भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान की रचना निर्विवाद रूप से रवीन्द्र नाथ ने की है। लेकिन श्रीलंका के राष्ट्रगान की रचना में भी उनकी भूमिका थी। यह गान भी रवीन्द्र संगीत से प्रभावित है।
बंकिम की बंगमाता को वन्देमातरम् गीत में भारत माता बनाने वाले भी रवींद्रनाथ ही थे। देश को माता बनाने की राष्ट्रगान की परंपरा के पीछे टैगोर थे।
वे कर्मकांड और वेदों के विरुद्ध थे और उनकी रचनाओं के ज्यादातर स्रोत बौद्ध दर्शन और धर्मग्रन्थ थे। वे बंकिम के हिंदुत्व से भी प्रभावित थे। गांधी की तरह वे भी अस्पृश्यता का विरोध करते थे।
इस पर विस्तार से लिखने और गहराई से समझने की जरूरत है। रवीन्द्र दर्शन में भी गांधी दर्शन की तरह अनेक अंतर्विरोध हैं, जो समाज सुधार की बातें तो करते हैं लेकिन जाति धर्म की सत्ता को सिरे से खारिज करके व्यवस्था परिवर्तन की बात नहीं करते।
राष्ट्रगान हमारे लिए भावनात्मक मामला नहीं है। हम इस वक्तव्य से भूगोल के आरपार इस पूरे उपमहाद्वीप में मनुष्यता के धर्म और विविधता बहुलता के सार्वभौम विरासत को चिन्हित करना चाहते हैं।
मनुष्य की अपनी सीमा होती है। हम मूर्तिपूजा और मनुष्य की सामाजिक भूमिका से अलग व्यक्तिगत महिमामंडन के विरुद्ध है।
यह उपमहाद्वीप भूगोल के राजनीतिक बंटवारे से अलग-थलग जरूर है लेकिन उसकी एकता, अखंडता और एकात्मकता के कवि हैं टैगोर। उनकी रचनाएँ सर्वत्र, सबके लिए प्रासंगिक है। मेरा कुल आशय यही है।
प्रोफेसर जयंत शाह का आभार कि उन्होंने विस्तार से श्रीलंका के राष्ट्रगान के बारे में बताया।
श्रीलंका के राष्ट्रगान के रचयिता टैगोर नहीं है, बल्कि आनन्द समराकूंन हैं।
श्रीलंका का राष्ट्रगान ‘नमो नमो माता’ आनंद समराकून ने लिखा और कंपोज किया। आनंद समराकून विश्व भारती विश्वविद्यालय के छात्र थे। इसी दौरान (1939-40 में) उन्होंने टैगोर से प्रभावित होकर इस गीत की रचना की थी। 1951 में इसे श्रीलंका के राष्ट्रगान के रूप में चुन लिया गया। उन्होंने इस सिंहली गीत का तमिल संस्करण भी तैयार किया।
पलाश विश्वास