बहुत सारे लोग खुद को निष्पक्ष स्वतंत्र और बहुत बड़ा पत्रकार बताने के चक्कर में अर्णब गोस्वामी के साथ मुंबई पुलिस द्वारा की गई पूछताछ की निंदा कर रहे हैं।
ऐसे लोग इसे प्रेस पर हमला भी बता रहे हैं। यह वही लोग हैं जो कश्मीर के तीन पत्रकारों पर आतंक निरोधी धारा लगाने पर मौन रहते हैं। ये वे लोग हैं जो बताने का प्रयास कर रहे हैं कि अर्णब गोस्वामी के साथ यह सब केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि उसने सोनिया गांधी के खिलाफ कुछ अभद्र टिप्पणी की। यह एक साजिशन प्रयास है ताकि अरनव को एक राजनीतिक प्रतिक्रिया में फंसा हुआ बेचारा दिखाया जा सके।
एक बात जान लें-- बीच का रास्ता कोई नहीं होता है या तो दायां होता है या बायां होता है। जो लोग बीच के रास्ते पर चल रहे हैं - वह एक ऐसे शेर की सवारी कर रहे हैं, जिस दिन यह नीचे उतरने कोशिश करेंगे वह शेर इन्हें ही खा जाएगा।
यह जो शेर है सांप्रदायिकता का है, यह शेर है पीत पत्रकारिता का है, यह शेर जो है अफवाह और लोगों को भड़काने का है।
जिनको अर्नब से मुंबई पुलिस के पूछताछ पर बहुत बड़ा पत्रकारिता पर खतरा दिख रहा है वहीं कश्मीरी पत्रकार काज़ी शिबली (Kashmiri journalist Kazi Shibli) के दर्द को सुनें। उसे पब्लिक सेफ्टी एक्ट (Public safety act) में गिरफ्तार किया गया।
दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग के निवासी काज़ी को अभी 23 अप्रैल को 9 महीने बाद बरेली की जेल से छोड़ा गया। उन्होंने बंगलोर से पत्रकारिता में स्नातक किया। देश विदेश के कई अख़बरों में लिखते थे और एक वेव पोर्टल चलाते थे।
तब न किसी को दया आई, ना पत्रकारिता पर संकट (Journalism crisis) दिखा। दोगले लोग पत्रकारिता के लिए नहीं गोदी पत्रकारों के लिए चिंतित हैं। दलाल और दंगाई के साथ हैं।
पंकज चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी एफबी टिप्पणियों के समुच्चय का संपादित अंश साभार)