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ओस्टियोआर्थराइटिस के समय रहते पता लगने और उपचार से बुजुर्गों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार ओस्टियोआर्थराइटिस के 80 प्रतिशत मरीज ठीक से चल नहीं पाते और 25 प्रतिशत रोजमर्रे क्रियाकलाप में असमर्थ हैं।
  • कम चलने-फिरने से डायबिटीज, हाइपरटेंशन, मोटापा जैसे रोग हो जाते हैं और घुटने के इलाज में देरी से रीढ़ को नुकसान पहुंचता है।
  • ओस्टियोआर्थराइटिस पर विशेषज्ञों की राय
  • विश्व गठिया दिवस/विश्व संधिशोथ दिवस/विश्व अर्थराइटिस दिवस पर विशेष
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ओस्टियोआर्थराइटिस (अस्थिसंधिशोथ) घुटने का सबसे आम गठिया है। इसमें अस्थि में क्षरण की खराबी के कारण बुढ़ापे में जोड़ों में पीड़ा और अकड़न हो जाती है। घुटने का गठिया और अन्य अस्थि निर्माण खराबी को बुढ़ापे के सबसे सामान्य लक्षणों में से एक माना जाता है। दुर्भाग्य से ऐसा समझा जाता है कि एक उम्र, अधिकतर 60-65 साल में बुजुर्गों के लिए चलने-फिरने में कमी सामान्य बात है।

घुटनों में परेशानी के कई कारण होते हैं जो काफी समय से जमा होते रहते हैं और दैनिक गतिविधियों, सामाजिक सरोकार और व्यायाम में कमी होते ही सिर उठा लेते हैं। बुढ़ापे में भी तंदुरुस्त रहना अस्थियों और जोड़ों की समस्याओं से बचने और चलने-फिरने के काबिल रहने के लिए बेहद फायदेमंद होता है।

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डॉ. एल. तोमर, डायरेक्टर, ऑर्थोपेडिक्स एवं जॉइंट रिप्लेसमेंट, मैक्स सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल का कहना है,

“घुटने के इलाज को लेकर जागरूकता की कमी के कारण हालत और बिगड़ती जा रही है। जोड़ों की समस्या का गंभीरता से उपाय करने के बदले लोग पीड़ानाशक दवा या राहत देने वाले बाम का सहारा लेते हैं। ये अस्थायी उपाय हैं जिनसे अस्थि और जोड़ों की हालत और खराब तो होती ही है, लीवर और किडनी को भी नुकसान पहुंचता है।”

अक्सर देखा गया है कि लोग अंतिम समय तक घुटने की सर्जरी टालते रहते हैं और

यह नहीं समझते कि असल में इससे उनकी रीढ़ और खराब हो रही है। विकृत और पीड़ादायक घुटने के जोड़ रीढ़ में अपूरणीय क्षति कर सकते हैं। इसीलिये विशेषज्ञ समय पर घुटनों का उपचार कराने पर जोर देते हैं।

घुटनों के इलाज में विलम्ब और सामान्य उपायों से हालत और जटिल हो जाती है। लम्बे समय तक पीड़ानाशक के प्रयोग से एक बिलकुल अलग समस्या खड़ी हो सकती है, जिसमें किडनी की खराबी और आँतों में रक्तस्राव भी हो सकता है। ऐसे में बुजुर्गों की हालत और भी खराब हो जाती है।

जैसा कि डॉ तोमर का कहना है,

“घुटना संबंधी समस्या होने पर भारत में लोग अक्सर प्रतिबंधित जीवन स्वीकार कर लेते हैं। चलने-फिरने और शारीरिक श्रम में कमी से न केवल डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसे रोग होते हैं, बल्कि घुटने का सही इलाज टालने से हालत और बिगड़ जाती है, जैसा कि आगे चलकर रीढ़ में गंभीर समस्या हो सकती है।

उल्लेखनीय है कि जहां बढ़िया जीवनशैली अस्थि क्षरण प्रक्रिया को एकदम रोक सकती है, विलंबित या धीमा कर सकती है, वहीं समय पर इलाज से लोगों को ज्यादा स्वस्थ और उत्पादक जीवन में मदद मिल सकती है।

न्यूनतम चीरा के साथ घुटना प्रतिस्थापन सर्जरी से बुजुर्ग लोग अपना पुराना सक्रिय जीवन वापस पा सकते हैं। घुटने में खराबी से  सामाजिक मेल-मिलाप भी कम हो जाता है, क्योंकि आप सामाजिक जलसों में नहीं जा सकते हैं, सीढ़ियाँ चढ़ने, बच्चों के प्लेग्राउंड में जाने या बाजार जाने में कठिनाई होती है।

दुःख की बात है कि जोड़ों के दर्द या गठिया के शिकार बुजुर्गों को कभी-कभी बोझ मान लिया जाता है, क्योंकि वे खुद अपना काम करने में असमर्थ होते हैं। समय पर रोग की पहचान और खराब घुटने या अस्थि को ठीक करने के प्रयास से उन्हें संतुष्ट जीवन जीने, तंदुरुस्त रहने और सक्रियतापूर्वक समाज में योगदान करने में मदद मिलेगी।

डॉ. तोमर बताते हैं कि,

“न्यूनतम चीरा तकनीक के बदौलत घुटना प्रतिस्थापन प्रचलित पद्धतियों की अपेक्षा ज्यादा  असरकारी हो गया है। असल में इस तकनीक से वृद्ध लोगों, और 80 साल या उससे भी अधिक उम्र के लोग भी पूरा निश्चित होकर घुटना प्रतिस्थापन करा सकते हैं।”

न्यूनतम चीरा युक्त घुटना प्रतिस्थापन सर्जरी में खून भी काफी कम निकलता है, अस्पताल में रुकने और चंगा होने में कम समय लगता है। यह आरोपित जोड़ों का टिकाउपन बढ़ाता है और घुटनों की सक्रियता बढ़ती है। साथ ही, पूरी सर्जिकल प्रक्रिया में अतिरिक्त सुरक्षा और शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता है।

विश्व गठिया दिवस/ विश्व संधिशोथ दिवस/ विश्व अर्थराइटिस दिवस

“विश्व अर्थराइटिस दिवस” की स्थापना वर्ष 1996 अर्थराइटिस और रूमेटिज़म इंटरनेशनल (एआरआई) ने गठिया और मस्कुलोस्केलेटल रोगों (आरएमडी) से पीड़ित लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी। विश्व गठिया दिवस प्रतिवर्ष 12 अक्टूबर को मनाया जाता है।

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