गाजियाबाद, 24 मार्च 2020. वैश्विक महामारी ट्यूबरकुलोसिस (तपेदिक) की बीमारी को खत्म करने के प्रयासों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता फैलाने के लिए विश्व क्षय रोग दिवस प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को मनाया जाता है।
यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कौशाम्बी के वरिष्ठ फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. के. के. पांडे ने इस अवसर पर बताया कि क्षयरोग यानी टीबी, यह एक ऐसा गंभीर रोग है, जिसे शुरुआती चरण में ही पहचानकर इसका इलाज किया जाना आवश्यक है। इसे प्रारंभिक अवस्था में ही न रोका गया तो जानलेवा साबित होता है। यह व्यक्ति को धीरे-धीरे मारता है।
उन्होंने कहा कि टी.बी. रोग को अन्य कई नाम से जाना जाता है, जैसे तपेदिक, क्षयरोग तथा यक्ष्मा। इसे फेफड़ों का रोग माना जाता है, लेकिन यह फेफड़ों से रक्त प्रवाह के साथ शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकता है, जैसे हड्डियां, हड्डियों के जोड़, लिम्फ ग्रंथियां, आंत, मूत्र व प्रजनन तंत्र के अंग, त्वचा और मस्तिष्क के ऊपर की झिल्ली आदि।
वर्ल्ड ट्यूबर क्लोसिस डे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह इतनी खतरनाक बीमारी है कि हम आज भी विश्व में हर एक दिन चार हजार से ज्यादा लोगों की ट्यूबरक्लोसिस की वजह से मृत्यु देखते हैं और वही 30,000 से ज्यादा लोग हर एक दिन इस बीमारी की वजह से बीमार हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2020 के लिए जो थीम रखी गई है वह है "इट्स टाइम"। विश्व से
उन्होंने बताया कि टी.बी. के बैक्टीरिया सांस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं। किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम व थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सांस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं। रोग से प्रभावित अंगों में छोटी-छोटी गांठ अर्थात् टयुबरकल्स बन जाते हैं। उपचार न होने पर धीरे-धीरे प्रभावित अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और यही मृत्यु का कारण हो सकता है।
यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कौशाम्बी के वरिष्ठ फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. अर्जुन खन्ना ने बताया कि टी.बी. के बैक्टीरिया सांस द्वारा फेफड़ों में पहुंच जाते हैं, फेफड़ों में ये अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं। इनके संक्रमण से फेफड़ों में छोटे-छोटे घाव बन जाते हैं। यह एक्स-रे द्वारा जाना जा सकता है, घाव होने की अवस्था के लक्षण हल्के नजर आते हैं।
डॉ. के. के. पांडे ने बताया कि इस रोग की खास बात यह है कि ज्यादातर व्यक्तियों में इसके लक्षण उत्पन्न नहीं होते। यदि व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो तो इसके लक्षण जल्द नजर आने लगते हैं और वह पूरी तरह रोगग्रस्त हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों के फेफड़ों अथवा लिम्फ ग्रंथियों के अंदर टी.बी. के जीवाणु पाए जाते हैं, कुछ लोगों जिनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति ज्यादा होती है, में ये जीवाणु कैल्शियम के या फ्राइब्रोसिस के आवरण चढ़ाकर उनके अंदर बंद हो जाते हैं। ये जीवाणु शरीर में सोई हुई अवस्था में कई वर्षों तक बिना हानि पहुंचाए रह सकते हैं, लेकिन जैसे ही शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होती है, टी.बी. के लक्षण नजर आने लगते हैं। यह शरीर के किसी भी भाग में फैल सकता है।
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