घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (The Protection of Women from Domestic Violence Act 2005) के तहत कोई भी महिला अगर अपने पति या पति के परिवारवालों से प्रताड़ित हो रही है, तो वो घरेलू हिंसा के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है. महिला की तरफ से कोई भी हिंसा की शिकायत दर्ज करा सकता है.
यौन उत्पीड़न अधिनियम (The sexual harassment of women at workplace Prevention,Prohibition, and Redressal Act 2013) के तहत आपको कार्य स्थल पर हुए यौन उत्पीड़न (Sexual harassment at the workplace) के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा हक है. केंद्र सरकार ने भी महिला कर्मचारियों के लिए नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण की शिकायत (harassment act 2013) दर्ज होने पर महिलाओं को जांच लंबित रहने तक 90 दिन की पेड लीव दी जाएगी.
भ्रूण हत्या का मतलब है, जन्म से पहले ही होने वाले बच्चे की हत्या कर देना. कई मामलों में गर्भ में पल रही लड़कियों को मार दिया जाता है. एक महिला को जीने का अधिकार देने के लिए लिंग की जांच और उसकी हत्या के खिलाफ कानून बनाया गया है.
गर्भाधान और प्रसव से पहले लिंग की पहचान कराने वाले टेस्ट (लिंग चयन
यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं (Victims of Sexual Harassment) को अपने नाम की गोपनीयता बनाए रखने का पूरा आधिकार है. ऐसे मामलों में कोई महिला, किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने मामला दर्ज करा सकती है.
कई बार रेप की शिकार महिलाएं (Rape victims women) पुलिस की जांच, मुकदमे से होने वाली बदनामी के डर से शिकायत दर्ज नहीं कराती हैं. हाल ही में सरकार ने नए नियम लागू किए हैं
आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 के तहत एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है.
बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है. उसे जमानत से जुड़े उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के नजदीकी रिश्तेदारों को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.
समान वेतन अधिनियम,1976 में एक ही तरीके के काम के लिए समान वेतन का प्रावधान है. अगर कोई महिला किसी पुरुष के बराबर ही काम कर रही है, तो उसे पुरुष से कम वेतन नहीं दिया जा सकता.
मातृत्व लाभ अधिनियम,1961 के तहत मैटरनिटी बेनिफिट्स हर कामकाजी महिलाओं का अधिकार है. मैटरनिटी बेनिफिट्स एक्ट के तहत एक प्रेग्नेंट महिला 26 सप्ताह तक मैटरनिटी लीव ले सकती है. इस दौरान महिला के सैलरी में कोई कटौती नहीं की जाती है.
किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है, तो उस पर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की मौजूदगी में ही की जानी चाहिए.
रेप की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है. पुलिस थानाध्यक्ष के लिए ये जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष, दोनों का बराबर हक है.
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है. अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मौत के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाइयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा. यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा.
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता, लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत न होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं.
अगर पति-पत्नी साथ न रहना चाहें, तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए, तब हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 (Hindu Marriage Act Section 24) के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है.
अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है, तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद नि:शुल्क है. वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है. यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति वाली महिला के लिए है. पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है.
क्राइम अगेंस्ट वुमन : कहां करें शिकायत (Crime Against Woman: Where to Complain)
क्राइम अगेंस्ट वुमन सेल के अलावा 100 नंबर या महिला हेल्पलाइन नंबर 1091 पर कभी भी (सातों दिन चौबीसों घंटे) कॉल कर सकते हैं या अपने इलाके के थाने में शिकायत की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक, दिल्ली लीगल सर्विस अथॉरिटी, राष्ट्रीय महिला आयोग, एनजीओ आदि की डेस्क क्राइम अगेंस्ट वुमन सेल में हैं.
(स्रोत - देशबन्धु)