जलियांवाला-बाग़ अमृतसर में 13 अप्रेल 1919 में हुए क़त्लेआम में शहीद हुए देशवासियों की सूची से यह सच बहुत साफ़ होकर सामने आती है कि बाग़ में हिन्दू, सिख और मुसलमान बडी तादाद में मौजूद थे। अँगरेज़ सरकार द्वारा जारी सूची, जिस में शहीदों के तादाद बहुत कम करके बताई गयी थी, के अनुसार 381 शहीदों में से 222 हिन्दू, 96 सिख और 63 मुसलमान थे। इस सूची की एक खास बात यह थी कि वहां मौजूद जनसमूह हर तरह की जातियों और पेशों से जुड़ा था, इन में दुकानदार, वकील, सरकारी मुलाज़िम, लेखक और बुद्धिजीवी थे तो लोहार, जुलाहे, तेली, नाई, खलासी, सफाई कर्मचारी, क़साई, बढ़ई, कुम्हार, क़ालीन बुनने वाले, राजमिस्त्री, मोची भी बड़ी तादाद में मौजूद थे। यह सूरत इस गौरवशाली सच को रेखांकित करती थी कि साम्राजयवाद विरोधी आंदोलन एक साझा आंदोलन था और अभी मुस्लिम राष्ट्र और हिन्दू राष्ट्र के झंडाबरदार हाशियों पर पड़े थे।
जलियांवाला-बाग़ क़त्लेआम क़त्लेआम पर देश और देश के लोगों को प्यार करने वाले जांबाज़ खामोश नहीं रहे, उन्हों ने उन शैतानों से बदला लिया जिन्हों ने इसे अंजाम दिया था। इस सिलसिले में शहीद उधम सिंह का ज़िक्र न हो यह कैसे हो सकता है।
सुविख्यात क्रांतिकारी ऊधम सिंह का जन्म (Shaheed Udham Singh) एक सिख परिवार में हुआ और एक अनाथालय में उनकी परवरिश हुई। वे ख़ूनी बैसाखी वाले दिन जलियांवाले बाग़ में सभा में मौजूद थे और क़त्लेआम के साक्षी भी। तभी से उनके दिल में इसका बदला लेने की
इस काम को अंजाम देने के लिए और इंग्लैंड में प्रवेश पाने की जुगत में मिस्र, कीनिया, उगांडा, अमरीका और समाजवादी रूस पहुंचे में और वहां की कम्युनिस्ट तहरीकों में काम करते रहे। आखिरकार 21 साल बाद उन्हें सफलता मिली, जब उन्होंने 13 मार्च 1940 को लंदन में माइकल ओ डायर (पंजाब का पूर्व गवर्नर तथा जलियांवाला बाग हत्याकांड के जिम्मेदार अफसरों में से एक) की हत्या कर दी।
मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए जाने पर जब ऊधम सिंह से नाम पूछा गया, तो उन्होंने अपना नाम ऊधम सिंह नहीं बताया बल्कि अपना नाम मोहम्मद सिंह आज़ाद बताया। ऐसा नाम जिसमें मुस्लिम, सिख और हिंदू तीनों के नाम शामिल हैं। इस तरह उपनिवेशवादी सामंतों के विरुद्ध जारी संघर्ष में एक बार फिर भारत में सभी धर्मों के बीच एकता का संदेश जबर्दस्त तरीके से प्रस्तुत किया गया।
उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को पेंटोनविल्ल (Pentonville) जेल में फांसी दे दी गयी।
{Dr. Shamsul Islam, Political Science professor at Delhi University (retired).}
मौत की सजा सुनाये जाने के बाद अदालत में उन्हों ने जो जवाब दिया वह उनके गोरे शासकों के ज़ुल्म और लूट के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता को ही रेखांकित करता है :
"मुझे मौत की सज़ा की क़तई चिंता नहीं है। इस से मैं ख़ौफ़ज़दा नहीं हूँ और न ही मुझे इस की परवाह है। मैं एक उद्देश्य के लिए जान दे रहा हूँ। अँगरेज़ साम्राज्य ने हमें बर्बाद कर दिया है। मुझे अपने वतन की आज़ादी के लिए जान देते वक़्त गर्व हो रहा है और मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे बाद मेरे वतन के हज़ारों लोग मेरी जगह लेंगे और वहशी दरिंदों (अंग्रेज़ों) के देश से खदेड़ कर देश आज़ाद कराएँगे। अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद का विनाश होगा। मेरा निशाना अँगरेज़ सरकार है, मेरा अँगरेज़ जनता से कोई बैर नहीं है। मुझे इंग्लैंड की मेहनतकश जनता से गहरी हमदर्दी है, मैं इंग्लैंड की साम्राज्यवादी सरकार के विरोध में हूँ।"
यह शर्मनाक है कि विदेशी शासक देश के लोगों को धर्म के नाम पर बाँटने की जो बेलगाम कोशिशें कर रहे थे और जिस के ख़िलाफ़ देश की जनता की धार्मिक एकता की ज़रूरत को रेखांकित करने के लिए उधम सिंह ने अपने प्राण न्योछावर किए थे, हमारे देश पर राज कर रही हिन्दुत्ववादी टोली उसी शर्मनाक काम में दिन-रात लगी है। आइए मुहम्मद सिंह आज़ाद की शहादत की बरसी पर संकल्प करें कि देश और समाज विरोधी हिन्दुत्ववादी गिरोह के मंसूबों को नाकाम करेंगे।
शम्सुल इस्लाम
जुलाई 31, 2020