आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार का झूठ ही उसके गले की हड्डी बन गया है. सरकार चाह कर भी आर्थिक आपात नहीं लगा सकती है. इसीलिए पीएम केयर्स फंड (PM Cares Fund), नाम का विकल्प चुना गया है. इसमें सरकारी कर्मचारियों का वेतन-भत्ता काटकर और दान से रकम जुटाई जा रही है ताकि अपनी बैलेंस शीट को चमकदार दिखाते हुए झूठे आंकड़ों की बाजीगरी को जारी रखा जा सके.
वक्त मिले तो सोजिएगा कि जो सरकार 2024-25 तक 5 ट्रिलियन इकॉनमी का सपना दिखा रही थी, वो सरकार लॉकडाउन घोषित होने के साथ ही सरकारी कर्मचारियों के भत्ते और वेतन क्यों काटने लगी.
याद करिए 2016 की नोटबंदी का फैसला. नकदी का प्रवाह ऐसा बिगड़ा कि साल दर साल इसकी मार घातक और अर्थव्यवस्था गोते खाते चली गई. मार इतनी गहरी थी कि सदाबहार कहा जाने वाले एफएमसीजी सेक्टर कराह उठा. इसकी वजह ग्रामीण इलाकों में रोजाना की वस्तुओं की मांग में ऐतिहासिक गिरावट थी. इसकी वजह थी कि नोटबंदी के बाद से किसानों को फसलों के सही दाम मिलने में लगातार परेशानी का आना. सरकार ने महंगाई को काबू करने की नीति को एक सनक की तरह लागू किया. दालों के बंपर उत्पादन के साथ दालों का आयात हुआ, प्याज के बंपर उत्पादन के बीच उसके निर्यात की इजाजत नहीं दी गई. हालात ऐसे बने कि 2018 में नासिक में किसानों ने प्याज बेचने की जगह बांटना या फेंकना मुनासिब समझा. कुछ ने फसल बेचने से जो पैसे मिले उसे पीएम मोदी को मनीऑर्डर कर दिया अपना घर खर्च चलाने
इस बीच सरकार ने फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उनकी लागत (फॉर्मूले पर सवाल है) का डेढ़ गुना करने का दावा तो किया लेकिन महज 6 फीसदी अनाज (प्रमुख तौर पर गेहूं और धान) खरीदने वाला ये सरकारी इंतजाम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को राहत नहीं लगा पाया. हालांकि, सरकार आश्चर्यजनक तरीके से अर्थव्यवस्था की हालत बेहतर बताने के लिए आंकड़ों की उलट-फेर करती रही.
खैर अब तो पूरी अर्थव्यवस्था ही बंद है.
किसान अपनी फसलों को खेतों से लेकर सड़कों तक फेंकने के लिए मजबूर हैं. सरकारी खरीद का हाल ये है कि एमपी में किसानों को पैसा मिलने से पहले ही कर्ज की वसूली कर ली जा रही है. ऐसी ही योजना हरियाणा में है, जहां गेहूं की खरीद पैसा सीधे किसानों के खाते में डाला जाना है, लेकिन किसान इसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि डर है कि इस मुश्किल वक्त में सरकार उनसे कर्ज की वसूली कर सकती है.
बाकी कोरोना होगा जनता के लिए महामारी, मुंहबलियों के लिए तो आर्थिक अपराध के सबूत मिटाने का सुअवसर है. अब कोई नहीं पूछेगा कि 2022 तक किसानं की आय कैसे दोगुनी होगी, कैसे देश 2024-25 तक 5 ट्रिलियन इकॉनमी बनेगा, कैसे स्मार्ट सिटी जगमगाएंगे, कैसे लोग हर साल दो करोड़ रोजगार पाएंगे, देश कुपोषण और टीबी से कैसे मुक्त होगा?
ऋषि कुमार सिंह
लेखक युवा पत्रकार हैं।