कौशाम्बी (गाज़ियाबाद), 21 नवंबर। वरिष्ठ श्वांस एवं फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ के के पांडेय, डॉ अर्जुन खन्ना, डॉ अंकित सिन्हा ने जानकारी देते हुए बताया है कि क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) फेफड़ों की एक क्रॉनिक बीमारी है। सीओपीडी में सांस की नलियां सिकुड़ जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है। यह सूजन निरंतर बढ़ती रहती है जिससे आगे चलकर फेफड़े छलनी हो जाते हैं। इसे एम्फायसेमा कहते हैं। सीओपीडी का मुख्य उपचार रिस्क फैक्टर को रोकना है। रिस्क फैक्टर जैसे चूल्हे का धुआं, धूल और प्रदूषण आदि से बचना जरूरी है।
विश्व सीओपीडी दिवस (दीर्घकालीन दमा या काला दमा) के अवसर पर यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशाम्बी, गाज़ियाबाद में आज निःशुल्क लंग स्क्रीनिंग टेस्ट, निःशुल्क परामर्श एवं फेफड़ों को प्रदूषण के प्रभाव से बचाये रखने एवं स्वस्थ रखने के लिए आयोजित हेल्थ टॉक में चिकित्सक त्रय जानकारी दे रहे थे। इस कार्यक्रम में 100 से भी ज्यादा लोगों को जानकारी दी गई।
बहुत खतरनाक हो सकता है घर के अंदर का प्रदूषण भी
It can be very dangerous to have indoor pollution
डॉ अर्जुन खन्ना ने कहा कि घर के अंदर का प्रदूषण भी बहुत खतरनाक हो सकता है। पुणे की चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन में हुई एक रिसर्च का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि घरों के अंदर जलाई जाने वाली मच्छर भगाने वाली एक कॉयल लगभग चार पैकेट सिगरेट के बराबर होती है।
डॉ खन्ना ने देशी जुगाड़ों से भी बचने की सलाह देते हुए कहा कि मच्छर भगाने की लिक्विड की खाली शीशीयो में नीम एवं किरोसीन का मिक्सचर बना कर कभी प्रयोग नहीं करना चाहिए, इससे बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि मच्छरदानी एक सरल एवं सस्ता स्वास्थ्यरक्षक उपाय है।
गीले कपड़े से करें घर की सफाई
Clean the house with wet
डॉ अंकित सिन्हा ने कहा कि घर के अंदर सफाई सूखे कपड़े की बजाय गीले कपड़े से करनी चाहिए क्योंकि पर्दों पर, छज्जों पर, अलमारियों, पंखे, ट्यूब लाइट के ऊपर जो धूल बैठी होती है, उसमें डस्ट माइट (धूल घुन) नाम का जीवाणु होता है जो फेफड़ों में संक्रमण कर सकता है। साथ ही डस्ट माइट - Dust mite से बचने के लिए तकिये, तकिये के खोल, चादर, गद्दे, रजाई, कम्बल आदि को नियमित रूप से धूप दिखते रहना चाहिए,
डॉ अर्जुन खन्ना ने कहा कि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क एक उपयोगी चीज है तथा आजकल ऐसे भी मास्क उपलब्ध हैं जो तीन से चार महीने तक चल सकते हैं।
डॉ. के. के. पांडेय ने कहा कि एक बहुत बड़ी भ्रान्ति कि इन्हेलर्स लेने से उनकी आदत पड़ जाती है, आज इसको तोड़ने की आवश्यकता है। इन्हेलर्स ज्यादा प्रभावी हैं, दवाईयां सीधे फेफड़ों तक पहुँचती है तथा इसके दुष्प्रभाव भी कम हैं, इसलिए COPD के मरीजों को इन्हेलर्स से घबराना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि लम्बे समय से पुराना इलाज ले रहे हैं तो मरीजों को फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर से वैकल्पिक सलाह लेना चाहिए और आज की नयी दवाइयों एवं तकनीक का शीघ्र स्वास्थ्य सुधार के लिए लाभ लेना चाहिए।
डॉ अर्जुन खन्ना ने लोगों को एन 95 मास्क पहनने के सही तरीकों को लोगों को बताया और उनके सवालों का जवाब भी दिया। उन्होंने कहा कि इस बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी है कि आप जहां काम करते हैं, वहां आपको प्रदूषण का कितना खतरा है। विशेषकर अगर आप किसी केमिकल या सीमेंट कम्पनी में काम करते हैं और बार-बार आपको केमिकलयुक्त धुएं या धूल के सम्पर्क में आना पड़ता है तो आपको अपनी सुरक्षा संबंधी नियमों का पालन ध्यान से करना चाहिए।
सीओपीडी की समस्या को गंभीर बना सकता है वायु प्रदूषण
Air pollution can make COPD problem serious
वायु प्रदूषण सीओपीडी की समस्या को गंभीर बना सकता है क्योंकि यह इस स्थिति से जुड़ी विभिन्न तरह की परेशानियां उत्पन्न कर सकती है। इसलिए कोशिश कीजिए कि जब हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक हो तो आप बाहर न जाएं। अगर किसी कारणवश जाना ही पड़े तो तब निकलिए जब धूप तेज़ हो क्योंकि सूरज की रोशनी हानिकारक प्रदूषक तत्वों के जोखिम को कम करती है।
इस कार्यक्रम में यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉ सुनील डागर, गौरव पांडेय, राहुल साहनी, गौरव, पूजा मौजूद रहे।
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