2019 के आम चुनाव (General Elections of 2019) में प्रत्याशी म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijaya Singh) काँग्रेस (Congress) के कुछ विरले नेताओं में से एक हैं जो कांग्रेसी राजनीति (Congress Politics) के सभी गुणों में पारंगत हैं और एक परिपूर्ण राजनेता हैं। वे एक छोटे से राजपरिवार के सदस्य हैं, शिक्षा से इंजीनियर हैं, सुलझे हुये हैं, आम लोगों के बीच उठते बैठते हैं, प्रदेश में समुचित संख्या में उनके समर्थक और उपकृत लोग हैं। काँग्रेस में उनका एक अलग गुट है, जितने लोग उन्हें पसन्द करते हैं, उतने ही काँग्रेस के दूसरे गुट के लोग उनसे जलते हैं। इन्दिरा गाँधी के समय से ही वे कुछ कुछ सेंटर से लेफ्ट की ओर झुके नजर आते हैं। सारे पूजा पाठ (Pooja), नर्मदा परिक्रमा (Narmada Parikrama), साधुओं की संगत, आदि के बाद भी उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि अन्य कई काँग्रेसियों की तुलना में ज्यादा चमकदार है, वे सबसे ज्यादा मुखर हैं। हो सकता है कि यह उनके प्रबन्धन का ही एक हिस्सा हो, पर यह इतना सफल है कि काँग्रेस को समाप्त करने के सपने देखने वाली भाजपा उन्हें अपना दुश्मन नम्बर एक मानती है।
मुख्य मंत्री के रूप में म.प्र. में अपने दस वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने भाजपा के विस्तार पर लगाम लगा कर रखी व उनकी सारी चुनावी योजनाओं की काट प्रस्तुत करते रहे। जो भी विपक्ष का नेता बनता था वह भी उनका मुरीद हो जाता था, और यही कारण रहा कि भाजपा को बार-बार अपने विधायक दल का नेता बदलना पड़ा। थक हार कर 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने दिग्विजय सिंह के खिलाफ तेज साम्प्रदायिक कार्ड खेला और अब केन्द्र की मंत्री भगवा भेषधारी उमा भारती को उनके न चाहते हुए भी मुख्यमंत्री प्रत्याशी बना कर मैदान
कर्मचारियों के असंतोष और कांग्रेस की गुटबाजी के कारण वे चुनाव हार गये। प्रायश्चित में उन्होंने दस वर्षों तक कोई पद न लेने व प्रदेश की राजनीति में सक्रिय न होने का फैसला लेकर उस पर अमल भी किया। इस दौरान अपनी राजनीतिक चेतना के कारण, घटनाओं पर तात्कालिक सटीक राजनीतिक टिप्पणियों से काँग्रेस के प्रमुख नेता बने रहे। दस वर्ष के बाद ही उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार की और काँग्रेस के महासचिव के रूप में राहुल गाँधी के प्रमुख सलाहकार बने रह कर पूरी काँग्रेस को संचालित करते रहे।
जब राजनीति व्यक्ति केन्द्रित होने लगती है तो प्रतिक्रिया में व्यक्ति की छवि को भी झूठे सच्चे आरोपों से धूमिल करने का काम भी उसका विरोध पक्ष करने लगता है। सोनिया गाँधी को विदेशी ईसाई महिला और राहुल गाँधी को पप्पू कह कर बदनाम किया गया था। दिग्विजय सिंह को भी न केवल मुसलमानों का पक्षधर अपितु आतंकियों का पक्षधर तक प्रचारित कर दिया गया।
भाजपा के पास शुरू से ही एक मजबूत दुष्प्रचार एजेंसी रही है जो पहले मौखिक प्रचार के रूप में संघ के नेतृत्व में काम करती थी, तब भी इसे रियूमर स्पोंसरिंग संघ कहा जाता था। इसी एजेंसी ने कभी देश के सबसे मजबूत विपक्ष कम्युनिस्ट पार्टी को विदेश के इशारे और पैसे पर संचालित होने वाला दल कह कर बदनाम किया था। बाद में तो कम्युनिस्ट देशों में वृद्धों को मार देने से लेकर तरह-तरह से वैज्ञानिकता विरोधी प्रचार किये जिसमें जल विद्युत का अर्थ पानी में से बिजली निकाल कर उसे खेती के लिए अनुपयुक्त बना देने तक था। उनका यह काम लगातार जारी रहा और बाद में अखबारों, पत्रकारों से लेकर टीवी का स्तेमाल करते हुए ब्लाग्स फेसबुक और व्हाट’स एप्प तक उन्हें बेनामी होकर अफवाहें फैलाने की सुविधा मिलती गयी।
दूसरी ओर काँग्रेस किसी बरबाद हो चुके साम्राज्य की तरह ढहती गयी। उसके पास कुछ पुराने खण्डहर होते किले और जंग लगी तोपें व सामंती अहंकार शेष बचा। काँग्रेस अपनी अपनी हवेलियों को सम्हाले दरबारियों के समूह में बदलती गयी जो आपस में भी जंग करते रहे और निजी लाभ के लिए एकजुट भी होते रहे।
काँग्रेस की चिंता करने वाला और उसमें रह कर उसी को नुकसान करने वालों के प्रति कठोर होने का साहस करने वाला कोई नहीं बचा। ऐसी ही दशा में भाजपा काँग्रेस पर लगातार हमलावर होती गयी, कार्पोरेट घरानों से जुड़ कर उसके प्रभावी सदस्यों को खरीदती गयी, दुष्प्रचार से इतिहास तक को बदनाम करती गयी व चुनाव जीतने के लिए दोदलीय व्यवस्था जैसी स्थितियां बनाती गयी।
काँग्रेस चुनावी परिस्तिथियों के अनुकूल होने पर भले ही गठबन्धन की सरकार बनाती गयी हो किंतु उसकी संगठन क्षमता निरंतर क्षीण होती गयी। विचारधारा को समर्पित कार्यकर्ताओं की फसल बिल्कुल सूख गयी। नेताओं के पट्ठे पैदा होते गये जो कांग्रेस के लिए नहीं अपितु अपने उस्ताद के लिए तत्पर रहते हैं। ऐसी दशा में भाजपा अपनी कुशल संगठन क्षमता के कारण निरंतर जड़ें जमाती गयी। भले ही 2004 से 2014 तक काँग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार रही किंतु संसद भाजपा के चाहने पर ही चल सकी। उन्होंने सफलतापूर्वक झूठ का सिक्का चलाया। उनकी इस क्षमता के लिए बार बार पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर का वह शे’र याद आता है-
मैं सच कहूंगी और फिर भी हार जाऊंगी
वो झूठ बोलेगा, और लाजवाब कर देगा
पिछले दिनों भोपाल लोकसभा चुनाव क्षेत्र से काँग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह के मुकाबले भाजपा को कोई सही उम्मीदवार नहीं मिला < बकौल राजनाथ सिंह> तो उन्होंने विभिन्न बम विस्फोटों और हत्याओं के लिए आरोपित, स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर छूटी प्रज्ञा ठाकुर को यह कह कर चुनाव में उतार दिया कि वे निर्दोष हैं और उन्हें जानबूझ कर फंसाया गया था। इस्लामिक आतंकवाद (Narmada Parikrama) की तर्ज पर दिग्विजय सिंह ने विभिन्न मुस्लिम इबादतगाहों में हुये विस्फोटों को भगवा आतंकवाद (Saffron Terrorism) कहा था, पर पूजा पाठी दिग्विजय सिंह का वह मतलब नहीं था जो संघ परिवार ने प्रचारित किया। उन्होंने प्रचारित किया कि उन्होंने सभी हिन्दुओं को आतंकवादी कह दिया है जबकि हिन्दू तो शांतिप्रिय और सहिष्णु होता है।
सच तो यह है कि समझौता एक्सप्रैस, अजमेर. हैदराबाद, जामा मस्जिद, मालेगाँव, मडगाँव, आदि स्थानों पर जो बम विस्फोट हुये थे, वे उन आतंकवादी घटनाओं की प्रतिक्रिया में साम्प्रदायिक दिमाग के लोगों ने किये थे, जिन्हें इस्लामिक आतंकवाद कहा गया था।
जब इस्लामिक आतंकवाद कहने से सारे मुसलमानों को आतंकवादी नहीं माना जाता है तो हिन्दू समाज के एक वर्ग विशेष के लोगो द्वारा किये गये कारनामों की जिम्मेवारी पूरे हिन्दू समाज पर कैसे डाली जा सकती है।
भगवा आतंकवाद कहने का इतना ही मतलब था कि इस घटना को करने वाले अपराधी हिन्दू थे और उन्होंने वैसी ही प्रतिक्रिया में मुस्लिम इबादतगाहों को निशाना बनाया। जाँच एजेंसियों ने कुछ लोगों की पहचान कर सबूत जुटाये व मामला दर्ज कराया जिनमें प्रज्ञाठाकुर भी एक आरोपी थीं।
दुखद यह है कि दुष्प्रचार के डर से कांग्रेस इस निर्दोष बयान को स्पष्ट करने की जगह इसे छुपाने में लगी है, और एक झूठ सिर चढ कर बोल रहा है। घटनाएं हुयी हैं, जाँच में कुछ लोग पकड़े गये हैं, मुकदमे चल रहे हैं, सरकारी वकील को इस कारण वकालत छोड़ना पड़ी क्योंकि वर्तमान सरकार ने इस प्रकरण में धीमे चलने को कहा था जिसे उन्होंने कानून के हक में नहीं माना। व्यापम और ई-टेन्डरिंग समेत अनेक भ्रष्टाचरणों से रंगी आरोपी पार्टी चुनावों में साम्प्रदायिक रंग लाकर मुद्दे बदल चुकी है तो निर्दोष काँग्रेस अपने सच को भी सामने नहीं ला पा रही है। काँग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह ने अपने होंठ सिल लिये हैं और कह रहे हैं कि मैं साध्वी के बारे में कुछ भी नहीं बोलूंगा।
यह सत्य की हार और असत्य की जीत है। कांग्रेस अगर सच बोलने का साहस नहीं जुटाती तो वह पार्टी को समाप्त करने के भाजपाई सपने को पूरा कर रही होगी।
वीरेन्द्र जैन