बिना नोटिस, बिना पेंशन आंगनबाड़ियों को नौकरी से निकालकर बनाया जा रहा आत्मनिर्भर ! दिनकर ने उप्र शासन को भेजा प्रतिवाद पत्र
hastakshep
Created Date:June 15, 2020, 06:30 PM
Without notice, pension Anganwadis are being made self-reliant by sacking! Dinkar sent a counter letter to the government
लखनऊ, 16 जून 2020. बिना नोटिस, बिना पेंशन, बिना ग्रेच्युटी दिए मनमाने> विधि विरुद्ध व संविधान विरुद्ध आंगनबाड़ियों को नौकरी से निकालने की कार्यवाही के खिलाफ वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रमुख सचिव (बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग) को पत्र भेजा है, जिसका मजमून निम्न है -
प्रति,
प्रमुख सचिव (बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग)
उत्तर प्रदेश शासन
नवीन भवन राज्य सचिवालाय,
लखनऊ।
विषय:- निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश के विधि विरूद्ध एवं माननीय हाईकोर्ट की अवमानना करते हुए दिए आदेश दिनांकित 08 मई 2020 के आधार पर आंगनबाड़ियों को सेवा पृथक करने की अवैधानिक कार्यवाही पर रोक लगाने एवं उपरोक्त आदेश को निरस्त करने के संदर्भ में :-
महोदय,
आपके संज्ञान में उत्तर प्रदेश सरकार के श्रम विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त महासंघ यू0पी0 वर्कर्स फ्रंट की तरफ से निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश, लखनऊ के विधि विरूद्ध एवं माननीय हाईकोर्ट के विरूद्ध दिए गए आदेश दिनांकित 08 मई 2020 के आधार पर आंगनबाड़ियों को सेवा से पृथक करने की अवैधानिक कार्यवाही को लाना चाहते है। (आदेश दिनांकित 08.05.2020, संलग्न, संलग्नक-1) इस सम्बंध में बिंदुवार निम्न बिंदु से आपको अवगत कराना चाहेंगे -
यह कि निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश का संदर्भित आदेश समस्त जिलाधिकारी, उत्तर प्रदेश को सम्बोधित है और इसकी प्रति सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही के लिए समस्त जिला कार्यक्रम अधिकारी, बाल सेवा एवं पुष्टाहार विभाग, उत्तर प्रदेश को अनुपालन हेतु भेजी गयी है। यह आदेश कहता है कि शासनादेश सं0-1606/60-2-12-2/ 1 (22)/10 टी0 सी0 दिनांक 04.09.2012 में दी गयी व्यवस्था के अनुसार आगंनबाड़ी कार्यकत्री/मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्र्री तथा सहायिका चयन की नियमानुसार कार्यवाही करना सुनिश्चित करें। (शासनादेश दिनांकित 04.09.2012 संलग्न है, संलग्नक-2) ज्ञात हो कि निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश
के इस आदेश में जिस शासनादेश का उल्लेख करते हुए नियमानुसार कार्यवाही की बात कहीं गयी है। उस शासनादेश को माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड़पीठ में प्रोवीजनल चाइल्ड डेवलपमेंट प्रोजक्ट आफिसरस वेलफयर एसोसिएशन द्वारा सर्विस बेंच में यचिका संख्या 9/2013 द्वारा चुनौती दी गयी थी। जिसमें आदेश दिनांकित 7.01.2013 में माननीय उच्च न्यायालय ने इस शासनादेश पर प्रश्न उठाते हुए केन्द्र सरकार की गाइड़लाइन के अनुसार आंगनबाडी कार्यकत्रियों की नियुक्ति के लिए चयन समितियों के निर्धारण का आदेश दिया था। इसी आदेश में माननीय न्यायालय ने आगंनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिका के लिए सरकार को नियमावली बनाने का निर्देश भी दिया है। (माननीय उच्च न्यायालय का आदेश दिनांकित 07.01.2013 संलग्न है, संलग्नक-3) यह याचिका अभी भी माननीय उच्च न्यायालय में विचारधीन है। स्पष्ट है कि जब शासनादेश दिनांकित 04.09.2012 को न्यायालय ने स्वीकार न करते हुए केन्द्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार चयन प्रक्रिया करने के लिए आदेशित किया हो और वाद माननीय न्यायालय में लम्बित हो तब ऐसी स्थिति में इसके अनुपालन का आदेश देना मनमर्जीपूर्ण और कानून की निगाह में विधि विरूद्ध है। अतः निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश आदेश दिनांकित 08.05.2020 निरस्त होने योग्य है।
यह कि संदर्भित निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश का आदेश शासनादेश सं0-1606/60-2-12-2/ 1 (22)/10 टी0 सी0 दिनांक 04.09.2012 के अनुसार कार्यवाही के लिए कहता है। जिसके अनुसार वर्ष 2012 के बाद हुई या होने वाली आगंनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिका की नियुक्ति में ही यह लागू होगा। यह आदेश इसके पूर्व हुई नियुक्तियों के लिए विधि मान्य नहीं है। आपके संज्ञान में ला दें कि आंगनवाडी कार्यकत्री व सहायिकाओं के चयन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसके पूर्व 16 दिसम्बर 2003 और 23 मई 2007 को निर्घारित चयन प्रक्रिया में स्पष्ट कहा है कि 60 वर्ष पूरा होने के बाद भी आगंनबाड़ी कर्मचारियों और सहायिकाओं को उनके पद से हटाया नहीं जायेगा। यदि वह शारीरिक रूप से काम करने में अक्षम है तो उन्हें कारण बताओं नोटिस देकर ही सेवा से पृथक किया जायेगा। यह बातें स्वयं सरकार ने स्पेशल अपील संख्या 1121/2005 में स्वीकार की है। जिसका उल्लेख माननीय उच्च न्यायालय के आदेश दिनांकित 28.05.2010 में किया गया है। (माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की प्रति संलग्न है, संलग्नक-4) अतः संदर्भित आदेश मनमर्जीपूर्ण और कानून की नजर में विधि विरूद्ध व निरस्त होने योग्य है।
यह कि संदर्भित निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश के आदेश के अनुपालन में जिला कार्यक्रम अधिकारियों द्वारा 62 साल से ज्यादा उम्र की कार्यकत्रियों का आयु प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है और बलिया, फरूर्खाबाद, अलीगढ़ समेत कई जनपदों में तो ऐसी आंगनबाडी कार्यकत्रियों को बिना कारण बताए या लिखित व मौखिक सूचना दिए कार्य से पृथक भी कर दिया गया। (ऐसे आदेशों की प्रतिलिपि एक साथ संलग्न, संलग्नक-5) जिला कार्यक्रम अधिकारियों द्वारा लिखित व मौखिक रूप से बिना कारण बताए सेवा से पृथक करने की कार्यवाही संविधान के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण करती है और एक आगंनबाड़ी को जिंदा रहने के अधिकार से भी वंचित करती है। साथ ही संविधान के नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 43 का भी अतिक्रमण करती है। संविधान का अनुच्छेद 37 नीति निर्देशक तत्व के बारे में स्पष्ट कहता है कि इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध के लिए विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। अतः संदर्भित आदेश 08.05.2020 संविधान के मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों के विरूद्ध है और निरस्त होने योग्य है। साथ ही इस आदेश के अनुपालन में आगंनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिकाओं को सेवा से पृथक कर देने की कार्यवाही भी विधि विरूद्ध और संविधान विरूद्ध है और तत्काल प्रभाव से निरस्त होने योग्य है।
यह कि स्पष्ट है कि संवैधानिक रूप अनुच्छेद 43 के तहत राज्य का यह कर्तव्य है कि वह हर नागरिक के जीवन की रक्षा करें और कर्मकारों के शिष्ट जीवनस्तर, निर्वाह मजदूरी, काम की दशाएं आदि का प्रयास करे। भारत सरकार के महिला व बाल विकास विभाग द्वारा दिनांकित 07.05.2015 को दिए आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कार्यरत 176030 आंगनबाडी कार्यकत्रियों के लिए आज तक कोई नियमावली नहीं बनाई गई है। (महिला एवं बाल विकास भारत सरकार की सूचना की प्रतिलिपि संलग्न, संलग्नक-6) याचिका संख्या 9/2013 में दिनांक 7.01.2013 को हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद सेवा शर्तो की नियमावली न बनाकर संविधान के अनुच्छेद 43 का उल्लंधन उत्तर प्रदेश शासन द्वारा किया जा रहा है। बिना नियमावली के पूरे जीवन कार्यरत आंगनबाडी कार्यकत्री और सहायिकाओं को सेवानिवृत्ति के उपरांत कोई सेवानिवृत्ति लाभ की व्यवस्था नहीं दी जा रही है। जो कि विधि विरूद्ध और संविधान विरूद्ध है।
यह कि आपके संज्ञान में ला दें कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों/सहायिकाओं की मानदेय सेवाएं समाप्त किये जाने के सम्बंध में दिशा-निर्देश विषयक आदेश में तत्कालीन निदेशक, बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा दिनांक 20 फरवरी 2013 में कहा गया है कि इस सम्बंध में निदेशालयस्तर से पूर्व में निर्गत सभी आदेश एतदद्वारा निरस्त किये जाते है। इस आदेश में वह आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं के महत्वपूर्ण योगदान को चिन्हित करते हुए कहते है कि सेवा से पृथक कर देना कठोरतम दण्ड़ है। अतएव यदि किसी आंगनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिका द्वारा की गयी अनियमितता गम्भीर प्रवृत्ति की है जिसके आधार पर उसे सेवा से पृथक करना अनिवार्य हो तो ऐसा करने से पूर्व उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए उसके पक्ष को भी सुनने के उपरांत जिलाधिकारी का अनुमोदन प्राप्त कर अंतिम निर्णय लिया जाना उचित व नैसर्गिक न्याय के अनुरूप है। (आदेश दिनांकित 20 फरवरी 2020 संलग्न, संलग्नक-6) लेकिन संदर्भित आदेश दिनांक 08.05.2020 में इस आदेश का भी अनुपालन नहीं किया जा रहा है और बिना सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिए, बिना कारण बताए सेवा से पृथक कर दिया जा रहा है। जो नैसर्गिक न्याय के विरूद्ध और अनुचित है। इसलिए संदर्भित आदेश दिनांक 08.05.2020 निरस्त होने योग्य है।
यह कि संदर्भित आदेश दिनांक 08.05.2020 में उल्लेखित शासनादेश दिनांक 04.09.2012 अंतविरोधी, अप्रासंगिक व समायानुकूल नहीं है। एक तरफ इस शासनादेश के बिंदु संख्या 9 में आगंनबाड़ी कार्यकत्र्री, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्र्री एवं सहायिका की शादी के पश्चात उसकी ससुराल के ग्रामसभा/न्याय पंचायत/वार्ड शहरी क्षेत्र के अंतर्गत आगंनबाड़ी कार्यकत्र्री, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्र्री एवं सहायिका को समायोजित करने की बात कहीं गयी है वहीं बिंदु संख्या 12 में सेवा समाप्ति की बात का उल्लेख है। यहीं नहीं शासनादेश के बिंदु संख्या 3 (2) में तय की गयी गरीबी रेखा की सीमा भी जो निर्धारित की गयी है वह प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश शासन द्वारा शासनादेश दिनांकित 14 सितम्बर 2015 को बदली जा चुकी है। (शासनादेश की छायाप्रति संलग्न है, संलग्नक-7) अतः यह शासनादेश भी वर्तमान परिस्थिति के अनुसार अप्रासंगिक व प्रतिकूल है और निरस्त होने योग्य है।
यह कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 स्पष्टतः कहता है कि ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो मजदूरी पर किसी कारखाने समेत अन्य स्थापन के कार्य में या कार्य के सम्बंध में शारीरिक या अन्यथा किसी प्रकार के कार्य में नियोजित है। इसी अधिनियम में नियोजक की परिभाषा स्पष्टतः वर्णित है कि जो केन्द्र सरकार या राज्य सरकार की है, अथवा उसके नियंत्रणाधीन है, समुचित सरकार द्वारा कर्मचारियों के पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण के लिए नियुक्त कोई व्यक्ति, अथवा प्राधिकारी अभिप्रेत है अथवा जहां व्यक्ति या प्राधिकारी नियुक्त नहीं किया गया है वहां सम्बद्ध मंत्रालय या विभाग का प्रधान अभिप्रेत है। ग्रेच्युटी भुगतान के सम्बंध में दिल्ली क्लाथ एण्ड़ जनरल मिल्स लिमिटेड बनाम वर्कमेन, हबीबिया गल्र्स प्राइमरी स्कूल बनाम नूरिनिस्सा, रामगोपाल बनाम महेश शिक्षण संस्थान जोधपुर, जय हिन्द इण्डस्ट्रीज लि0 बनाम विलास विठलरासव तकाले समेत तमाम याचिकाओं में माननीय उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि ग्रेच्युटी कर्मचारी का संवैधानिक अधिकार है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि यह शैक्षणिक संस्थाओं पर भी लागू होगा। आप अवगत होंगे कि संविधान के अनुच्छेद 45 के तहत 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के प्रारम्भिक शिक्षा व बाल्यावस्था देख-रेख का कार्य जमीनीस्तर पर आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं द्वारा सम्पादित किया जाता है। यहीं नहीं अनुच्छेद 47 के तहत पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने के राज्य के कर्तव्य का अनुपालन भी जमीनीस्तर पर आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं द्वारा सम्पादित किया जाता है। अतः स्पष्ट है कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं को सेवानिवृत्ति की दशा में ग्रेच्युटी का भुगतान करना अनिवार्य है। बिना कोई कारण बताए और बिना सेवानिवृत्ति लाभ जिसमें ग्रेच्युटी का भुगतान विधिक बाध्यता है, को दिए बिना ही की जा रही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही मनमर्जीपूर्ण व विधि विरूद्ध है। इसलिए निरस्त होने योग्य है।
यह कि भारत सरकार और स्वयं माननीय प्रधानमंत्री द्वारा वृद्ध जनों को पेंशन देने पर लगातार जोर दिया जा रहा है। इस सम्बंध में अटल पेंशन योजना और प्रधानमंत्री पेंशन योजना भी शुरू की गयी है। इतना ही नहीं कोविड़-19 की महामारी में तो प्रधानमंत्री जी ने खुद वृद्धावस्था पेंशन को बढ़ाकर एक हजार रूपए कर दिया है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी एक वृद्ध व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए पेंशन की अनिवार्यता को रेखांकित किया है। संविधान का अनुच्छेद 41 वृद्धावस्था में वृद्ध व्यक्ति को लोक सहायता यानी सरकार से सहायता प्राप्त करने का राज्य का कर्तव्य निर्धारित करता है। लेकिन सेवा से पृथक की जा रही 62 वर्ष से ज्यादा उम्र की आंगनबाडियों को सेवा से पृथक करने के समय कोई पेंशन का उपबंध नहीं किया गया है और न ही उन्हें कोई पेंशन दी जायेगी। अतः यह संविधान के अनुच्छेद 21 जीने के अधिकार व अनुच्छेद 41 का उल्लंधन है और बिना पेंशन दिए ही सेवा से पृथक करने की सभी कार्यवाहियां निरस्त होने योग्य है।
ऐसी परिस्थितियों में हम आपसे निम्नलिखित मांग करते हैं-
तत्काल प्रभाव से निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश के आदेश दिनांकित 08 मई 2020 के अनुपालन में आगंनबाड़ी कार्यकत्री/मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्र्री तथा सहायिका को सेवा से पृथक करने की कार्यवाही पर रोक लगाएं और इस सम्बंध में हुए सभी आदेश निरस्त किए जाए।
तत्काल प्रभाव से विधि विरूद्ध, संविधान विरूद्ध एवं माननीय न्यायालयों के आदेश के विरूद्ध निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार, उत्तर प्रदेश के आदेश दिनांकित 08 मई 2020 को निरस्त किया जाए।
तत्काल प्रभाव से अंतर्विरोधी व अप्रसंगिक शासनादेश सं0-1606/60-2-12-2/ 1 (22)/10 टी0 सी0 दिनांक 04.09.2020 को निरस्त कर। माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड़पीठ द्वारा दिनांकित 07.01.2013 को दिए आदेश में आगंनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिका के लिए सरकार को नियमावली बनाने के निर्देश का सम्मान करते हुए तत्काल आगंनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिका की सेवाशर्तो की नियमावली बनाने का आदेश दिया जाए।
यदि उत्तर प्रदेश शासन 62 वर्ष पूरा कर चुकी आंगनबाड़ी कार्यकत्री, मिनी आंगनबाडी कार्यकत्री व सहायिका को सेवानिवृत्ति देना ही चाहती है। तो इस स्थिति में वृद्धावस्था में एक नागरिक के बतौर जिंदा रहने और ईमानदारी पूर्वक अपनी सेवा विभाग व समाज को देने वाली इन कर्मियों को संवैधानिक अधिकार के तहत ग्रेच्युटी और पेंशन उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे।
सादर!
दिनकर कपूर
प्रदेश अध्यक्ष
यू. पी. वर्कर्स फ्रंट
मोबाइल नम्बर- 9450153307
प्रतिलिपि सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु:-
मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ।
निदेशक, बाल सेवा एवं पुष्टाहार विभाग, इंदिरा भवन, लखनऊ।