स्कूली बच्चों (School children) को पढ़ाये जाने के साथ ही नेताओं और आला अफसरों के भाषणों, लेखों, रचनाओं, कविताओं,गजलों वगैराह में कुछ वाक्य सुनने को मिलते हैं कि "भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है" (India is a secular country), "यहाँ का संविधान धर्मनिरपेक्ष है" (The constitution here is secular), "कानून की आँखों पर काली पटटी बँधी है यह किसी की धर्म जाति रंग रूप ओहदे को देखकर न्याय नहीं करता", "कानून की नजर में सब बराबर हैं" (All are equal in law)। वगैरा वगैरा........, लेकिन क्या ये सारी बातें सही हैं, इनका कोई वास्तविक रूप है?
इन सवालों के जवाब कुछेक मामलों को गौर से देखने के बाद आसानी से मिल जाते हैं। 1992 में बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) को शहीद कर दिया गया, जिसका मुकदमा आजतक लटकाकर रखा जा रहा है, कई एक जाँचों में दहशतगर्दो के नाम खुलकर सामने आ जाने के बावजूद उन पर कानूनी शिकंजा कसने के बजाये उलटे उनमें से कुछेक को सरकारी कुर्सियाँ दी गयीं, जबकि बरेली जिले के एक गाँव में सरकारी सड़क को घेर कर रातो रात बना लिये गये एक मन्दिर की दीवार रात के अंधेरे में ट्राली लग जाने से गिर गयी, सुबह ही पुलिस दौड़ी ओर ट्रैक्टर चालक को उठा लाई मन चाही धाराये ठोककर जेल भेज दिया। इसी सरीखे देश भर में हजारों मामले हैं। कम से कम से कम बीस साल पहले पाकिस्तान मूल की जिन मुस्लिम महिलाओं ने भारतीय मुस्लिम पुरूषों से बाकायदा शादी करके यहाँ रहने लगी उनके कई कई बच्चे भी हुये, इन महिलाओं को गुजरे पाँच साल के अर्से में ढूँढ-ढूँढकर देश से वापिस किया गया। यहाँ तक कि कुछेक के मासूम दुधमुँहे बच्चों को भी उनकी माँओं की गोद से दूर कर दिया गया, बरेली में ही लगभग पाँच साल पहले एक लगभग 80 साल के बूढ़े हवलदार खाँ को पाकिस्तानी बताकर जेल में
गुजरी साल आंवला में कांवड़ियों ने नमाज होती देखकर मस्जिद के आगे नाचना गाना शुरू कर दिया विरोध होने पर कांवड़ियों ने अपने वाहनों में मौजूद पैट्रौल के पीपों में से पैट्रौल घरों पर फेंककर आग लगाने की कोशिश की, जिसका नतीजा हुआ कि शहर पूरे महीने कर्फ्यू की गोद में रहा। कर्फ्यू के दौरान ही प्रशासन ने संगीनों के बल पर नई परम्परा की शुरूआत कराते हुये दो नये रास्तों (मुस्लिम बाहुल्य) क्षेत्रों से नई कांवड़ यात्रायें निकलवायी। अकबरूद्दीन ओवैसी ने देश के मौजूद हालात की दुखती रग पर उँगली रखी तो कानून ताकतवर बन खड़ा हुआ। यहाँ तक कि जज साहब भी अपने अन्दर की मुस्लिम विरोधी भावना को बाहर आने से नहीं रोक सके जबकि औवैसी से कहीं ज्यादा खतरनाक और आपत्तिजनक बयान हर रोज इसी यूट्यूब, फेसबुक वगैराह पर मुसलमानों के खिलाफ देखे जाते हैं लेकिन जज साहब को आपत्तिजनक नहीं लगते, न ही देश के कानून को चुभते हैं। गुजरे दिनों बरमा और आसाम में आतंकियों के हाथों किये जा रहे मुस्लिम कत्लेआम के खिलाफ सोशल नेटवर्किंग साइटों पर चर्चा गरम हुयी तो देश की सरकारों और कानून के लगने लगी। प्रधानमंत्री और ग्रहमंत्री ने तो ऐसी साइटों को बन्द कराने तक के लिये जोर लगाया, जबकि इन्हीं साईटों पर कुछ आतंकवादी खुलेआम इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने के साथ ही अपनी गन्दे खून की पहचान कराते हुये उन शब्दों का प्रयोग करते रहते हैं जो उनके खानदानी पहचान वाले शब्द हैं। इस पर न सरकार को लगती है न ही कानून को।
आरएसएस लॉबी की खुफिया एजेंसियों, और मीडिया के साथ मिलकर सुरक्षा बलों ने हमेशा ही धमाके करने वाले असली गुनाहगारों को बचाने के लिये साजिशी तौर पर हर धमाके की सीधी जिम्मेदारी थोपकर सैकड़ों मुस्लिमों को सरेआम कत्ल किया। जेलों में रखकर बेरोकटोक यातनायें देते रहें लेकिन बेगुनाह फँसाये जाने के बावजूद किसी भी बेगुनाह की तरफ से जवाब में किसी भी जांच अधिकारी का कत्ल नहीं किया गया जबकि जब एक ईमानदार अधिकारी शहीद हेमन्त करकरे ने देश के असल आतंकियों को बेनकाब कर दिया तब चन्द दिनों में ही हेमन्त करकरे को ही ठिकाने लगा दिया गया। हेमन्त करकरे के कत्ल का इल्जाम भी मुस्लिम के सिर मढ़ने के लिये आरएसएस लॉबी की खुफिया एजेंसियो, सुरक्षा बलों, एवं मीडिया ने एक बहुत ही बड़ा ड्रामा खड़ा किया जिसमें शहीद हेमन्त करकरे को ठिकाने लगाने का रास्ता आसान और साफ कर लिया गया और लगा दिया एक ईमानदार शख्स को ठिकाने। हेमन्त करकरे का कसूर बस इतना ही था कि उन्होंने देश के असल आतंकवादियों को बेनकाब कर दिया।
विवेचना अधिकारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) और राष्ट्रपति तक किसी ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर हेमन्त करकरे को ही गोली क्यों लगी दूसरे किसी अफसर या जवान को क्यों नहीं लगी, जबकि तुरन्त ही हेमन्त करकरे की जैकेट को लेकर बहस भी छिड़ी, लेकिन किसी ने भी जैकेट के बेकार होने के मामले की तह तक पहुँचने की जहमत नहीं की और और हाथ लग चुके कुर्बानी के बकरे को ही हेमन्त करकरे का कातिल ठहराया जाता रहा।
हेमन्त करकरे के कत्ल (Hemant Karkare's murder) और उनकी जाकेट की ज्यादा बखिया उधेड़ने से जानबूझ कर बचा गया क्योंकि सभी यह जानते थे कि अगर इन बिन्दुओं को कुरेदा गया तो फिर असल आतंकियों को बेनकाब करना पड़ेगा, साथ ही करोड़ों रूपये ठिकाने लगाकर बिछाये गये जाल का भी पर्दाफाश हो जायेगा, यानी बम्बई हमले की असलियत भी दुनिया के सामने आ जायेगी। इसी साल रमज़ान के महीने में बरेली के थाना भोजीपुरा के गाँव हंसा हंसनी में लाऊडस्पीकर पर नआत (नबी की शान में गजल) पढ़ने पर कुछ खुराफातियों को एतराज होने लगा और एसओ भोजीपुरा ने गाँव में पहुँचकर पाबन्दी लगादी, जबकि इसी गाँव में रात रात भर किये जाने वाले जागरणों की आवाजों पर किसी ने आजतक कोई रोक नहीं लगाई। महात्मा गांधी का कातिल मुसलमान नहीं था, इन्दिरा गांधी के कातिल मुस्लिम नहीं, राजीव गांधी के कातिल भी मुस्लिम नहीं, खुफिया दस्तावेज पाक को देने वाली भी मुसलमान नहीं है, हजारों करोड़ रूपये चुराकर विदेशों में जमा करने वालों में भी कोई मुसलमान नहीं।
ताजा मामलों को ही देखिये, मध्य प्रदेश में विहिप नेता के घर से आतंक का सामान बरामद हुआ पुलिस ने उस आतंकी को फरार होने का पूरा मौका दिया, प्रधानमंत्री से लेकर सन्तरी तक सभी की बोलती बन्द है किसी के मुंह से कुछ नहीं निकल रहा। बिहार में हथयारों की अवैध फैक्ट्री पकड़ी गयी, किसी के मुँह में जुबान नहीं दिखी, हाँ अगर यही मामला किसी मुसलमान से जुड़ा होता तो शायद सबसे पहले प्रधानमंत्री ही चीख पड़ते गृहमंत्री कहते कि इण्डियन मुजाहिदीन के सदस्य के यहाँ से बरामद हुआ तो इनके गृहसचिव को पाकिस्तान की साजिश दिखाई पड़ती। मीडिया भी कुलाचें मार मारकर चीखती यहाँ तककि एक न्यूज चैनल के पास तो ईमेल भी आना शुरू हो जाती, छापा मारने वाली टीम अभी हथियारों को उठा भी नहीं पाती कि मीडिया इसके जिम्मेदारों के नामों की घोषणा भी कर देता। आरएसएस आतंकियों ने मक्का मस्जिद में धमाके करके आईबी और दूसरी जांच एजेंसियों को इशारा करके मुस्लिम नौजवानों को जिम्मेदार ठहराकर गिरफ्तार कराया और जी भरकर उन पर अत्याचार किये भला हो ईमानदारी के प्रतीक शहीद हेमन्त करकरे का जिन्होंने देश में होने वाले धमाकों और आतंकी हरकतों के असल कर्ताधर्ताओं को बेनकाब कर दिया जिससे साजिशन फँसाये गये मुस्लिमों को रिहाई मिली। साजिश के तहत फँसाकर मुस्लिम नौजवानों की जिन्दगियाँ बर्बाद कर दी गयीं। अदालत में साजिश और झूठ टिक नहीं सका। बेगुनाह रिहा हुये उनका कैरियर बर्बाद हो चुका था आन्ध्र प्रदेश सरकार नें उन्हें मुआवजा दिया जिसके खिलाफ आरएसएस लॉबी ने अदालत में केस करा हाईकोर्ट ने भी अफजल गुरू के मामले की ही तर्ज पर समाज के अन्तःकरण (आरएसएस लॉबी) को शान्त रखने के लिये सरकार के फैसले का गलत करार दे दिया। हम जानते हैं कि हमारी इस बात को अदालत की अवमानना करार देने की कोशिशें की जायेंगी। मुसलमानों के साथ सरकारें अदालतें और कानून धार्मिक भेदभाव कुछ दिनों या कुछ सालों से नहीं कर रहा ये कारसाजियाँ 15 अगस्त 1947 से ही (ब्रिटिशों के जाते ही) शुरू हो गयी थी, जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस कमेटी की ही देन है जो देश का बँटवारा हुआ जिसका इलजाम मोहम्मद अली जिन्ना पर मढने की लगातार कोशिशें की जाती रही हैं। जवाहर लाल नेहरू ने ठीक उसी तरह से हैदराबाद में फौज और गैर मुस्लिमों के हाथों मुसलमानों का कत्लेआम कराया था जिस तरह से मोदी ने गुजरात में कराया। यहाँ के कानून ने तमाम सबूतों के बावजूद न तो जवाहरलाल के खिलाफ कदम उठाने की जुर्रत की ओर न ही मोदी के खिलाफ। फिर भी मुसलमान अदालतों और कानून को पूरा सम्मान देता है जबकि दूसरे तो साफ-साफ कहते हैं कि ‘‘हम अदालत के फैसले का इन्तेजार नहीं करेंगे अपना काम करके रहेंगे’’। अगर बात करें कोर्ट की तो सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर दंगे के मामले में सरकार से जवाब मांगा है क्यों, क्योंकि आरएसएस लॉबी के एक चैनल ने कुछ पुलिस अफसरों के बयानों को उछाला है कहा जा रहा है कि स्टिंग किया गया इसमें पुलिस अफसर बता रहे हैं कि सूबाई सरकार के मंत्री आजम खां ने कार्यवाही को मना किया था, इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर दिया। सवाल यह पैदा होता है कि इसकी क्या गारन्टी है कि स्टिंग में दिखाये गये पुलिस वाले आरएसएस लॉबी के नहीं हैं या वे सही बोल रहे हैं? जिस तरह इस चैनल ने दिल्ली हाईकोर्ट धमाके के बाद अपने ईमेल पते पर ईमेलें मँगाकर मुस्लिम युवकों को फँसाया था। इसी तरह अपने ही गैंग के पुलिस वालों से बयानबाजी कराई हो। कोर्ट ने इसकी स्टिंग वीडियो का फारेंसिक परीक्षण कराये बिना ही विस्वास करके नोटिस जारी कर दिया। कारण है कि इस वीडियो में वर्दी वाले बयान देते दिखाये गये हैं वर्दी वाले सच बोलते है यह हो नहीं सकता हम यह दावा सिर्फ इसलिये कर रहे हैं कि आईपीएस संजीव भट्ट ने तो अदालत में हलफनामे देकर बयान दर्ज करये उनको आजतक सच्चा नहीं माना जा रहा है, क्यों? क्योंकि वे किसी मुसलमान की करतूत नहीं बता रहे, जबकि मुजफ्फरनगर मामले में पुलिस अफसरों की बात को सीधे सीधे सच मानकर अदालत ने नोटिस भी जारी कर दिया क्यों? कयोंकि यह ड्रामा एक मुसलमान मंत्री के खिलाफ रचा जा रहा है। इसी तरह के हजारों मामले सामने आने के बावजूद भी मुसलमान यहाँ की अदालतों और कानून में भरोसा रखे हुये हैं।
इमरान नियाज़ी