दुनियाभर में कोरोनावायरस रोग (कोविड-19) महामारी ने हम सबको यह स्पष्ट समझा दिया है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली (Government healthcare system) में पर्याप्त निवेश न करने और उलट निजीकरण को बढ़ावा देने के कितने भीषण परिणाम हो सकते हैं. इसीलिए इस साल के संयुक्त राष्ट्र के सरकारी सेवाओं के लिए समर्पित दिवस (संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस -United Nations Public Service Day in Hindi) पर यह मांग पुरजोर उठ रही है कि सरकारी सेवाओं को पर्याप्त निवेश मिले और हर व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा मिले.
पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल की एशिया पसिफ़िक सचिव केट लेप्पिन ने कहा कि यदि सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली पूर्ण रूप से सशक्त होती तो कोविड-19 महामारी के समय यह सबसे बड़े सुरक्षा कवच के रूप में काम आती. आर्थिक मंदी से बचाने में भी कारगर सिर्फ पूर्ण रूप से पोषित सरकारी सेवाएँ ही हैं जिनको पिछले 40 सालों से नज़र अन्दाज़ किया गया है.
केट लेप्पिन ने सही कहा है कि जिन देशों में सशक्त सरकारी आकस्मिक सेवाएँ, सरकारी अनुसन्धान, सरकारी शिक्षा, सरकारी ऊर्जा, सरकारी जल और स्वच्छता सेवा, सरकारी कचरा प्रबंधन सेवा, स्वतंत्र मीडिया, प्रभावकारी स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय लोक प्रशासन, आदि हैं, उन्होंने कोविड-19 महामारी पर बेहतर अंकुश लगाया है. परन्तु जिन देशों ने नव-उदारतावादी नीतियों को अपनाया है वहां एक जटिल चुनौती उत्पन्न हो गयी है.
पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल की महासचिव रोसा पेवेनेली ने कहा कि कोविड-19 महामारी नियंत्रण के निष्फल होने का एक बड़ा कारण है वर्तमान का अर्थव्यवस्था मॉडल. साल-दर-साल सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में आर्थिक निवेश कम होता गया या ज़रूरत से कहीं कम रहा, सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी बनी रही, अधिक स्वास्थ्य कर्मियों को संविदा पर रख कर मुश्किल में
डेविड आर्चर ने कहा कि चूँकि सरकारों पर उधारी का दबाव बढ़ रहा है इसलिए सरकारी सेवाओं पर निवेश कम होने का खतरा मंडरा रहा है. इस रिपोर्ट में 60 देशों का अध्ययन करने पर यह पाया गया कि 30 देश ऐसे हैं जो राष्ट्रीय बजट का 12% से अधिक उधारी लौटाने में ही व्यय कर रहे हैं. इन्हीं 30 देशों में सरकारी जन सेवाओं में भी कटौती देखने को मिली.
जिन देशों में उधारी लौटाने की रकम, देश के बजट के 12% भाग से कम थी वहां सरकारी जन सेवाओं में अधिक निवेश देखने को मिला. कोविड-19 महामारी के दौरान यह ज़रूरी हो रहा है कि सरकारों को उधारी लौटाने से अस्थायी छूट मिले जिससे कि वह महामारी नियंत्रण और जन सेवाओं में भरपूर निवेश कर सकें. कर्जा लौटाने पर अस्थायी छूट काफी नहीं है बल्कि मांग तो होनी चाहिए कि उधार माफ़ हो और दाताओं के साथ जन-हितैषी ढंग से पारदर्शिता के साथ पुन: संवाद हो. यदि कर्जा बढ़ेगा तो सरकारी स्वास्थ्य, शिक्षा, और अन्य ज़रूरी सरकारी जन सेवाओं में कटौती होगी.
डेविड आर्चर ने सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) से कहा कि इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड (आईएमऍफ़) का सरकारों को यही मशवरा रहा है कि सरकारी सेवाओं में वेतन पर व्यय कम किया जाए. यदि ऐसा होगा तो सरकारी शिक्षक, स्वास्थ्यकर्मी, और अन्य अति-आवश्यक सेवाओं को प्रदान करने वाले लोग प्रभावित होंगे.
डेविड आर्चर ने समझाया कि सकल घरेलू उत्पाद और कर के मध्य अनुपात भी महत्वपूर्ण मानक है जो एशिया के देशों में कम है. अमीर देशों में 34% का सकल घरेलु उत्पाद, कर से आता है और निम्न आय वर्ग देशों के लिए वैश्विक औसतन अनुपात है 17%. परन्तु एशिया के अनेक देशों में यह 10% से भी कम है जैसे कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, बर्मा, कंबोडिया आदि. भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस में सकल घरेलु उत्पाद और कर के मध्य अनुपात 17% से कम है. थाईलैंड और वियतनाम दो ऐसे देश हैं जो एशिया में इस मानक पर कुछ बेहतर कर रहे हैं.
पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल की रोसा पवानेली ने कहा कि सरकारों को बहुराष्ट्रीय उद्योग पर 25% कर को बढ़ा देना चाहिए खासकर कि वे उद्योग जो कोविड-19 महामारी के दौरान भी मुनाफ़ा अर्जित कर रहे थे, जैसे कि तकनीकि या आईटी सम्बन्धी उद्योग. स्थानीय सकल घरेलु उत्पाद के लिए ज़रूरी है कि स्थानीय सरकारी जन सेवाएँ मज़बूत रहें.
कोविद-19 के दौरान हुई तालाबंदी में उचित स्वास्थ्य सेवाएँ न मिल पाने के कारण मातृत्व मृत्यु दर में 200% वृद्धि हो गयी है. अनचाहे गर्भावस्था में भी बढ़ोतरी हुई है. घरेलू हिंसा में भी चिंताजनक वृद्धि हुई है परन्तु रिपोर्ट दर्ज होने में दिक्कत आती है चूँकि पुलिस तालाबंदी को लागू करने में व्यस्त है. घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं और बालिकाओं को सहायता मुश्किल से मिल पा रही है. कोविड-19 महामारी के लिए बने क्वारंटाइन केंद्र भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं और वहाँ कुछ बलात्कार के मामले सामने आये हैं.
कोविड-19 तालाबंदी के चलते अनेक घरों में महिलाओं और बालिकाओं के ऊपर घरेलू कार्य बढ़ गया है जिसकी कीमत का आंकलन भी नहीं होता है. जब सरकारी जन सेवाएँ कमज़ोर होती हैं तो महिलाओं और बालिकाओं को घरेलू कार्य करने पड़ते हैं, जैसे कि बीमार की देखभाल करना, दूर-दराज से पानी भर के लाना, बच्चों की देखरेख करना आदि. परन्तु जब सरकारी जन सेवाएँ सशक्त होती हैं तो बालिकाएं विद्यालय जाती हैं और महिलाओं को श्रम का उचित वेतन मिलता है.
रोसा पवानेली ने कहा कि 2016 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 194 देशों ने सरकारी जन सेवाओं में रोज़गार बढ़ाने का वादा तो किया था परन्तु वेतन-कटौती, सरकारी जन-सेवाओं में नयी भर्ती पर रोक, निजीकरण आदि देखने के मिल रहा है. यदि कोविड-19 महामारी और अन्य वैश्विक चुनौतियों से जूझने के लिए तैयार रहना है तो सरकारी जन सेवाओं का सशक्त होना अति-आवश्यक प्राथमिकता होनी चाहिए.
शोभा शुक्ला - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
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