सविता जी नाराज हो रही थी। डॉ. आनंद तेलतुंबडे जैसे विशुद्ध अम्बेडकरवादी अम्बेडकर परिवार के सदस्य और गौतम नौलखा जैसे प्रतिबद्ध पत्रकार की गिरफ्तारी (The arrest of Dr. Anand Teltumbde and Gautam Navlakha) का कहीं कोई विरिध नहीं हो रहा है। कोरोना के बहाने गरीब मेहनतकश जनता को मारने का चाक चौबंद इंतज़ाम हो गया। आप लोग लिखकर क्या कर लेंगे? दस बीस लोग भी नहीं पढ़ते।
जनसत्ता के सारे साथी जानते है। पर हम सही तरीके से आवाज़ भी नहीं उठा सके। बेहतर होता कि उनके साथ हम भी गिरफ्तार कर लिए जाते। लिखने की नपुंकसता से ऐसा फिर भी बेहतर होता।
वर्ष 2020 में भारत की विकास दर (India's growth rate in the year 2020) शून्य होने की आशंका जताई जा रही है। कृषि विकास दर (Agricultural growth rate) दशकों से लगातार गिर रही है। अब तो औद्योगिक उत्पादन दर भी शून्य होने को है।
कोरोना के कहर से बढ़कर भुखमरी, बेरोज़गारी और दूसरी बीमारियों से भारी संख्या में लोगों के मारे जाने का अंदेशा है। कृषि के साथ उद्योग धंधे, कारोबार, बाज़ार, दफ्तर सब कुछ बन्द और जनजीवन ठप हो जाने से इस आपदा से निबटने और जनता की मदद के लिए सरकारी खजाना खाली है।
ऐसे में एक खबर पढ़कर खुद को रोक नहीं पा रहा।
लिखना ही पढ़ रहा है।
अमेरिका में अभी कोरोना से 26 हजार लोगों की मौत की खबर है। करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए हैं।
आप जब दुनिया के सारे देश कोरोना संक्रमण से ज़िंदगी की निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं,
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चीन से कोरोना वायरस के फैलने की खबर छुपाने के डब्ल्यूएचओ पर आरोप लगाकर अपनी गलती और लापरवाही छुपाने के लिए ट्रम्प ने ऐसा किया है। जिसकी दुनियाभर में निंदा हो रही है, पर हमारे हुक्मरान ऐसे मौके पर उनके साथ हथियारों का सौदा तय कर रहे हैं।
बिल्कुल कृष्ण सुदामा की दोस्ती है यह।
डॉ पार्थ बनर्जी ने कुछ देर पहले न्यूयार्क से लिखा है कि कोरोना की जांच नही हो रही है। संक्रमितों और मृतकों की जानकारी छुपाई जा रही है। इस पर तुर्रा यह कि ट्रम्प पूंजी और कारपोरेट हित में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दो लाख लोगों के मरने की आशंका मानते हुए भी लॉक डाउन खत्म करने की सोच रहे हैं।
न बीमार लोगों के इलाज का इंतज़ाम है और न बेरोज़गार भूखे लोगों की कोई चिंता।
हथियार, युद्ध और गृहयुद्ध उद्योग बदस्तूर जारी है और इसलिये मिसाइलें भारत को बेची जा रही हैं।
भारत में भी न जांच हो रही है और न हालात पर नियंत्रण की कोई कारगर कोशिश, न अर्थव्यवस्था की चिंता, न किसानों मजदूरों आम नागरिकों की परवाह, न भूख और बेरोज़गारी से निपटने की पहल।
जुमला और झूठ और फरेब का मनुस्मृति एजेंडा कोरोना संकट की आड़ में लागू किया जा रहा है, बजरंगी सेना और गोदी मीडिया की मदद से फ़िज़ा में नफरत और हिंसा का ज़हर घोलकर।
ट्रम्प भी ठीक यही कर रहे हैं अमेरिका और अमेरिकी जनता के साथ।
सही मायने में दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
दोनों एक दूसरे के मित्र हैं।
AMBEDKAR JAYANTI : Defend freedom of expression and respect individuals to build Fraternity
कल हमने पुण्य प्रसून वाजपेयी का भारत में स्वास्थ्य पर लाखों कागजी योजनाओं और इसके लिए वैश्विक संस्थाओं की ओर से मिले लाखों करोड़ की मदद की बन्दर बांट की वीडियो रिपोर्ट शेयर की थी।
भारत हेल्थ हब है। स्वास्थ्य का बाजार है भारत।
इसीलिए हर किस्म की बीमारी यहां महामारी है।
कोरोना से बड़ी बीमारी तो गरीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी है। कोरोना से बच भी गए तो भुखमरी, बेरोज़गारी और गरीबी से बच नहीं सकते।
पीएम ने बुजुर्गों की इज़्ज़त करने की बात कही है।
सरकार बुजुर्गों के लिए क्या कर रही है?
जो गाइड लाइन आज 20 अप्रैल को छूट देने के लिए जारी की गई है, किसानों मजदूरों को राहत दिए बिना उसमें अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने की अगर आप उम्मीद करते हैं तो कीजिये। हम नहीं करते।
अमेरिका की तरह भारत में भी रोज़गार खत्म करना, किसानों मजदूरों को भुखा मारना, दलितों और आदिवासियों, गैर नस्ली गैर हिन्दू नागरिकों का दमन राजकाज और राष्ट्रवाद दोनों हैं।
न्यूयॉर्क से डॉ. पार्थ बनर्जी ने लिखा है -
It is shameful that to avoid political embarrassment, they are not testing new patients for Coronavirus, flouting laws. And they are hiding the real numbers. This criminal negligence and hiding of facts will explode COVID-19. This is unthinkable.
पलाश विश्वास