। हालांकि चिंता वैसे चिकित्सीय गर्भपात की है, जो उन गोलियों को लेने से होती है जो या तो मौखिक रूप से निगली जाती हैं या योनि में डाली जाती हैं। लिहाजा, सुरक्षित गर्भपात के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के साथ-साथ जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए महिलाओं को दवाओं के गलत उपयोग से रोके जाने की जरूरत है।"