कोविड-19 (COVID-19) से पूरी दुनिया प्रभावित है, पर इससे सबसे अधिक प्रभावित शुरू के 10 देशों में, चाहे कुल संक्रमितों की संख्या हो या फिर प्रति दस लाख आबादी में संक्रमितों की संख्या, किसी देश की सरकार महिला के हाथ में नहीं है. इकोनॉमिस्ट सुप्रिया गरिकिपति और उमा कम्भाम्पति (Supriya Garikipati, Uma Kambhampati ) के अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि महिला नेताओं ने इस समस्या को पूरी गंभीरता से लिया, कभी समय नहीं गंवाया, वैज्ञानिक तथ्यों का सहारा लिया, वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञों से लगातार सलाह ली, और केवल लोगों का जीवन बचाने के उद्देश्य से काम करती रहीं, ऐसे में इन महिला नेताओं ने अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों की चिंता नहीं की.
दूसरी तरफ, आज जिन देशों की हांलत कोविड-19 के मामले में बहुत खराब है, उनकी अर्थव्यवस्था भी बहुत खराब है, क्योंकि सर्वाधिक प्रभावित देशों ने अर्थव्यवस्था बचाने के चक्कर में कोविड-19 को हलके में लिया, जिससे महामारी और अर्थव्यवस्था दोनों की ही दशा बिगड़ती गई.
इंग्लैंड के समाचारपत्र, इंडिपेंडेंट, ने अपनी तरफ से एक आकलन कर बताया है कि पुरुष नेताओं वाले कोविड-19 से सबसे अधिक प्रभावित पांच देशों में प्रति दस लाख आबादी में औसतन 15000 से अधिक लोग प्रभावित हुए, जबकि महिला नेताओं वाले सबसे प्रभावित पांच देशों में यह औसत 4000 से भी कम रहा. प्रति दस लाख आबादी पर कोविड-19 के संक्रमण के सन्दर्भ में बहरीन सबसे आगे है, जहां 22119 व्यक्ति संक्रमित हुए, जबकि महिला नेता वाले देशों में सबसे प्रभावित बेल्जियम रहा जहां इतनी ही आबादी में 5568 व्यक्ति संक्रमित हुए.
न्यूज़ीलैण्ड के महामारी विशेषज्ञों के अनुसार राजनैतिक दृढ इच्छाशक्ति और विज्ञान के बेहतर समन्वय से महामारी भी हारती हैं,
कुछ दिनों पहले यूरोपियन सेंट्रल बैंक की पहली महिला प्रेसिडेंट क्रिस्टीन लागार्दे (Christine Lagarde, the first female president of the European Central Bank) ने वाशिंगटन पोस्ट को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि दुनिया भर की महिला नेताएं महामारी से निपटने में पुरुष नेताओं से बहुत आगे हैं. महिला नेताओं की सफलता का सबसे बड़ा कारण है, जनता को इमानदारी से दी गई सूचनायें और नेताओं द्वारा जनता को यह विशास दिलाना कि सरकार हर समय उनके साथ है. महिला नेताओं की कोविड-19 के सन्दर्भ में नीतियाँ और जनता से संवाद शानदार और सीधा रहा.
क्रिस्टीन लागार्दे जर्मनी की चांसलर एंजेला माँर्केल के विज्ञान आधारित नीतियों के साथ आंकड़ों और संक्रमण दर का इमानदारी और पारदर्शी तरीके से की गई समीक्षा से बहुत प्रभावित हैं. इन सबसे जनता में मास्क, दूरी बनाए रखने और आइसोलेशन की समझ बढ़ती है, और फिर जनता इसका इमानदारी से पालन करती है. क्रिस्टीन लागार्दे ने बताया कि ताइवान, बेल्जियम और न्यूज़ीलैण्ड में भी शासन में महिलायें हैं और इन देशों ने महामारी से सामना करने के मामले में दुनिया के अन्य देशों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है. महिला नेताओं की सबसे बड़ी पूंजी उनका मानवतावादी दृष्टिकोण होता है, इसीलिए उनके निर्देश स्पष्ट होते हैं और चुनौती भरे निर्णय भी जनता स्वीकार करती है. इन महिलाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि सरकार उत्तरदाई हो, जवाबदेह हो और जनता की परवाह करने वाली हो, तब कठिन से कठिन समस्या से पार पाया जा सकता है.
न्यूज़ीलैण्ड की मेस्सी यूनिवर्सिटी और ओटागो यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने न्यूज़ीलैण्ड में कोविड-19 से निपटने के तरीकों की समीक्षा की है. इस अध्ययन के अनुसार जनता की साफ़-सफाई से रहने की आदत और सरकार में भरोसे को शत-प्रतिशत अंक दिए जा सकते हैं. मेस्सी यूनिवर्सिटी के कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म विभाग के डॉ जगदीश ठक्कर के अनुसार महामारी के दौर में जनता को अपनी सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों पर पूरा भरोसा था, इसीलिए पूरा देश एकसाथ इसका डट कर सामना कर पाया. सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों में जनता के भरोसे का कारण था, जनता से सम्बंधित सभी सन्देश और निर्देश सरल, स्पष्ट, करुणा और सहानुभूति के साथ, और मानवतावादी दृष्टिकोण से दिए गए थे, जबकि अधिकतर दूसरे देशों ये सभी सन्देश एक आज्ञा के तौर पर जनता पर थोपे गए थे.
न्यूज़ीलैण्ड की अधिकतर जनता को कोविड-19 के बारे में सामान्य जानकारी थी, इससे उन्हें सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में चल रहे इससे सम्बंधित फेक और भ्रम वाले मैसेज को पहचानने में आसानी थी. सरकार केवल विज्ञान और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सहारा ले रही थी, इसलिए भारत, अमेरिका या ब्राज़ील के विपरीत एक भी भ्रम वाले सन्देश जनता तक नहीं पहुंचे. दूसरे देशों की एक बड़ी आबादी समझती है कि कोविड-19 से केवल बुजुर्ग प्रभावित होते हैं और उन्ही कि मृत्यु हो सकती है, पर न्यूज़ीलैण्ड की 94 प्रतिशत से अधिक जनता इसे तथ्यहीन समझती है. न्यूज़ीलैण्ड के महामारी विशेषज्ञ प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्देर्न को उत्कृष्ट, स्पष्ट, निर्णयात्मक, और मानवतावादी दृष्टिकोण वाला नेता मानते हैं. इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि सरकार यदि जनता से ईमानदार है तब जनता भी सरकार पर पूरा भरोसा करती है, ऐसी स्थिति में यदि महामारी से बड़ा संकट हो, उसका हल निकल ही जाता है. क्या, इस निष्कर्ष से भारत समेत दुनिया के अन्य देश कुछ सबक लेंगें?
महेंद्र पाण्डेय
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