रांची से विशद कुमार, 14 फरवरी 2020. झारखंड में आने वाला आगामी बजट (Upcoming budget in jharkhand) पर रांची के एचआरडीसी में सामाजिक संगठनों द्वारा दो दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया।
इस परिचर्चा का आयोजन दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन-एनसीडीएचआर और भोजन के अधिकार अभियान के द्वारा किया गया।
परिचर्चा में इस बात की चर्चा की गई कि महिलाएं, बच्चों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, छात्रवृति और शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, कृषि और टिकाउ खेती, मनरेगा, पेंशन और खाद्य सुरक्षा के परिपेक्ष्य के लिए बजट कैसा होना चाहिए? जिससे झारखंड का समुचित विकास हो सके। इस परिचर्चा में यह बातें भी निकल कर आयीं कि केंद्र सरकार के बजट में दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और बच्चों के लिए कुछ खास प्रावधान नहीं किए गये हैं।
परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि झारखंड में समस्याएं व्यापक रूप में है जिससे लोग काफी परेशान हैं। यहां लोग राशन, पेंशन के लिए परेशान हैं और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे और महिलाएं कुपोषण का शिकार हो रहीं हैं। अत: हेमंत सरकार को चाहिए कि दलित, आदिवासी, महिलाएं, बच्चों तथा वंचित समुदायों को केंद्र में रख कर आगामी बजट का आबंटन करें। बजट परिचर्चा में यह सुझाव आया कि इस चर्चा में जो निष्कर्ष निकल कर आएंगे, उसे सरकार को सौपा जाएगा।
परिचर्चा के पहले दिन 13 फरवरी को 'भोजन के अधिकार अभियान' के समन्वयक व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व राज्य सलाहकार बलराम, संयोजक अशर्फी नंद प्रसाद, आकाश रंजन, सामाजिक कार्यकर्ता सुनिल मिंज, सार्क संस्था हजारीबाग से वीनी आजाद, आली से कनकलता कुमारी, दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन-एनसीडीएचआर के राज्य संयोजक मिथिलेश कुमार, धर्मदेव पासवान, एक्शन एड से सौरभ कुमार, झारखंड नरेगा वॉच से जेम्स हेरेंज, विकास सहयोग केंद्र से जवाहर मेहता, मनोज
'हमारा गांव-हमारा बजट' पर परिचर्चा के दूसरे दिन वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार को संवैधानिक फ्रेम के अनुसार राज्य का आम बजट बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को फिजूल खर्ची बंद कर ऐसी योजनाओं पर बजट की राशि खर्च करनी चाहिए, जिससे हाशिए के लोगों को लाभ मिल सके।
उन्होंने कहा कि जब तक ग्राम सभा को पैसे, कार्य और कर्मचारी कि सुविधा मुहैया नहीं करायी जाती है, तब तक कोई भी ग्राम सभा सशक्त नहीं बन पायेगा। सामाजिक कार्यकर्ता तारामणी ने कहा कि झारखंड बजट में आदिवासी दलित महिलाओं के विकास के लिए महिला जेंडर बजट बनाया जाना चाहिए, इसके अभाव में किशोरी लड़कियां काम की तलाश में अन्यत्र चली जातीं हैं। वीनी आजाद ने कहा कि कठिन परिथितियों में जीविकोपार्जन कर रही आदिवासी दलित और अल्पसंख्यक एकल महिलाओें के लिए बजट में पैसे का प्रावधान किया जाना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता जीवन जगन्नाथ ने कहा कि हर सरकारी प्राथमिक स्कलों में त्री भाषा फर्मूला (मातृभाषा, राष्ट्र भाषा, अंग्रेजी भाषा) पढ़ाई सुनिश्चित कर इसके लिए बजट का प्रावधान किया जाना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता सौरव कुमार ने कहा कि वनोंउपज को वन विभाग के नियंत्रण से निकाल कर आदिवासी कल्याण विभाग को नियंत्रण दिया जाना चाहिए। छात्र नेता नौवरीन ने कहा कि
पोस्ट मैट्रिक व प्री मैट्रिक स्कॉलरशीप की राशि कम कर दी गयी है, उन्होंने कहा कि छात्रों को उतने पैसे तो जरूर मिलना चाहिए, जितना उन्हें पढ़ाई में पर्याप्त हो। वृतिचित्र निर्माता दीपक बाड़ा ने कहा कि आंगनबाड़ी और सरकारी स्कूलों में मिड—डे—मील के रूप में कम से दो दिन मड़ुआ से बने खाद्य सामाग्री दी जानी चाहिए, ताकि बच्चों का पोषण स्तर बना रह सके। उन्होंने यह भी कहा आंगनबाड़ी व स्कूल के पीछे परिसर में किचन गार्ड बनाये जाने के लिए बजट का आवंटन होना चाहिए, ताकि बच्चों को हरी सब्जियां रोजाना मिल सके।
परिचर्चा के दूसरे दिन 'दलित आर्थिक अधिकार ओदालन'-एनसीडीएचआर बिहार, के राज्य समन्वयक—धर्मदेव पासवान, 'झारखंड नरेगा वॉच' के राज्य समन्वयक—जेम्स हेरेंज, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग, भारत ज्ञान विज्ञान समिति से विश्वानाथ सिंह, आफीर से महादेव उरांव, विपिन मिंज, जेवियर हमसाय, निर्माला एक्का, शांति बड़ाईक, निशाद और तरूर, जोहार चाईबास से मानकी तुबिद और कमल पूर्ति, बगईचा से रोज मेरी नाग समेत 50 प्रतिभागी शामिल हुए।
परिचर्चा का संचालन दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन-एनसीडीएचआर के राज्य संयोजक मिथिलेश कुमार ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन भोजन का अधिकार अभियान का राज्य संयोजक अशर्फी नंद प्रसाद ने किया।
झारखंड के आगामी बजट परिचर्चा का आयोजन 'राष्ट्रीय दलित मनवाधिकार अभियान' और 'भोजन का अधिकार अभियान' झारखंड, के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।