खाद्यान्न संकट (Food crisis) से उबरने के लिये 1959 में राज्य विद्युत परिषद का गठन कर सरकारी नलकूपों के तन्त्र द्वारा किसानों को सस्ते सिंचाई के साधन (Means of cheap irrigation to farmers) उपलब्ध कराने के लगभग एक दशक बाद ही किसानों की कड़ी मेहनत से हरित क्रांति (Green revolution) हुई तथा खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया।
आज प्रदेश में सरकारी नलकूपों व सिंचाई नहरों से किसानों को मुफ्त पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके विपरीत जिन किसानों ने लाखों रुपये खर्च कर निजी नलकूप लगाकर सरकार का सहयोग ही किया है, प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार विधेयक पारित होने पर लगभग ₹ 10 प्रति यूनिट बिजली मिलेगी। ऐसी स्थिति में आज जो किसान 10 हॉर्स पावर निजी नलकूप का ₹1700 प्रति माह का बिल देते हैं, उन्हें 10 घंटे प्रतिदिन उपयोग पर प्रतिमाह 23,963 रुपये का भुगतान करना होगा। भूजलस्तर काफी नीचे चले जाने से पेयजल के लिये भी विशेषकर ग्रामीण जनता को बिजली की काफी कीमत चुकानी पड़ेगी।
इस प्रकार कोरोना महामारी के कारण चौपट हुई अर्थ व्यवस्था को किसान ही सहारा दे रहे हैं। इसलिये किसानों को मिल रही विद्युत बिल सब्सिडी
20 साल पहले जो लोग रोजगार की तलाश में गांव छोड़कर दिल्ली, मुम्बई आदि महानगरों में चले गये थे, कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन में गांव ही आज उनके लिये सुरक्षित शरणस्थली बने हैं। इसके अलावा राज्य सरकार एमएसएमई के सफल संचालन हेतु युक्तियुक्त दरों पर बिजली, सस्ते ऋण व ईएमआई में शिथिलता/छूट प्रदान करे तो काफी हद तक प्रवासी मजदूरों का प्रदेश से बाहर पलायन रोका जा सकता है।
आइये! जनराजनीति के लिये वर्कर्स फ्रंट के साथ खड़े हों। किसानों के लिये नहरों व सरकारी नलकूपों से प्राप्त मुफ्त पानी की तरह ही निजी नलकूपों को मुफ्त बिजली की मांग तेज करें। साथ ही लघु, छोटे व मध्यम उद्योगों को युक्तियुक्त दरों पर बिजली तभी मिल सकेगी जब बिजली दरों के निर्धारण में राज्य सरकार का अधिकार हो जबकि विद्युत संशोधन विधेयक राज्य सरकर के अधिकार सीमित कर केंद्र को असीमित अधिकार देता है। इसलिये इस विधेयक को हर हाल में खत्म किया जाय।
इं. दुर्गा प्रसाद
उपाध्यक्ष, उ.प्र, वर्कर्स फ्रण्ट,
अधिशासी अभियंता (सेवानिवृत्त),
उ.प्र. पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड.